राजस्थानी साहित्य के विकास को चार कालों में विभाजित किया गया है-
1. आदिकाल - 8 वी से 15 वी सदी तक
2. पूर्व मध्यकालीन - 1460 से 1700 वी सदी तक
3. उतर मध्यकाल- 1700 से 19 वी सदी तक
4. आधुनिक काल- 1857 से निरंतर
उतर मध्यकाल
नोट- नेणसी को राजस्थान का अबुल फजल कहा जाता है।
नोट- मारवाड परगना री विगत को राजस्थान का गजेटियर कहते है।
नोट - इसमें मतिरे की राड का उल्लेख मिलता है।
नोट- इसमें कामरान जैतसी ;बीकानेरद्ध के बीच युद्ध का वर्णन है
राजस्थानी साहित्य को विशय और शैली की दृश्टि से पांच भागों में बांटा जा सकता है।
1. चारण सहित्य - राजस्थानी भाशा का सबसे समष्द्ध साहित्य है। यह साहित्य वीर रसात्मक है। यह साहित्य अधिकांष पद में है।
चारण साहित्य से अभिप्राय चारण भाट आदि गाथा गायक जाजियों की कृतियों एवं लेखन शैलियों से है।
2. जेैन साहित्य रास साहित्य यह साहित्य गद्य -पद्य देानों रूपों में मिलता है।
वज्रसेन - शलिचंद सूरि द्वारा रचित कृतियां इसी साहित्य में आती है।
3. ब्राह्मणी साहित्य - भागवत पुराण , रामायण -महाभारत
4. संत साहित्य -
5. लोक साहित्य- लोकगीत , लेाककथाएं , प्रेमकथाएं व लोकनाट्य आदि
- पद्य साहित्य - दूहा , सोरठ ,गीत , कुण्डलिया, छंद व छप्पय
- गद्य साहित्य- वात , वचनिका, ख्यात , दवावेत , विगत आदि
राजस्थानी साहित्य की शब्दावली-
कक्का - उन रचनाओं केा कहते है जिनमें वर्णमाला के बाद वर्ण में से प्रत्येक वर्ण से रचना का प्रारंभ किया जाता है।
ख्यात - किसी विषिश्ट वंष के किसी पुरूश के कार्यो और उपलब्धियों का वर्णन मिलता है। प्रकार- 2 होते है।
1. संलग्न ख्यात - क्रमानुसार इतिहास लिखा हुआ है जैसे दयाल दास की ख्यात
2. बात संगृह- अलग -अलग छोटी बडी बातों का इतिहास जैसे नैण्सी एवं बांकी दास की ख्यात
नोट- ख्यातों का लेखन मुगल सम्राट अकबर के काल से माना जाता है।
प्रकार - दो प्रकार के होते है।
1. पद्यबद्ध 2. गद्यबद्ध
विगत - में किसी विशय का विस्तृत विवरण होता है।
विलास- इनमे राजनीतिक घटनाओं के अलावा आमोद प्रमोद विशयक पहलुओं का भी वर्णन मिलता है।
वेलि- इनमें राजनीतिक घटनाओं के साथ साथ सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताओं की जानकारी मिलती है।
बारहमासा- में कवि वर्श के प्रत्येक मास की परिस्थितियों का चित्रण करते हुए नायिका का विरह वर्णन करते है। इसका वर्णन प्राय आशाढ से प्रारंभ होता है।
मरस्या- से तात्पर्य षोक काव्य से है।
जैसे राणे जगपत रा मरस्या - मेवाड महाराणा जगतसिंह की मृत्यु पर षोक प्रकट करने के लिए लिखा गया था।
रासो- ये वे काव्य है। जिनमें किसी राजा की कीर्ति ,विजय ,युद्ध वीरता आदि का विस्तृत वर्णन होता है।
वंषावली- आदिपुरूश से विघमानपुरूश तक पीढीवार वर्णन अधिकतर भाटों द्वारा लिखी गई है।
रूपक किसी वंष अथवा व्यक्ति विषेश की उपलब्धियों के स्वरूप को दर्षानें वाली काव्य कृतियों को रूपक कहते है।
राजस्थानी साहित्य के ज्ञान भण्डार-
1. आदिकाल - 8 वी से 15 वी सदी तक
2. पूर्व मध्यकालीन - 1460 से 1700 वी सदी तक
3. उतर मध्यकाल- 1700 से 19 वी सदी तक
