राजस्थान कि हस्तकला - जट पट्टी उद्योग, कशीदाकारी, मीनाकारी, कोफ्तागिरी, कठपुतलिया, मसक, उस्ता कला

जट पट्टी उद्योग -  जसोल (बाडमेर)

  •  इसका निर्यात यूरोपियन देशों में किया जाता है जहां इनका उपयोग पानी के जहाजों पर कालीन के रूप में होता है।
  • उनी कंबल जयपुर ,जोधपुर एवं अजमेर
  • कालीन - बीकानेर
  • लवाण की दरिया- दौसा 
  •  टांकला नागौर का दरी उद्योग प्र्रसिद्ध है।
  • सालावास जोधपुर का दरी उद्योग प्रसिद्ध है।
  • पट्टू बरडी, शाॅल , लोइया-
  •  जैसलमेर जिले में बनने वाले कलात्मक उनी वस्त्र जो मेरिनो उन से तैयार किये जाते है।

कशीदाकारी -   बाडमेर जैसलमेर की महिलाएं कांच कशीदाकारी के लिए प्रसिद्ध है। बाडमेर की रमा देवी को राज्य स्तरीय पुरस्कार 1989-90 में दिया गया।  इसका सबसे ज्यादा कारोबार बाडमेर जिले के चैहटन क्षेत्र में होता है।जैसलमेर में महीन काशीदाकारी का काम जमीन पर बिछाने वाली राली पर होता है।

गोटा-  गोटा उधोग के लिए जयपुर व खण्डेला, (सीकर) प्रसिद्ध है।
  • गोटे के प्रकार- लप्पा,लप्पी, किरण, बांकडी ,गोखरू , बिजिया, मुकेश व नक्शी आदि।

नोट-  पश्चिमी राजस्थान में कशिदाकारी को भरत कहा जाता है।
  • मुक्का - कपडे पर चांदी व सोने के तारों की कढाई।
  • मुकेश - वस्त्र पर गोल सितारों की कढाई।
  • कुंदन कला - सोने एवं प्लेटिनम के आभूषणों में रत्नों की जड़ाई का काम इसके लिए जयपुर के प्रसिद्ध है।?
  • बरक/वर्क-सोने व चांदी को हथौडे से कूटकर पतले झिल्ली के समान बनाये गये पतर को बरक कहते है। बरक बनाने वाला बरकसाज कहलाता है। 
  • वर्क का कार्य जयपुर का प्रसिद्ध है।

मीनाकारी -स्वर्णाभूषणों में रंग भरना और चित्रकारी करना मीनाकारी का काम लाहौर से आए कारीगरों ने जयपुर शासक मानसिंह प्रथम के समय जयपुर में प्रारंभ किया। यह कला मूलरूप  से इरान/पर्शिया की है।
  • पीतल पर मीनाकारी - बीकानेर
  • कुंदन पर मीनाकारी - जयपुर
  • चांदी पर मीनाकारी - नाथद्वारा
  • तांबे पर मीनाकारी - भीलवाड़ा

Note :  जयपुर के प्रसिद्ध मीनाकार सरदार कुदरत सिंह को मीनाकारी के लिए राष्ट्रपति ने 1988 में पद्मश्री से सम्मानित किया था ।
  • थेवा कला- कांच पर सोने की चित्रकारी 
  • इस कला के लिए प्रतापगढ का सोनी परिवार प्रसिद्ध है।
  • इसका विकास 500 वर्ष पूर्व प्रतापगढ के राजा सावंत सिंह के समय में हुआ था।
  • वर्तमान में प्रमुख कलाकार गिरिश कुमार व नाथु सोनी
  • पीतल पर मीनाकारी - जयुपर व अलवर प्रसिद्ध है।
  • बीकानेर मे कागज जैसे पतले पतरे पर मिनाकारी का कार्य किया जाता है। 

