राजस्थान के मारवाड़ का राठौड़ वंश इतिहास

मारवाड़ का राठौड़ वंश - 1. राव सीहा (1273 ई.), 2. राव चूड़ा, 3. रणमल, 4.  जोधा (1438-89),    सातल -सूजा - बीका (1465), 5. सूजा, 6. गांगा,  7. मालदेव (1531-62),  8. चन्द्रसेन (1562-81) 9. मोटाराजा उदयसिंह (1581-95), 10. सूरसिंह,  11. गजसिंह, 12. जसवंत सिंह - 1 (1638-78),  13. अजीत सिंह (1707-24), 14. अभय सिंह (1730), 15. विजय सिंह, 16. भीम सिंह, 17. मानसिंह (1807, 1818)
मारवाड़ के राठौड़ वंश -
  • अरावली के पश्चिम का क्षेत्र जोधपुर, बीकानेर, बाड़मेर, जालौर तथा पाली का क्षेत्र मारवाड़ कहलाता है।
  • राठौड़ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के  ‘राष्ट्रकूट’ शब्द के अपभ्रंश से हुई है।
1. राव सीहा - 
  • 13वीं शताब्दी में राष्ट्रकुट शासन राव सीहा ने पाली में आकर राठौड़ वंश की नींव रखी। 
  • मारवाड़ के राठौड़ वंश का संस्थापक/राठौड़वंश का आदि पुरूष कहा जाता है। 
  • राव सीहा पुरस्कार मारवाड़ फाण्डेशन द्वारा दिया जाता है। 2012-13 का राव सीहा पुरस्कार विजयदान देथा को तथा 2013-14 का राव सीहा पुरस्कार डॉ० दलबीर भण्डारी को दिया गया है।
नोट -
  • विजयदान देथा - इन्हीं बिज्जी नाम से जाना जाता है। इनका जन्म बोरूंदा, जोधपुर में हुआ। इन्हें राजस्थान का शेक्सपीयर कहा जाता है।
  • बातां री फुलवारी (14 खण्ड), अलेखूं हिटलर, बापू के तीन हत्यारे, दुविधा उपन्यास (इस पर पहेली फिल्म बनी) लिखा। 2012-13 का राव सीहा पुरस्कार इन्हें दिया गया तथा राजस्थान का सर्वाेच्च असैनिक सम्मान राजस्थान रत्न से भी इन्हें नवाजा गया है।
  • दलबीर भण्डारी - जोधपुर में जन्में डॉ० दलबीर भण्डारी वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग, नीदरलैण्ड में न्यायाधीश के पद पर कार्यरत है।
2. राव चूड़ा -
  • मारवाड़ के राठौड़वंश का वास्तविक संस्थापक राव चूड़ा था।
  • राव चूड़ा ने मण्डोर (माण्डव्यपुर) को राजधानी बनाया।
  • मारवाड़ ने राठौडों की प्रारम्भिक राजधानी मण्डोर थी। 
  • राव चूड़ा की सोनगरा रानी चांद कंवर ने जोधपुर में प्रसिद्ध चांद बावड़ी बनवाई।
  • रावचूड़ा ने मारवाड़ में सामन्त प्रथा की शुरूआत की।
  • उत्तर भारत में एकमात्र रावण मन्दिर मण्डोर (जोधपुर) में है। रावण की पत्नी मंदोदरी मण्डोर की ही रहने वाली थी।
  • राव चूड़ा ने अपने छोटे पुत्र कान्ह को राज दिया तो बड़ा पुत्र रणमल नाराज होकर मेवाड़ में चला गया।
3. राव रणमल - 
  • रणमल का अधिकांश समय मेवाड़ में बीता था।
  • रणमल ने अपनी बहन हंसाबाई का विवाह मेवाड़ के राणा लाखा/लक्ष सिंह से किया।
  • राणा लाखा व हंसाबाई से उत्पन्न संतान राणा मोकल था। राणा मोकल 1421 में मेवाड़ का राजा बना।
  • राणा मोकल की हत्या रणमल ने चाचा व मेरा की सहायता से करवाई गई। 
  • हंसा बाई की एक दासी/डाबरिया (प्राचीनकाल में राजा अपनी पुत्री के साथ दहेज के रूप में भेजी जाने वाली लड़कियां)भारमली के द्वारा कुंभा ने रणमल को जहर दिलवाया। राणा कुम्भा ने रणमल की हत्या चितौडग़ढ़ दुर्ग में करवाई। जब रणमल की हत्या की जा रही थी तब एक नगाड़ा बजाने वाले नगाडची ने रणमल के पुत्र जोधा को संकेत दिया ‘जोधा भाज सके तो भाज तेरो रिणमल मारयो गयो।’
