आमेर के कच्छवाह वंश 2

आमेर के कच्छवाह वंश (1-15)
1. दुल्हाराय.   (1137 ई.) 2. कांकिल देव. (1207 ई.) 3. पृथ्वीराज कच्छावा (1527 ई.) 4. भारमल ध् बिहारीमल (1547-1573) 5. भगवंत दास ध् भगवान दास 6. मिर्जा राजा मानसिंह (1589-1614) 7. मिर्जा राजा जयसिंह (1621-1667) 8. सवाई जयसिंह ध् जयसिंह द्वितीय (1700-1743) 9. ईश्वरी सिंह (1743-1750) 10. माधो सिंह प्रथम (1750-1768) 11. प्रताप सिंह (1768-1803) 12. जगत सिंह द्वितीय (1807-1818) 13. रामसिंह द्वितीय (1835-1880) 14. माधोसिंह द्वितीय (1880-1922 ) 15. मानसिंह द्वितीय (1922-1956 )



  • राजस्थान के इतिहास में आमेर के कछवाहा राजपूतों का उदय 12 वीं शताब्दी के प्रारंभ से माना जाता है। 
  • कच्छवाह अपने आपको श्री राम के पुत्र कुश का वंशज मानते हैं।
  • कच्छवाह राजवंश की कुलदेवी जमवाय माता अन्नपूर्णा माता है कछवाहा राजवंश के इष्ट देवी शीला माता है।

दूल्हाराय:- ( 1137 )

  • इस के बचपन का नाम तेजकरण था।
  • 1137 में दौसा के मीणा व बड़ गुर्जरों को मारकर ढूंढाड़ प्रदेश में कच्छवाह प्रदेश की स्थापना की।
  • 1137 में दूल्हाराय ने जमुआ रामगढ़ में  जमवाय माता का मंदिर बनवाया।
  • आमेर के कच्छवाह वंश की कुलदेवी जमवाय माता है।
  • कोकिल देव:- ( 1207 )
  • 1207 ई. में इसने आमेर ( अमरावती) को राजधानी बनाया तथा 1727 तक आमेर राजधानी रहा।
  • आमेर को प्राचीनकाल में आम्बेर, आम्रवती, अम्बावती के नाम से जाना जाता था।
  • पृथ्वीराज कच्छवाह:-
  • 1527 को खानवा के युद्ध में पृथ्वीराज कच्छवाह ने राणा सांगा की सहायता की।
  • इसके अपने पुत्र का नाम सांगा से प्रभावित होकर सांगा रखा, जिसके नाम पर जयपुर का सांगानेर बसा है।
  • पृथ्वीराज कच्छवाह के समय जयपुर में गलता जी में कृष्णदास पयोहरी के द्वारा रानाननंदी संप्रदाय की पीठ की स्थापना की गई।
  • इसके 12 पुत्र थे, इसने आमेर के उत्तराधिकार विवाद होने की आशंका को खत्म करते हुए आमेर राज्य को 12 भागों में बांटा,  जिसके कारण आमेर रियासत 12 कोटडी के नाम से प्रसिद्ध हुई।



भारमल/बिहारीमल (1547 - 1573 )

  • अकबर 1562 में प्रथम बार ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की यात्रा हेतु अजमेर की ओर जा रहा था, तो भारमल ने रास्ते में अकबर से मुलाकात की अकबर व भारमल के मुलाकात सांगानेर में हुई थी।
  • यह राजस्थान का पहला राजा था जिसने मुगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित तथा अधिनता स्वीकार की।
  • ढूंढाड़ क्षेत्र के सांगानेर नामक कस्बे में चगताई खां की मदद से भारमल अकबर से 20 जनवरी 1562 ई. को मिलकर अकबर की अधीनता स्वीकार की।
  • 6 फरवरी 1565 में भारमल ने अपनी पुत्री हरका बाई का विवाह सांभर में अकबर से किया।
  • शादी के बाद भारमल ने अपने पुत्र भगवानदास व पौत्र मानसिंह को अकबर की सेवा में भेज दिया।
  • अकबर ने भारमल से प्रसन्न होकर भारमल को अमीर- उल- उमरा की उपाधि दी।
  • जहाँगीर (सलीम) हरखाबाई के पुत्र ने अपनी माता को मरियम उज्जमानी की उपाधी दी थी।
  • भारमल के सहयोग से ही अकबर ने 3 नवंबर 1576 को नागौर दरबार का आयोजन किया।
  • भारमल की मृत्यु 1573 में हुई थी।