कोफ्तागिरी 
  • फौलाद /लोहे की वस्तुओं पर सोने के पतले तारों की जड़ाई की जाती है। इस कला के लिए जयपुर व अलवर प्रसिद्ध है।
  •  इस कला का उद्भव दमिश्क (सीरिया) से पंजाब -गुजरात-राजस्थान में लाया गया।

तहनिषा - 
  • डिजाईन मे खुदाई करके सोने -चांदी की पाॅलिस वाले तार भरे जाते है। इस कला के लिए उदयपुर एवं अलवर प्रसिद्ध है।
  • नोट - बांसवाडा जिले का चन्दूजी का गढा तथा डूंगरपुर जिले का बोडिगामा तीर कमान के लिए प्रसिद्ध है।
  • नोट- नागौर का लौहारपुर अपने लोहे के हस्त औजारों के लिए प्रसिद्ध है। इसलिए यह राजस्थान का धातु नगर कहलाता है।

Note - लाख की बनी चुडियों को मोकडी कहा जाता है जिसके लिए जयपुर प्रसिद्ध है।

काष्ठ कला
  • बस्सी (चितोड़) प्रसिद्ध है।
  • इस कला के जन्मदाता प्रभात जी सुथार को माना जाता है।
  •  इसे मालपुरा ,टोंक से तात्कालीन शासक रावत गोविन्द सिंह 1652 ईं में लाया गया था। इन्होंने सर्वप्रथम एक लकडी की गणगौर बनायी थी।

कावड -
  •  लकडी से बनी मंदिरनुमा आकृति जिसके उपर लाल रंग किया जाता है।
  • कावड में मुख्यत महाभारत ,रामायण व कृष्ण लीला के विभिन्न चरित्रों व घटनाओं का विवरण होता है।

बेवाण/मिनिएचर वुड टेंपल 
  •  लकडी की मंदिर नुमा आकृति जिसमें कृष्ण जी की श्रृंगारित मूर्ति रखकर देवझुलनी एकादशी (भाद्र्रपद शुक्ला एकादशी) को नहाने के लिए ले जाते है।
  • चंदन की लकडी पर खुदाई के लिए चुरू प्रसिद्ध है।

 कठपुतलिया-
  • नट या भाट जाति के लोग इस कला में निपुण होते है।
  • मारवाड इन नटों का मुख्य स्थल है।
  • उदयपुर में आडू की लकडी की कठपुतलिया प्रसिद्ध है।
  •  स्व श्री देवीलाली सामर प्रसिद्ध कलाकार थे।

चर्म उद्योग-
  • जूते बनाने का काम रेगर ,मोची आदि करते थे।
  • जूती के प्रकार - जरबा ,पैजार,पगरखी ,माचडी आदि
  • विवाहोत्सवों पर वर -वधु के लिए बनाई जाने वाली जूतिया चोबवाली कहलाती है।

बिनोटा दूल्हे की जूतिया ।
  • जयपुर की नागरा तथा जोधपुर की मोजडी जूतियां प्रमुख है।
मसक-
  •  पानी भरने के लिए चमडे की बनी थैली इसका जो प्रयोग करता है उसे सक्का या भिश्ती कहा जाता है।
उस्ता कला - 
  • ऊंट की खाल से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बनाना जैसे- तेल, घी की कुप्पीयां, सुराहियां आदि इन वस्तुओं पर चित्रांकन की कला मुनव्वती कहलाती है।
  • उस्त कला बीकानेर की प्रसिद्ध है।
  •  प्रमुख कलाकार स्व. हिसामुद्दीन उस्ता जिन्हे 1986 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
  • गेंडे की खाल से बनी ढाल पर नक्काशी के लिए जोधपुर प्रसिद्ध है। प्रमुख कलाकार लालसिंह भाटी 
नोट-चर्म पर स्वर्ण चित्रांकन के लिए ज्येाति स्वरूप शर्मा प्रमुख कलाकार है।