  • दासी से उत्पन्न पुत्र दरोगा/चाकर/राणा राजपूत के नाम से पुकारा जाता था।
  • रणमल की पत्नी कोड़मदे ने कोड़मदेसर (बीकानेर) में कोड़मदेसर बावड़ी बनवाई। जो पश्चिमी राजस्थान की प्राचीनतम बावड़ी है।
4. राव जोधा (1438-89) - 
  • सन 13 मई 1459 को रावजोधा ने जोधपुर नगर बसाया तथा जोधपुर को राजधानी बनाया।
  • जोधपुर को सूर्यनगरी/सनसिटी तथा मरूस्थल का प्रवेश द्वार भी कहते है।
  • 1459 में रावजोधा ने चिडिय़ाटूक पहाड़ी पर मेहरानगढ किले (गिरि दुर्ग)की नींव करणी माता (बीकानेर के राठौड़ों व चारणों की कुलदेवी) द्वारा रखवाई।
  • इसमें राजा राम खड़ेला नामक व्यक्ति को जिंदा चुनवाया गया जहां वर्तमान में सिल्ह खाना है।
  • मेहरानगढ की मयूरध्वज या मोरध्वज भी कहते है। यह किला मोरपंख की आकृति का है। मेहरानगढ को गढचितांमणि, सूर्यगढ़ व कागमुखी दुर्ग भी कहते है।
  • उपन्यासकार रूडयार्ड किपलिंग ने मेहरानगढ किले के लिए कहा ‘यह किला परियों व अपसराओं द्वारा निर्मित किला है’।
  • मेहरानगढ़ दुर्ग में मेहरसिंह व भूरे खां की मजार, चामुण्डा माता का मंदिर, मान प्रकाश पुस्तकालय, कीरत सिंह व धन्ना सिंह की छतरियां, मोती महल, फूल महल, सूरी मस्जिद आदि दर्शनीय स्थल है।
  • मेहरानगढ़ दुर्ग में शम्भूबाण, किलकिला खां व गजनी खां नामक तोपें रखी है। 
  • राव जोधा ने मेहरानगढ किले में चामूण्डा देवी का मंदिर बनवाया। 30 सितम्बर 2008 को चामुण्डा देवी मंदिर में दुर्घटना हुई जिसकी जांच के लिए जशराज चोपड़ा कमेटी गठित की गई।
  • जोधपुर के राठौड़ों की कुल देवी को नागणेची माता है। (राठौड़ राजा धूहड़ ने राठौड़ों की कुलदेवी चक्रेश्वरी/नागणेची की मूर्ति कर्नाटक से लाकर नगाणा गांव-बाड़मेर में स्थापित करवाई तथा जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग में नागणेची माता का मंदिर भी बनवाया।)
  • जोधा की पत्नी हाड़ी रानी जसमादे ने मेहरानगढ़ दुर्ग के समीप रानीसर तालाब का निर्माण करवाया।
  • 1438 में मारवाड़ के राव जोधा व मेवाड़ के राणा कुम्भा के बीच आवल-बावल की संधि हुई। जिसके दौरान मेवाड़ व मारवाड़ की सीमा निर्धारण किया गया तथा जेाधा ने अपनी पुत्री श्रृंगारी देवी का विवाह राणा कुम्भा के पुत्र रायमल से किया। श्रृंगारी देवी ने घोसुण्डी नामक स्थान पर बावड़ी बनवाई।
5. जोधा के बेटे -
  • राव सांतल - सांतल की रानी फुलां भटयाणी ने जोधपुर शहर में फुलेलाव तालाब बनवाया।
  • अजमेर के हाकिम मल्लू खां के सेनापति घुड़ेल खां ने मारवाड़ की 140 कन्याओं का अपहरण कर लिया तो सांतल ने अजमेर घूड़ले खां को मारा व खुद भी मारा गया। घुड़ले खां का छिद्रित सिर मारवाड़ की अपह्नत कुंवारी कन्याओं ने मारवाड़ में घुमाया।
  • मारवाड़ का प्रसिद्ध लोकनृत्य -घुड़ला नृत्य। घुड़ला नृत्य चेत्र कृष्ण अष्टमी को होता है।
  • छिद्रित मटके में दीपक रखकर किया जाने वाला नृत्य - घुड़ला।
  • चेत्र कृष्ण अष्टमी - 1. घुड़ला नृत्य    2. ऋषभदेव जयंती   3. शीतला अष्टमी।