4. आधुनिक काल- 1857 से निरंतर
- आरंभकाल / आदिकाल के प्रमुख रचनाकार एवं उनकी कृतिया-
- रचनाकार कृतिया
- वज्रसेन सूरी - भरतेश्वर या बारहुबलि घोर
- शालीभद्र सूरी - भरतेश्वर बाहुबलि रास
- शांर्गधर - शांर्गधर पद्धति, षांर्गधर, हम्मीर रासो, हम्मीर
- असाईत - हंसावली
- दलपत - खुमाण रासो
- नल्लसिंह - विजयपसल रासों
- चंदबरदाई - पृथ्वीराज रासो
- नरपति नाल्ह - बीसलदेव रासो
- गाडण शिवदास - अचलदास खीची री वचनिका
- कल्लोल - ढोला मारू रा दूहा
- नभादास/ नारायणदास - भक्तमाल
- सूजाजी - राव जैतसी रो छंद
- छीछल - पंच सहेली रा दूहा
- ईसरदास - गुरूड पुराण, झाला रा कंुंडलिया
- जल्हण - बुद्धि रासों
- पृथ्वीराज राठौड - वेली किसन रूकमणी री , दसम भागवतरा दूहा, गंगा लहरी
- सांयाजी झूला - पार्वती महादेव री वेली, रूकमणी हरण
- दुरसा आढा - विरूद्ध छतरी ,किरतार बावनी
- कुशल लाभ - ढेाला मारू री चैपाई , पिंगल व षिरोमणि
- माधोदास दध वाडिया - रामरासो
- पद्मनाथ - कान्हड दे प्रबंध
- आशा बारहठ - गोगाजी री पेडी , बाघ जी रा दूहा
- पाश्र्व चंद्र सूरी - अतिचार चैपाई
- हेमरतन सूरी - गोरा बादल पदमनी चैपाई, महीपाल चैपाई, सीता चैपाई व लीलावती
उतर मध्यकाल
- मुहणौत नैणसी - मुहता नैणसी री ख्यात , मारवाड रा परगना री विगत
नोट- नेणसी को राजस्थान का अबुल फजल कहा जाता है।
नोट- मारवाड परगना री विगत को राजस्थान का गजेटियर कहते है।
- जयानक - पृथ्वीराज विजय
- जगनिक - परमार रासो
- नोट- इसमें परवर्दि देव, आल्हा उदल का वर्णन है।
- जोधराज - हम्मीर रासो
- नयन चंद्र सूरी - हम्मीर महाकाव्य
- चंद्रशेखर - हम्मीर हठ
- जससिंह सूरी - हम्मीर मान मर्दन
- जाचीक जीवण - प्रताप रासो
- काशी छंगाणी - छत्रपति रासो
नोट - इसमें मतिरे की राड का उल्लेख मिलता है।
- गिरधर दास - संगत रासो
- जान कवि - कयाम खां रासो
- नरोतम - मानसिंह चरित रासो
- कुंभकर्ण - रतन रासो
- बीठू सूजाजी - राव जैतसी रो छंद
नोट- इसमें कामरान जैतसी ;बीकानेरद्ध के बीच युद्ध का वर्णन है
- बीठू मेहा - पाबू जी रो छंद
- कृपाराम खिडिया-पाबूजी रो छंद - राजिये रा सोरठा
- बांकीदास - कायरबावनी , कु कवि बतीसी, संतोष
- बावनी, बांकीदास री ख्यात
- दयाल दास - बीकानेर रा राठौड री ख्यात /राणा रासो
- कान्हा व्यास - एकलिंग महात्मा
- कुंभा - एकलिंग महाकाव्य
- नागरी दास, सावंतसिंह - किशनगढ शासक राजसिंह का पुत्र वल्लभ संप्रदाय के कवि माने जाते है।प्रमुख रचनाकार सिंगार सागर, फाग विहार, रामचरित माला, रागविलास, नागर समुच्चय
- श्रवण राम जाट - सीतापुराण
- सूर्यमल्ल मिश्रण - बूंदी षासक रामसिंह के दरबारी कवि थे। प्रमुख रचनाकार - वंश भास्कर, वीरसतसई , छंदों मयूख ,ती रासो, रामरजाट ,बलद विलास, धातु रूपावली
- कन्हैयालाल सेठिया - जन्म 1919 में सुजानगढ चुरू, प्रमुख रचनाए ं- पाथल (प्रताप)-पीथल (पृथ्वीराज राठोड़) लीलटास , धरती धौरा री , अग्निवीणा, (सामंतों के खिलाफ) किन घडियों में बेसुध सोये मारवाड के सपूत, जमीन रो धणी मींझर, तुम्हे सौगंध है सिरोही के वीरों की , कू कू सबद वनफूल आदि। नोट - इन्हे मरणोपरांत - 2012 में राजस्थान रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कार 2004 पद्मश्री व पद्मविभूशण