भगवंत दास/भगवान दास:-

  • इसने अपनी पुत्री मानबाई का विवाह जहांगीर से किया जहांगीर इसे सुल्तान निशा कहता था।
  • मानबाई के खुसरो नामक पुत्र हुआ।
  • मान भाई ने अपने पुत्र खुसरो की हत्या की थी, अतः इसे इतिहास में पहली पुत्र हंता माता कहा जाता है।
  • अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने हेतु तीसरा संधि प्रस्तावक के रूप में से भेजा था।

मिर्जा राजा मानसिंह प्रथम ( 1589 - 1614 )

  • इसे मिर्जा राजा व वह फर्जत (बेटा) की उपाधि अकबर ने दी थी यह अकबर के नवरत्नों में शामिल था।
  • अकबर के दरबार में से 7000 मनसबदारी प्राप्त थी, जो किसी अन्य राजपूत राजा को नहीं थी।
  • यह अकबर का सबसे विश्वासपात्र राजपूत राजा था।
  • 18 जून 1576 हल्दीघाटी युद्ध में मानसिंह ने मुगल सेना का नेतृत्व किया था।
  • 1585 में अकबर ने से बंगाल का सूबेदार व 1587 में बिहार का सूबेदार बनाया।
  • मानसिंह ने बंगाल में अकबरनगर ( राजमहल )  व बिहार में मानपुर नगर बसाया।
  • 1592 में इसे आमिर के महलों का निर्माण करवाया।
  • 1604 में कूचबिहार ( बंगाल) के लक्ष्मीनारायण व केदार को अपने अधीन किया तथा शीला देवी की मूर्ति को लाया।

नोट:- शीला देवी आमेर के कच्छवाहों की आराध्य देवी है। शीला देवी को ढाई प्याले शराब चढ़ती है।

  • पर्सिया (ईरान) से अकबर ब्लू पॉटरी कला व मीणाकारी कला लाहौर लाया तथा लाहौर से इन कलाओं को मान सिंह द्वारा लाया गया।
  • जयपुर की ब्लू पोटरी  कला प्रसिद्ध है। जिसे सीकर के कृपाल सिंह शेखावत ने विश्व स्तर तक पहुंचाया।
  • मान सिंह ने अपने पुत्र जगत सिंह की याद में आमेर में जगत शिरोमणि मंदिर बनवाया।  जिसमें कृष्ण जी की वही प्रतिमा है जिसकी पूजा चित्तौड़गढ़ में मीराबाई करती थी।
  • 1614 में मानसिंह दक्षिण विजय की ओर गया तथा एलिचपुर (अहमदनगर, महाराष्ट्र) में इसकी मृत्यु हो गई।
  • मानसिंह ने वृंदावन में राधा गोविंद  ( गोड़िय संप्रदाय ) मंदिर बनवाया।

मिर्जा राजा जयसिंह (1621 - 1667 )

  • इसमें सर्वाधिक 46 वर्षों तक शासन किया।
  • यह जहाँगीर,  शाहजहाँ  व औरंगजेब तीन मुगल बादशाहों की सेवा में रहा। शाहजहां ने इसे मिर्जा राजा की उपाधि प्रदान की।
  • हिंदी के कवि बिहारी मिर्जा राजा जयसिंह के दरबार में थे।
  • इन्होंने बिहारी सतसई की रचना की थी।
  • वीर सतसई सूर्यमल मिश्रण
  • 11 जून 1685 को शिवाजी व मिर्जा राजा जयसिंह के बीच पुरंदर ( महाराष्ट्र ) की संधि हुई।
  • जयगढ़ दुर्ग ( चिल्का टोला ) का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया।
  • भूषण कवि - शिव सिंह भूषण

सवाई जयसिंह (1700 - 1743 )

