राजस्थान के प्रमुख संत एवं संप्रदाय - दादूजी/दादूदयाल, संत जसनाथ जी (निर्गुण), संत जांभों जी, संत रामचरण जी

दादूजी/दादूदयाल-
  • जन्म  वि. सं. 1601 ई. में अहमदाबाद।
  • आम्बेर के राजा मानसिंह के समकालीन थे। 
  •  इन्होंने मानसिंह के समय हिन्दी मिश्रित सधुकडी भाषा में दादू जी री वाणी तथा दादूजी रा दूहा लिखे।
  •  दादूदयाल 1568ई में सांभर आए।
  • 1585 ई में फतेहपुर सीकरी की यात्राके दौरान अकबर से भेंट की ।
  •  दादूदयाल 152 शिष्य थे जिनमें 100 ग्रहस्थी एवं 52 साधु है। जो दादू पथ के 52 स्तंभ कहलाएं है।
  • दादूदयाल 1602 ई में नरैना आ गए यही पर 1605ई को उनकी मृत्यु हो गई।
  • दादू पक का प्रमुख केंद्र नरैना/नारायण (जयपुर)
  • सतसंग स्थल- अलख/दरीबा
  • प्रमुख शिष्य- बखनाजी, रज्जबजी, संुदरदास , माधोदास आदि।
  •  दादूखोल- नारायणा में भैराणा पहाड़ी पर स्थित वह गुफा जिसमें दादू जी ने समाधि ली थी।
  •  इन्हें राजस्थान का कबीर कहा जाता है।
  • इनके प्रमुख शिष्यों में इनके पुत्र गरीबदास जी और मिस्किनदास जी थे
  • दादू जी की मृत्यु के बाद दादू पंथ की छः शाखाएं बन गई है।

1. नागा- दादू संप्रदाय में नागापंथ की स्थापना सुंदरदास ने की नागासाधु अपने साथ हथियार रखते थे तथा जयपुर राज्य दाखिली सैनिक के रूप में कार्य करते थे जयपुर शासक सवाई जयसिंह ने इनके शस्त्र रखने पर पाबंदी लगा दी थी।
2. खालसा-  इनका संबंध मुख्य पीठ नरैना से है इनका मुखिया गरीबदास जी थे।
3. विरक्त - ये रमते फिरते दादू पंथी साधु थे जो गृहस्थियों उपदेश देते थे।
4. खाकी- ये शरीर जो पर भस्म लगाते थे तथा खाकी वस्त्र पहनते थे।
5 उत्तरादे - वे साधु जो राजस्थान छोड़कर उत्तरी भारत की और चले गये थे।
6. निहंग - वे साधु जो घुमन्तु थे।
संत जसनाथ जी (निर्गुण)
  • जन्म - 1482ई. कतरियासर (बीकानेर) में हुआ इन्हे जाणी जाट हम्मीर और रूपादे का पोष्य पुत्र माना जाता है।
  •  जसनाथ जी ने 24 वर्ष की आयु में अपने पैतृक गांव कतरियासर 1506 ई. को अश्विन शुक्ला सप्तमी का जीवित समाधि ली थी।
  • जसनाथ जी के उपदेश उसके ग्रंथ सिभूदडा तथा कोंडा में संग्रहित है।
  •  गुरू का नाम गोरखनाथ है।
  • जसनाथजी संप्रदाय -  प्रमुख पीठ कतरियासर है।
नोट- कतरियासर के पास सिकंदर लोदी ने जसनाथ जी को भूमी प्रदान की थी सिकंदर लोदी इस संप्रदाय से प्रभावित थे ।
  • इनके अनुयायी 36 नियमों का पालन करते है इस संप्रदाय को सिद्ध संप्रदाय भी कहा जाता है।
  • जसनाथी संप्रदाय के लोग जाल वृक्ष तथा मोर पंख को पवित्र मानते है।
  • संप्रदाय के लोग गले में काला डोरा धारण करते है।
  • इस संप्रदाय के लोग अग्नि नृत्य करते है।
  • इस संप्रदाय के लोगों ने मूर्ति-पूजा का विरोध किया है।
  • इस संप्रदाय के अधिकांश अनुयायी जाट है।
संत जांभों जी-
  • जन्म -  1451 ई. में पीपासर (नागौर )
  • जांभोंजी के पिता का नाम  लोहट पंवार एवंम माता हंसा बाई 