नोट- चेत्र कृ ष्ण अष्टमी को शीतला देवी / चेचक की देवी / सेंडल माता की पूजा होती है। शीतला माता का मंदिर चाकसू जयपुर में माधव सिंह द्वितीय ने बनवाया। शीतला माता एकमात्र देवी है जिनकी खण्डित प्रतिमा पूजी जाती है। शीतला माता के मंदिर का पुजारी कुम्हार जाति का होता है। शीतला माता का प्रतीक दीपक व वाहन गधा है।
नोट- चेत्र कृ ष्ण अष्टमी को प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव / आदिनाथ / कालाजी /केसरिया जी की जयंति होती है। राजस्थान में ऋषभदेव का मूल स्थान धुलेव, उदयपुर में कोयल नदी किनारे है। जहाँ सभी संप्रदाय के लोग इनकी उपासना करते है।
नोट- चेत्र शुक्ल अष्टमी को करौली के यदुवंशियों की कुलदेवी कैलादेवी का लखी मेला लगता है जिसका लांगुरियां नृत्य प्रसिद्ध है।
नोट- राजस्थान में लोक कलाओं को संरक्षण देने वाला रूपायन संस्थान (बोरूदां, जोधपुर) में स्थित है। जिसके संस्थापक पद्म श्री कोमल कोठारी थे।
राव बीका -
  • 1465 में राव बीका ने करणी माता (चूहों की देवी) के आशीर्वाद  से जांगल प्रदेश में बीकानेर के राठौड़वंश की नींव रखी। 1488 में राव बीका ने बीकानेर शहर बसाया तथा बीकानेर का राजधानी बनाया। 
  • जांगल प्रदेश की राजधानी - अहिछत्रपुर।
  • अहिछत्रपुर (वर्तमान नागौर/धातुनगरी)।

6. राव गांगा - 17 मार्च 1527 (खानवा का युद्ध) को खानवा का युद्ध हुआ।   इस युद्ध में मारवाड़ के राव गांगा ने अपने पुत्र मालदेव के साथ 4 हजार सैनिक भेजकर राणा सांगा की सहायता की।
स्न राव गांगा ने जोधपुर में गांगलाव तालाब व गंगा की बावड़ी का निर्माण करवाया।
7. राव मालदेव (1531-62) - 
  • मालदेव को मारवाड़ का पितृहंता राजा कहते है। मालदेव का राज्यभिषेक 1532 ईस्वी में सोजत, पाली में हुआ।
  • फारसी इतिहासकारों ने मालदेव को हश्मतवाला राजा कहा। बंदायूनी ने इसे भारत का पुरूषार्थी राजकुमार कहा है।
  • हिन्दुओं का सहयोगी होने के कारण मालदेव को हिन्दु बादशाह कहते है। मालदेव ने अपने जीवन में कुल 52 युद्ध किये। मालदेव ने मारवाड़ राज्य का सर्वाधिक विस्तार किया।
  • 1541 में मालदेव व बीकानेर के जैतसी के बीच पाहेबा या शाहेबा (फलौदी, जोधपुर) का युद्ध हुआ। जिसमें जैतसी मारा गया और मालदेव ने बीकानेर पर अधिकार किया।
  • 5 जनवरी 1544 को मालदेव व अफगान शासक शेरशाह सूरी (फरीद) के बीच जैतारण का युद्ध / गिरी सुमेल का युद्ध (पाली) में हुआ। जिसमें मालदेव के दो स्वामी भक्त सैनिक जैता और कुंपा मारे गए तथा शेरशाह सूरी इस युद्ध में विजयी हुआ। इस वियज के बाद शेरशाह सुरी ने जोधपुर दुर्ग में सूरी मस्जिद का निर्माण करवाया।
  • गिरी सुमेल युद्ध जीतने के बाद शेरशाह सुरी ने कहा कि  ‘एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिन्दूस्तान की बादशाहत खो बैठता।’
  • सुमेल गिरी के युद्ध से पहले मालदेव ने सिवाणा दुर्ग (हल्देश्वर की पहाड़ी पर स्थित, बाड़मेर) में शरण ली। अत: सिवाणा दुर्ग को मारवाड़ के राजाओं की शरणस्थली कहा जाता है।
  • 7 नवम्बर 1562 में अकबर व मालदेव के बीच जैतारण नामक स्थान पर युद्ध हुआ जिसमें मालदेव मारा गया।  