  • इसे सवाई की उपाधि औरंगजेब ने दी थी।
  • सवाई जयसिंह एक ऐसा राजपूत था जिसने सर्वाधिक 7 मुगल राजाओं की सेवा की थी।
  • 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुअज्जम (बहादुर शाह ) ने जय सिंह के भाई विजय सिंह को जयपुर का राजा बनाया वह जयपुर का नाम मोमीनाबाद रखा।
  • 1707 में मेवाड़ के अमर सिंह द्वितीय मारवाड़ के अजीत सिंह व जयपुर के सवाई जयसिंह के बीच देबारी समझौता हुआ।
  • 1718 - 1734 के बीच सवाई जयसिंह ने 5 सौर वे। शालाओं का निर्माण करवाया जो निम्न है जयपुर, दिल्ली, मथुरा, उज्जैन, वाराणसी।
  • जयपुर की सौर वेधशाला जंतर- मंतर पांचों सौर वे।  शालाओं में बड़ी है तथा दिल्ली की सबसे प्राचीन है।
  • जयपुर स्थित जंतर मंतर में सम्राट यंत्र (सूर्य घड़ी) सबसे बड़ा यंत्र है। तथा रामयंत्र ऊंचाई मापने का यंत्र है।
  • जंतर - मंतर को अगस्त 2010 में यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल किया गया।
  • सवाई जयसिंह ने नक्षत्रों की सारणी पर आधारित जीज मोहम्मद शाही तथा ज्योतिषी ग्रंथ - जयसिंह कारिका की रचना की।
  • 18 नवंबर 1727 को सवाई जयसिंह ने जयपुर बसाया तथा जयपुर को राजधानी बनाया।  इसका वास्तुकार पंडित वि।ाधर भट्टाचार्य था।
  • 17 जुलाई 1734 को सवाई जयसिंह ने राजस्थान में मराठों के प्रवेश को रोकने के लिए  हुरड़ा (भीलवाड़ा) सम्मेलन बुलाया जिसकी अध्यक्षता मेवाड़ के जगत सिंह द्वितीय ने की थी।
  • 1740 में सवाई जयसिंह ने सिटी पैलेस में अश्वमेध यज्ञ करवाया। अश्वमेघ  करवाने वाला अंतिम राजा सवाई जयसिंह था।
  • 1733 में गौड़ीय संप्रदाय का मंदिर जयपुर में सवाई जयसिंह ने बनवाया।
  • जयगढ़ दुर्ग में तोपों का कारखाना बनवाया। एशिया की सबसे बड़ी तोप जयबाण तोप जयगढ़ दुर्ग में स्थित है।
  • इसने नाहरगढ़/सुदर्शन गढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया।
  • सवाई जयसिंह ने सिटी पैलेस (चांदी का सबसे बड़ा पात्र है) व मावठा झील  का निर्माण करवाया।
  • जयपुर के राजाओं की छतरियां गेटोर में बनी है परंतु ईश्वर सिंह की छतरी सिटी पैलेस के साथ बनी हुई है।
  • ईश्वरी सिंह (1743 - 1750 )
  • 1747  में ईश्वर सिंह व माधोसिंह प्रथम की बीच राजमहल टोंक का युद्ध हुआ। जिसमें ईश्वरी सिंह विजय हुआ तथा इस विजय की खुशी में इसने ईसरलाट (सरगासूली)  का निर्माण करवाया।
  • माधोसिंह प्रथम ( 1750 - 1768 )
  • 1764 में कोटा के शत्रु साल्वे माधव सिंह प्रथम के बीच भटवाड़ा (जयपुर बूंदी सीमा) का युद्ध हुआ।
  • 1763 में इसने सवाई माधोपुर नगर बसाया।
  • प्रताप सिंह:-
  • इन्होंने अपने दरबार में राधा गोविंद संगीत सार सम्मेलन करवाया तथा अपने दरबार में 22 कवियों को आश्रय दिया। अतः प्रताप सिंह के दरबार की गंधर्व बाईसी प्रसिद्ध थी।
  • यह स्वय ब्रजनिधि के नाम से कविताएं लिखा करता था।
  • 1799 में प्रताप सिंह ने हवामहल का निर्माण करवाया। हवामहल पांच मंजिला इमारत है जिसमें 953 खिड़कियां है इसका शिल्पी लालचंद था। इसका आंतरिक प्रवेश द्वार आनंद पोल कहलाता है।
  • 1787 में प्रताप सिंह व जोधपुर के विजय सिंह की संयुक्त सेना में मराठों के साथ तुंगा का युद्ध हुआ।
  • सवाई प्रताप सिंह के समय सर्वाधिक मराठे राजस्थान में आए तथा महाराष्ट्र की तमाशा लोकनाट्य शैली राजस्थान में आई।
  • जयपुर चित्रकला शैली का स्वर्ण काल सवाई प्रताप सिंह का काल था। प्रताप सिंह के समय चित्रकार साहिब ने ईश्वरी सिंह का आदम कद चित्र बनवाया।
  • जगत सिंह द्वितीय:-
  • इसके समय 1807 में कृष्णा कुमारी विवाद हुआ।
  • 1818 में जगत सिंह द्वितीय ने अंग्रेजों से संधि की थी।
  • रामसिंह द्वितीय ( 1835 -1880 )
  • यह 16 वर्ष की उम्र में राजा बना इस समय लॉड लुडलो ने इसके व्यस्क होने तक (जनवरी 1845) जयपुर का शासन संभाला।
  • लॉड लूडलो ने जयपुर में कन्या वध,  दहेज प्रथा,  सती प्रथा, बाल विवाह पर रोक लगाई।
  • इसके समय लॉर्ड मेयो, लॉड नार्थ,  प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट जयपुर आए थे।
  • 1776 में प्रिंस ऑफ अल्बर्ट के आगमन पर राम सिंह द्वितीय  ने जयपुर को गुलाबी रंग से रंगवाया था। तथा प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट ने जयपुर में अल्बर्ट हॉल की नींव रखी।
  • अल्बर्ट हॉल भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
  • अल्बर्ट हॉल का वास्तुकार सर स्टीवन जैकब था।
  • अल्बर्ट हॉल हिंदू इस्लामिक व ईसाई शैली में बना हुआ है।
  • अल्बर्ट हॉल लंदन के ओपेरा हाऊस ( पिरानिडाकार) जैसा है।
  • रामसिंह द्वितीय ने जयपुर में महाराजा कॉलेज की स्थापना की।
  • 1857 की क्रांति में अंग्रेजों का साथ देने के कारण सितार-ए-हिंद की उपाधि दी।
  • ब्लू पोटरी का स्वर्ण काल राम सिंह द्वितीय का काल था।



