राजस्थान के वैष्णव संप्रदाय

वैष्णव संप्रदाय

  • विष्णु एवं उसके दस अवतारों को प्रधान देव मानकर उसकी
  • अराधना करने वाले वैष्णव कहलाये है।
  • राजस्थान में वैष्णव धर्म का सर्वप्रथम उल्लेख द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व के घोसुण्डी अभिलेख में मिलता है। जिसमें अश्वमेघ यज्ञ का वर्णन मिलता है।
  • दक्षिण भारत में वैष्णव भक्ति आंदोलन को सक्रिय करने में तमिल आलवार संतों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
वैष्णव धर्म के प्रमुख संप्रदाय निम्न है-
रामानुज संप्रदाय
  • प्रवर्तक रामानुजाचार्य   तथा इन्होंने ब्रह्म सूत्र पर श्रीभाष्य की रचना की।
  •  दर्शन - विशिष्टाद्वैत
रामनंदी संप्रदाय
  •  प्रवर्तक रामनंद जी 
  •  रामनंद जी के प्रमुख शिष्य- कबीर, धन्नाजी, पीपाजी, सेनानाई, सदनाजी व रैदास आदि।
  • रामानंद जी की भक्ति दास्य भाव की थी।
  • राजस्थान में रामानंदी संप्रदाय के प्रवर्तक कृष्णदास जी पयहारी थे।
  • राजस्थान में संप्रदाय की प्रमुख पीठ गलता जी (जयपुर)

रसिक संप्रदाय

  • प्रवर्तक अग्रदास जी
  • प्रमुख पीठ रैवास (सीकर)  यहां भगवान राम को भगवान कृष्ण की भांति रसिक रास मान कर पूजा जाता है।
  • सीता- राम की श्रृंगारिक जोड़ी की पूजा की जाती है।
  • नोट- जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने रामानंद संप्रदाय को संरक्षण प्रदान किया था तथा अपने दरबारी कवि श्री कृष्णभट्ट को कलानिधि से इस संप्रदाय पर राम रासा लिखवाया।

रामस्नेही संप्रदाय -
निम्बार्क/सनकादि/हंस संप्रदाय- 
पर्वतक - निम्बार्काचार्य जी 
  •  इन्होंने वेदांत पारिजात भाष्य लिखकर वैष्णव भक्ति का अपना नया दर्शन द्वैताद्वैत /भेदाभेद प्रारंभ किया।
  • इस संप्रदाय में राधा को श्रीकृष्ण की परिणीती माना जाता है और युगल स्वरूप की मधुर सेवा की जाती है।
  •  राजस्थान मे निंबार्क संप्रदाय की प्रधान पीठ सलेमाबाद, (किशनगड़, अजमेर) जो आचार्य परशुराम द्वारा स्थापित की गई थी इनकी प्रसिद्ध रचना परशुराम सागर है।
  • दूसरी पीठ उदयपुर में स्थित है।
वल्लभ संप्रदाय/पुष्टिमार्ग-
  • पर्वतक - वल्लभाचार्य जी 
  • ग्रंथ अणुभाष्य, दर्शन- शुद्धाद्धैत 
  • इस संप्रदाय के लोग कृष्ण भक्ति पर बल देतेे है।
  • वल्लभाचार्य जी ने वृंदावन में श्री नाथ मंदिर की स्थापना की ।
  • वल्लभाचार्य जी के पुत्र विट्ठल नाथ ने अष्टछाप कवि मंडली का गठन किया।
  • नाथद्वारा संप्रदाय की प्रमुख पीठ है।
  • किशनगढ़ शासक सावंतसिंह इस संप्रदाय के अनुयायी थे।
  • इस संप्रदाय की प्रमुख विशेषत हवेली संगीत
  •  विट्ठल नाथ ने पुष्टिमार्ग का जहाज सुरदास को कहा है।