- डाॅ सीताराम लालस - जन्म सिरवाडी बाडमेर। मूलतः ये नरेवा जोधपुर के निवासी थे। इनकी प्रसिद्ध रचना राजस्थानी भाषा का शब्द कोष के लिए एन साइक्लापीडिया ब्रिटेनिका ने लालस को राजस्थान जुंबा की मषाल कहकर संबोधित किया। 1976 में जोधपुर विष्वद्यिालय ने इन्हें डीलिट की उपाधि दी।
- कोमल / कोठारी-- जन्म कपासन चितौडगढ। रचनाएं जोधपुर से प्रकाषित मासिक पत्रिका ज्ञानोदय एवं उदयपुर से प्रकाषित साप्ताहिक ज्वाला है। पुरस्कार 1983 पद्मश्री 1984 पदम् भूषण। 2012 में राजस्थान रत्न पुरस्कार
- बिहारी मल - जयपुर नरेश मिर्जा जयसिंह के दरबारी कवि। रचना- बिहारी सतसई। रांगेय राघव- जन्म आगरा , कर्मस्थली - भरतपुर। प्रमुख रचनाएं - घरांेदे , ;पहला उपनयासद्ध धरती मेरा घर, मुर्दो ेका टीला , कब तक पुकार , आखिरी आवाज
- लक्ष्मी कुमारी चुंडावत - देवगढ राजसमंद। रचनाएं मांझल रात, पाबूजी री बात, डूंग जी -जवाहरजी री बात, हूंकारो दो सा, टाबरा री बात व केरे चकणा बात। पुरस्कार से वियत लैण्ड पुरस्कार , राजस्थान रत्न पुरस्कार।
- विजयदान देथा- जन्म बोरूदा। प्रमुख रचनाएं बातां री फुलवारी दुविधा, आलेखू , हिटलर , लजवन्ती सपन प्रिया। पुरस्कार 2007 में पदमश्री और 2012 में राजस्थान रत्न पुरस्कार। समय सुन्दर (जैन साधु) - कर्मस्थली सांचोर (जालोर)। रचना समय सुंदर रास पंचक , समय सूंदर कृत कुसुमांजली।
- श्री लाल नथमलजोशी- बीकानेर। रचनाए- धोरां रो धोरी, अेक बीनणी दो बींद, आभैपटकी ,आपणा -बापूजी , कंवारी
- मेघराज मुकुल- सैनाणी ,सैनाणी री जागी जोत, किरत्यां चंवरी , चणक
- यादवेंद्र शर्मा चंद्र- बीकानेर। रचनाएं जमारो, हूं गौरी किण पीव री , जोग - संजोग चादा सेठाणी (उपन्यास), तास रो घर (नाटक) , सन्यासी और सुंदरी , हजार घोडों का सवार ढोलन कुंज कली
- केसरी सिंह बारहट - चेतावणी रा चूंगट्या , रूठीरानी, प्रताप चरित , दुर्गा दास चरित
- मुरारिदास - वंश समुचय , डिंगल कोष
- मणि मधुकर - पगफेरो सुधि सपनों के तीर
- डाॅ अन्नाराम सुदामा - महकती काया मुलकती धरती आंधी और आस्था , आंधे न आख्या
- तेज कवि - स्वतंत्र बावनी - इसे गांधीजी को भेंट किया गया।
- चंद्र सिंह - बादली , लू, कहर मुकरणी
- जगजीवन भट्ट - अजीतोदय ;भाशाद्ध संस्कृत
- केशवदास गाडण - गजगुणरूपक
- कविया करणीदान - सूरत प्रकाश
- वीरभाण - राजरूपक ,डिंगल
- श्रीधर व्यास- रणमल छंद
राजस्थानी साहित्य को विशय और शैली की दृश्टि से पांच भागों में बांटा जा सकता है।
1. चारण सहित्य - राजस्थानी भाशा का सबसे समष्द्ध साहित्य है। यह साहित्य वीर रसात्मक है। यह साहित्य अधिकांष पद में है।
चारण साहित्य से अभिप्राय चारण भाट आदि गाथा गायक जाजियों की कृतियों एवं लेखन शैलियों से है।
2. जेैन साहित्य रास साहित्य यह साहित्य गद्य -पद्य देानों रूपों में मिलता है।
वज्रसेन - शलिचंद सूरि द्वारा रचित कृतियां इसी साहित्य में आती है।
3. ब्राह्मणी साहित्य - भागवत पुराण , रामायण -महाभारत
4. संत साहित्य -
