राजस्थान कि हस्तकला - बंधेज, लहरिया, मोठडा, पीव्ठा, चुनरी, बुनाई,

हस्तकला
  • राजस्थान सरकार को सर्वाधिक विदेशी मुद्रा हस्तकला से अर्जित होती है।
  • हस्तकला में भी सर्वाधिक विदेशी मुद्रा जवाहरात एवं आभूषणों से प्राप्त होती है। 
नोट- एशिया की पन्ने की सबसे बडी मंडी जयपुर
  • राजस्थान सरकार द्वारा हस्तशिल्प को बढावा देने के लिए राजस्थान लघु उद्योग निगम की स्थापना 3 जून 1961 को की गई।
छपाई
  • संगानेरी प्रिंट-जयपुर
  • सांगानेरी प्रिंट में काला और लाल रंग का अधिक प्रयोग किया जाता है।
  • विदेशोें में इस प्रिंट को लोकप्रिय बनाने का श्रेय मुन्नालाल गोयल को जाता है।
  • बगरू प्रिंट-जयपुर
  • लाल व काले रंग का छपाई में प्रयेाग
  • बगरू प्रिण्ट में फूल पत्ती, पशु-पक्षी की छपाई की जाती है।
अजरख प्रिंट-बालोतरा, बाडमेर
  • लाल व नीले रंग का प्रयोग
  •  इस प्रिंट में छपाई ज्यामितिय आकृतियों में दोनों तरफ होती है।
मलीर प्रिंट-बाडमेर
  • इस प्रिंट में छपाई कत्थई तथा काले रंग की लालिमा लिए हुए होती है।
  • आजम/जाजम प्रिंट-आकोला, चितौडगढ
  • दाबू प्रिंट- आकोला (चितोड़गढ़)
  •  रंगाई छपाई में जिस स्थान पर रंग नहीं चढाना हो। उसे लई या लुगदी से दबा देते है। यही दाबू कहलाता है।
  • सवाई माधोपुर में मोम का बालोतरा में मिट्टी का तथा सांगानेर व बगरू में गेंहू के बींधण का दाबू लगाया जाता है।
 रेवाडी या खड्ढी /खड्डी की छपाई -

  • लाल रंग की ओढनीयों पर गोंद मिश्रित मिट्टी की छपाई की जाती है इसके बाद लकडी के छापों द्वारा सोने चांदी की छपाई की जाती है।
  • खड्डी की छपाई जयपुर व उदयपुर की प्रसिद्ध है। 
रंगाई

  • नोट-वस्त्रों की रंगाई का काम करने वाला मुस्लमान रंगरेज और हिन्दू कारीगर रंगारा कहलाता है।
  • कपडों पर छपाई करके रंगाई करने वाले छींपा कहलाते है।
  • मुस्लमान छीपे तुक्र्याछीपा कहलाते है।
  • नील के रंग से वस्त्र रंगकर छपाई का काम करने वाले कारीगर नीलगर के नाम से प्रसिद्ध है।
  • नोट-रंगाई के प्रमुख प्रकार पोमचा, बंधेज, लहरिया , चुनरी , फेटया व छींट आदि।
बंधेज
  • बंधाई का काम करने वाले कारीगर चडावा बंधारा कहलाते है।
  • जोधपुर - बन्धेज की सबसे बडी मण्डी है।
  • सुजानगढ, चुरू में बंधेज पर सर्वाधिक कार्य होता है।
  • चकदार-- एक दूसरे में पांच रंगों के वर्गवाली छपाई केा चकदार कहते है।
  • हाडोती के बंधेज में बूंदी की शिकारगाह शेली प्रसिद्ध है।
लहरिया- 
 कपडे पर एक सिरे से दूसरे सिरे तक यदि रंगों की लहरें बने तो उसे लहरिया कहते है।
  • लहरिये की ओढनी और पगडी सावन महिने में प्रयुक्त होती है। 
  • यदि आडी धारिया केवल एक और से हो तो वह लहरिया कहलाता है।
मोठडा-
       यदि धारिया दोनों और एक दूसरे को काटती है। तो उसे मोठडा कहते है ।, जयपुर का राजशाही लहरिया प्रसिद्ध है, इसमें पांच रंगों का प्रयोग होता है।
  • बीकानेर का लहरिया व मोठडा दोनों प्रसिद्ध है।
  •  प्रतापशाही लहरिया - जोधपुर
पोमचा -
  स्त्रियों के ओढने का वस्त्र है।
  • पोमचा बच्चे के जन्म पर नवजात शिशाु की मां के लिए मातृ पक्ष की और से आता है।
  • बेटे के जन्म पर पीला व बेटी के जन्म पर गुलाबी पोमचा देने का रिवाज है।
  • पोमचे का अधिक प्रचलन शेखावाटी व पूर्वी राजस्थान में है। 
  • पाटोदा का लूगडा, (पीले पोमचे का प्रकार) जो कि लक्ष्मणगढ, सीकर तथा मुकंदगढ,झुझुनू का प्रसिद्ध है।
  • लालवूद का पोमचा - सवाई माधोपुर 
  • फाग्ण्या पोमचा - नागौर
पीव्ठा- 
     मोती चूर का पीला नागौर
     लाडू का पीला - नागौर
     हरा पीला ओढना - नागौर
चुनरी-
     जोधपुर की चुनरी प्रसिद्ध है।

  • बारीक बंधेज की चुनरी शेखावाटी की प्रसिद्ध है। 
  • नोट - वस्त्रों की रंगाई के लिए पाली जिला मुख्यालय प्रसिद्ध है।
बुनाई- 
     वस्त्र बुनने का काम करने वाले हिन्दू जाति के दो वर्ग है। बलाई व कोली

  • मुस्लमान वस्त्र निर्माता जुलाहा कहलाता है।
  • कोटा डोरिया की मुंसरिया साडी-केथून

   1761 ई में कोटा राज्य के प्रधानमत्री झाला जालिमसिंह ने मैसूर से कुछ बुनकरों को बुलाया तथा उनमें सबसे कुशल बुनकर महमूद मुंसरिया ने यहां हथकरघा उद्योग की स्थापना कर साडी बुनना शुरू किया उसी के नाम पर साडी का नाम मुंसरिया साडी पडा।
नोट- जयपुर की 250 ग्राम रूई की बनी रजाई विश्व प्रसिद्ध है।