गौडिय संप्रदाय - 
  • प्रवर्तक - स्वामी माध्वाचार्य जी
  • प्रमुख ग्रंथ पूर्णप्रज्ञ भाष्य, दर्शन - द्वैतवाद
  • उनके अनुसार ईश्वर सगुण है तथा वह विष्णु है।
  • इस संप्रदाय को अधिक लोगों तक पहुंचाने का कार्य बंगाल के गौरान्ग महाप्रभु चैतन्य ने किया था। इन्होंने रासलिलाओं एवं संकीर्तनोें को कृष्ण भक्ति का माध्यम बनाया था।
संप्रदाय के प्रमुख मंदिर - 
  • वृंदावन में गोविन्द देव जी का मंदिर जिसका निर्माण आमेर शासक मानसिंह प्रथम ने करवाया था।
  • जयपुर में चंद्रमहल के पीछे राधागोविन्द जी का मंदिर सवाई जयसिंह के समय करवया गया जो राजस्थान में गौड़िय संप्रदाय की प्रमुख पीठ है।
  • मदन मोहन जी का मंदिर करौली
  • जयपुर शासकों ने गोविंददेव जी  को जयपुर का राजा घोषित किया तथा स्वयं का उसका दीवान माना।
सखी संप्रदाय -
  • प्रवर्तक -हरिदास जी 
  • इस संप्रदाय के अनुयायी स्वयं को श्री कृष्ण की सखी मानकर श्रीकृष्ण की अराधना करते है।
  • यह निम्बार्क संप्रदाय की एक शाखा है।
शेव संप्रदाय-
  • भगवान शिव की उपासना करने वाले शैव कहलाए
  • राजस्थान शैव संप्रदाय का प्रमुख प्रभाव मेवाड़ व मारवाड़ रियासत पडा
शैव संप्रदाय चार भागों में बंटा हुआ है।
  1. कापालिक 
  2. पाशुपत 
  3. वीरशैव 
  4. काश्मीरक
राजस्थान मे इसकी दो शाखाओं का विस्तार हुआ है।
  1. कापालिक - जो लोग भैरव को शंकर का अवतार मानकर पूजते है। इस संप्रदाय के साधु तांत्रिक तथा श्मशानवासी तथा शरीर पर भस्म लगाने वाले होते है।
  2. पाशुपत- इस संप्रदाय के प्रचारक लकुलीश नामक साधु थे।
  •  पाशुपत संप्रदाय के अनुयायी लकुलीश को शिव का 28 वां एवं अंतिम अवतार मानते है।
  • मेवाड़ के हारित ़ऋशि लकुलीश संप्रदाय के साधु थे।
  • एकलिंग जी का मंदिर कैलाशपुरी (उदयपुर) लकुलीश संप्रदाय का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर का निर्माण बापा ने करवाया था।
  • मेवाड़ के महाराणाओं ने एकलिंग जी को उदयपुर का राजा तथा स्वयं को दीवान मानकर शासक किया।
नाथ संप्रदाय-
  • पवर्तक - नाथ मुनि
  • पूर्व मध्यकाल में शैव धर्म से नाथ संप्रदाय का उदय हुआ
  • मत्स्येन्द्रनाथ इस मत के प्रम़ुख प्रचारक हुए है।
नोट- वैष्णव धर्म में विकसित नाथ संप्रदाय की प्रमुख पीठ जालौर जिले मे स्थित सिरे मंदिर में है।
  • राजस्थान मे नाथ संप्रदाय का प्रमुख केंद्र जोधपुर को माना जाता है। 
  • मारवाड़ शासक मानसिंह इस संप्रदास के विशेष अनुयायी थे उनके गुरू आयस देवनाथ थे।
  • राजस्थान में नाथ संप्रदाय की दो शाखाएं प्रसिद्ध है।-
  1. बैराग पंथ- प्रमुख पीठ राताडूंगा (पुष्कर) में स्थित है।
  2. माननाथी पंथ- प्रमुख पीठ महामंदिर (जोधपुर) में स्थित जिसका निर्माण जोधपुर के शासक मानसिंह ने करवाया था।
शाक्त धर्म -
प्राचीन काल में राजा, सेनापति एवं सैनिक शक्ति प्राप्त करने के लिए शक्ति पुजा करते थे। आगे चलक यह शाक्त धर्म कहलाया।
शाक्त धर्म के दो पंथ विकसित हुए -
  1. दक्षिणाचार
  2. वामांचार 
वाममार्गी पंथ - 
  1. कुण्डा पंथ - प्रवर्तक रावल मल्लीनाथ, इस पंथ की मान्यता है कि यदि कोई कुण्डा पंथी साधक किसी अन्य ग्रहस्थ को कुण्डा पंथ में दीक्षित नहीं करता है तो मृत्यु के पश्चात उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती है।
  2. सहज पंथ - यह गौडीय वैष्णव सम्प्रदाय की शाखा है।
तेरापंथी - राजस्थान में श्वेताम्बर शाखा की स्थानकवासी उपशाखा से तेरापंथ का उद्भव हुआ।
प्रवर्तक - भीखणजी जिनका जन्म - कंटालिया, जोधपुर में हुआ था।
  • भीखणजी के सिद्धांतों को मानने वाले आरंभिक साधुओं की संख्या 13 थी इसलिए यह पंथ तेरापंथ कहलाया। 
परसी धर्म - 
  • सर्वाधिक अनुयायी, उदयपुर, अजमेर व बाडमेर में। 
  • ये लोग सूर्य की पूजा करते है। 
  • जालौर के भीनमाल में स्थित वराहश्याम के मंदिर से फारसी पद्धति के सूर्यदेव की मूर्ति मिली है।
सिक्ख धर्म - 
  • प्रवर्तक - नानक जी
  • जन्म 1469 ई. में ननकाना, (तलवंडी, पाकिस्तान)
  • गुरू नानक के उपदेश गुरू ग्रन्थ साहिब में संकलित है। 
  • इस पंथ के अधिकाश अनुयायी, पंजाब तथा राजस्थान में गंगानगर व हनुमानगढ़ में निवास करते है।
  • राजस्थान में सिक्खों का सबसे बड़ा गुरूद्वारा बुड्ढा जोहड़ गंगानगर में स्थित है।
  • सिक्खों के 10वें व अंन्तिम गुरू गोविन्द सिंह अपने सैनिको का एक संगठन बनाया जिसे खालसा कहते है।