  • वास्तविक नाम धनराज 
  • विश्नोई संप्रदाय का प्रर्वतक संप्रदाय की स्थापना सम्भराथल (बीकानेर) नामक स्थान पर हुई थी।
  • संप्रदाय के 29 नियम बनाये ओर 120 शब्दों का संग्रह जम्भ सागर में संग्रहित है।
  • जांभोंजी को वैदिक देवता विष्णु का अवतार माना जाता है।
  • जांभोंजी ने हिन्दू तथा मुस्लिम धर्म में व्यापत आडंरों की आलोचना की
  •  वे स्थान जहां जांभों जी उपदेश देते थे उसे साथरी कहा जाता है।
  • समाधि स्थल- मुकाम तालवा (नोखा,बीेकानेर) यहां प्रतिवर्श फाल्गुन व आसोज की अमावस्या को विश्नोईयों का कुंभ कहा जाने वाला मेला भरता है।
  • जांभोजी का प्रमुख कार्यस्थल सम्भराथल है।
  • इन्होने निर्गुण निराकार ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।
  • इस संप्रदाय में व्यक्ति की मृत्यु के बाद शव को दफनाया जाता है।
  • जांभोजी के अन्य ग्रंथ जंभ संहिता, विश्नोई धर्मप्रकाश
जंभगीता - विश्नोई संप्रदाय के लोग इसे 5 वां वेद मानते है।
  1. पाहल-जांभों जी द्वारा अभिमंत्रीत जल
  2.  मूल मंत्र हदय से विश्णु का नाम जपो तथा हाथ से काम करो।
  3. सिकंदर लोदी ने जांभों जी के प्रभाव के कारण गौ- हत्या पर प्रतिबंध लगाया था।
  4.  जांभोजी को पर्यावरण वैज्ञानिक के रूप में पूजा जाता है।
  5.  यह संप्रदाय वन एवं वन्य जीवों को बचाने के लिए पुरे भारत में प्रसिद्ध है।
  •  इस संप्रदाय के सर्वाधिक लोग जोधपुर में निवास करते है।
  •  संप्रदाय के अन्य प्रमुख तीर्थ स्थल रामडावास (पीपाड़, जोधपुर) जाम्भा (फलौदी, जोधपुर), जागुल (बीकानेर)
संत रामचरण जी
  • जन्म 1720 में जयपुर राज्य के टोंक जिले में सोड़ा (सुरसेन) गांव में हुआ।
  • बचपन का नाम रामकिशन 
  •  इनके उपदेश अणर्भवाणी में संग्रहित है।
  •  दांतडा (भीलवाड़ा) में कृपाराम से दीक्षा लेने के बाद इनका नाम रामचरण पड़ा।
  •  रामचरण जी ने निराकार निर्गुण भक्ति पर बल दिया है।
  • मृत्यु 1798 शाहपुरा (भीलवाड़ा) में हुई है।
  • रामचरण जी के शिष्य दाड़ी मूंछ और सिर पर बाल नहीं रखते थे और गुलाबी रंग की पोशाक धारण करते थे।
  •  रामचरण जी ने रामस्नेही संप्रदाय प्रारंभ किया जिसके राजस्थान में चार पीठ है।
स्थान                                संस्थापक
      शाहपुरा (भीलवाड़ा)  मुख्य पीठ -  रामचरण जी
  1. रेण (नागौर)                      दरियाव जी
  2. सिंहथल (बीकानेर)            हरिराम दास जी
  3. खैड़ापा (जोधपुर)                  रामदास जी
  • रामस्नेही संप्रदाय के संतसंग स्थल को रामद्वारा कहा जाता है।
  •  रामस्नेही संप्रदाय का होली के अवसर पर होने वाला फूलड़ोल महोत्सव प्रसिद्ध है।
  •  रामचरण ने ग्रहस्थ जीवन में रहते हुए राम के नाम को ही मोक्ष प्राप्ति का मुख्य आधार माना है।
  • नोट- दरियाव जी - जन्म 1758 जैतारण (पाली) 
  • मृत्यु रैण (नागौर) 1815, गुरू- प्रेम नाथ (बालकनाथ) 
  • नेाट- हरिदास जी ने निवासी ग्रंथ की रचना की थी।