5. लोक साहित्य- लोकगीत , लेाककथाएं , प्रेमकथाएं व लोकनाट्य आदि
- पद्य साहित्य - दूहा , सोरठ ,गीत , कुण्डलिया, छंद व छप्पय
- गद्य साहित्य- वात , वचनिका, ख्यात , दवावेत , विगत आदि
राजस्थानी साहित्य की शब्दावली-
कक्का - उन रचनाओं केा कहते है जिनमें वर्णमाला के बाद वर्ण में से प्रत्येक वर्ण से रचना का प्रारंभ किया जाता है।
ख्यात - किसी विषिश्ट वंष के किसी पुरूश के कार्यो और उपलब्धियों का वर्णन मिलता है। प्रकार- 2 होते है।
1. संलग्न ख्यात - क्रमानुसार इतिहास लिखा हुआ है जैसे दयाल दास की ख्यात
2. बात संगृह- अलग -अलग छोटी बडी बातों का इतिहास जैसे नैण्सी एवं बांकी दास की ख्यात
नोट- ख्यातों का लेखन मुगल सम्राट अकबर के काल से माना जाता है।
- दवावेत - गद्य-पद्य में लिखी गई तुकांत रचनाएं गद्य के छोटे वाक्य खंडों के साथ पद्य में किसी एक घटना अथवा किसी पात्र का जीवन वृत दवावैत में मिलता है।
- परची- संत महात्माओं का जीवन परिचय जिस पद्यबद्ध रचना में मिलता है उसे परची कहा गया है।
- प्रकाष - किसी वंष अथवा व्यक्ति की उपलब्धियों /घटना पर प्रकाष डालने वाली कष्तियों को प्रकाष कहा गया है । जैसे- किषेारदास का राजप्रकाष , आषियामोडजी का पाबू प्रकाष ।
- प्रषस्ति - मंदिरों , दुर्गद्वारों ,कीर्तिस्तभांे आदि पर राजाओं की उपलब्धियों का प्रषंसायुक्त वष्तांत मिलता है इसलिए इन्हें प्रषस्ति कहते है।
- वचनिका- राजस्थानी साहित्य में गद्य-पद्य मिश्रित काव्य को वचनिका की संज्ञा दी गई है।
प्रकार - दो प्रकार के होते है।
1. पद्यबद्ध 2. गद्यबद्ध
- पद्यबद्ध - आठ आठ अथवा बीस बीस मात्राओं के तुकयुक्त पद है।
- गद्यबद्ध - मात्राओं का नियम लागू नहीं होता है।
विगत - में किसी विशय का विस्तृत विवरण होता है।
विलास- इनमे राजनीतिक घटनाओं के अलावा आमोद प्रमोद विशयक पहलुओं का भी वर्णन मिलता है।
वेलि- इनमें राजनीतिक घटनाओं के साथ साथ सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताओं की जानकारी मिलती है।
बारहमासा- में कवि वर्श के प्रत्येक मास की परिस्थितियों का चित्रण करते हुए नायिका का विरह वर्णन करते है। इसका वर्णन प्राय आशाढ से प्रारंभ होता है।
मरस्या- से तात्पर्य षोक काव्य से है।
जैसे राणे जगपत रा मरस्या - मेवाड महाराणा जगतसिंह की मृत्यु पर षोक प्रकट करने के लिए लिखा गया था।
रासो- ये वे काव्य है। जिनमें किसी राजा की कीर्ति ,विजय ,युद्ध वीरता आदि का विस्तृत वर्णन होता है।
वंषावली- आदिपुरूश से विघमानपुरूश तक पीढीवार वर्णन अधिकतर भाटों द्वारा लिखी गई है।
रूपक किसी वंष अथवा व्यक्ति विषेश की उपलब्धियों के स्वरूप को दर्षानें वाली काव्य कृतियों को रूपक कहते है।
राजस्थानी साहित्य के ज्ञान भण्डार-
- प्राच्य विद्या प्रतिश्ठान - जोधपुर
- - सार्दुल राजस्थानी इन्स्टीटयूट -बीकानेर
- - अनूप संस्कृत पुस्तकालय- बीकानेर
- - अभय जैन ग्रंथालय- बीकानेर
- - अरबी फारसी संस्थान- टोंक
- - श्री जैन ष्वेतांबर तेरापंथ पुस्तकालय- श्री डूंगरपुर
- - जैन विष्व भारती संस्थान पुस्कालय लाडनू- नागोर
- - राजस्थान राज्य अभिलेखागार - बीकानेर