माघोसिंह द्वितीय:-

  • सवाई माधोसिंह द्वितीय को बब्बर शेर के नाम से जाना जाता है।
  • माधोसिंह द्वितीय ने सिटी पैलेस में मेहमान नवाजी के लिए ‘ हिंदू इस्लामिक व ईसाई ‘ शैली में मुबारक महल का निर्माण करवाया।
  • इसने चाकसू जयपुर में शीतला माता का मंदिर बनवाया।
  • इसने अपने 9 प्रेमिकाओं के लिए नाहरगढ़ दुर्ग ध्सुदर्शन गढ़ ध् जयपुर के मुकुट में एक जैसे नौ महल का निर्माण करवाया।
  • 1920 के असहयोग आंदोलन के समय माघोसिंह द्वितीय ने बनारस हिंदू विश्ववि।ालय के संस्थापक महामना मदन मोहन मालवीय को ₹500000 दान में दिए थे यह पैसों वाला राजा के उपनाम से जाना जाता था।
  • मानसिंह द्वितीय:-
  • 30 मार्च 1949 ( वर्हत राजस्थान,  एकीकरण का चतुर्थ चरण) को मानसिंह राजस्थान के प्रथम राजपुर राजप्रमुख बने।
  • 1 नवंबर 1956 तक आजीवन राजप्रमुख रहे।
  • इसकी पत्नी गायत्री देवी थी। गायत्री देवी राजस्थान से लोकसभा में जाने वाली पहली महिला सांसद थी।
  • मानसिंह द्वितीय विश्व में पोलो का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी था।
  • इसके प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष हीरालाल शास्त्री के बीच 1942 में जेंटलमैन समझौता हुआ।इस समझौते में तय हुआ कि जयपुर प्रजामंडल भारत छोड़ो आंदोलन में भाग नहीं लेगा इससे नाराज होकर बाबा हरिश्चंद्र ने आजाद मोर्चा का गठन किया जिसने इस आंदोलन में भाग लिया।
  • सन् 1943 ई. में हिंदी को राजभाषा घोषित करने के लिए राजभाषा आंदोलन हुआ,  जिसके परिणाम स्वरुप हिंदी,  उर्दू के साथ-साथ राजभाषा घोषित कर दी गई।
  • दिसंबर 1948 में जयपुर नगर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। यह अधिवेशन अपनी शानो शौकत के लिए प्रसिद्ध है इसकी अध्यक्षता पर पट्टाभिसितारमैया ने की।
  • 1956 ई. में मानसिंह द्वितीय को स्पेन में भारत का राजदूत बनाकर भेजा गया।
  • इसके काल में जयपुर में पहली बार वि।ुत सुविधा प्रारंभ की गई।