  • सिवाणा दुर्ग को कूमट दुर्ग, खैराबाद, जालौर दुर्ग की कुंजी भी कहा जाता है।
  • पश्चिमी राजस्थान के अधिकांश किलों का निर्माण मालदेव ने करवाया। जैसे - सोजत का किला (पाली), पोकरण का किला (जैसलमेर) सारण का किला (पाली), मालकोट का किला (मेडता का किला - नागौर)।
  • मालदेव की पत्नी उमादे (जैसलमेर के लूणकरण की पुत्री) को इतिहास में रूठी रानी के नाम से जानते है। जो मालदेव से रूठकर अजमेर में तारागढ दुर्ग (गढबीठड़ी) में आजीवन रही तथा 1562 में मालदेव की मृत्यु के बाद उसकी पगड़ी के साथ सत्ती हुई। (पति की वस्तु के साथ सत्ती होना अनुमरण कहलाता है।)
  • मारवाड़ चित्र शैली (जोधपुर चित्र शैली) का स्वतंत्र उद्भव मालदेव में काल में हुआ।
  • खानवा के युद्ध में (1527) में मारवाड़ सेना का नेतृत्व राव मालदेव ने किया।
8. राव चन्द्रसेन (1562-81) - 
  • चंद्रसेन का जन्म 16 जुलाई 1541 में हुआ तथा 1562 ईस्वी में चंद्रसेन का राज्यभिषेक हुआ। 
  • चन्द्रसेन को मारवाड़ का प्रताप, महाराणा प्रताप का अग्रगामी या पथ प्रदर्शक, राजस्थान का भूला-बिसरा राजा (द फारगेटन हीरो ऑफ राजस्थान), विस्मृत राजा कहा जाता है। 
  • मूगलों की अधीनता स्वीकार न करने वाला मारवाड़ का अंतिम राजा चन्द्रसेन था।
  • चन्द्रसेन के भाई उदयसिंह व रामसिंह अकबर की सेना में चले जाते है।
  • अकबर ने 1570 में नागौर दरबार अहिछत्रपुर दुर्ग में लगाया। यहाँ बीकानेर के राजा कल्याणमल अपने दो पुत्रों के साथ (रायसिंह व पृथ्वीराज राठौड़/पीथल) व जैसलमेर के राजा हरराय भाटी, बूंदी व रणथम्भौर के सूरजनहाड़ा ने मुगलों की अधीनता स्वीकार की।
  • 1570 में चन्द्रसेन ने अपने पुत्र को नागौर दरबार में छोडक़र लौट आता है। तथा मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं करता है।
  • 1572  रायसिंह - जोधपुर- भद्राजूण - सिवाणा दुर्ग -सोजत दूर्ग - सारणा की पहाडिय़ॉँ  - काणूजो की पहाडिय़ॉँ 
  • चन्द्रसेन ने शिवाणा दुर्ग (बाड़मेर) को केन्द्र बनाकर मुगलों का विरोध किया।
  • अकबर ने बीकानेर के रायसिंह को 1572 में चन्द्रसेन के विरूद्ध भेजा तथा सिवाणा दूर्ग का प्रशासक नियुक्त किया।  
  • चन्द्रसेन ने मुगलों के विरोध हेतु धन की आवश्यकता के लिए सोजत दुर्ग जैसलमेर के हरराय के पास गिरवी रखा।
  • चन्द्रसेन ने जंगलो, पहाडिय़ो को युद्ध के लिए उतम माना। 
  • चन्द्रसेन मारवाड़ का पहला राजा था। जिसमे छापामार युद्ध पद्धति या गोरिला युद्ध पद्धति का प्रयोग किया।
  • 11 जनवरी 1581 को बैरसल द्वारा भोजन में विष दिया जाने के कारण सचियाप जोधपुर में चन्द्रसेन की मृत्यु हो गयी। 
  • चंद्रसेन की छत्तरी सचियाप नामक स्थान पर बनी है जिसके साथ पांच सत्तीयों के सतीत्व का प्रतीक बना है।
9. मोटाराज उदयसिंह (1582-1595) -
  • उदयसिंह को मोटाराज की उपाधि अकबर ने दी।
  • मोटाराज उदयसिंह मारवाड़ का पहला राजा था जिसने मुगलों से वैवाहिक सम्बन्ध बनाकर अधीनता स्वीकार की।
  • मोटाराज उदयसिंह ने अपनी पुत्री मान पति/मानीबाई/जगत गुसांई/जोधाबाई का विवाह अकबर के पुत्र जहाँगीर से किया। शाहजहाँ (खुर्रम) इन्ही की संतान था।
  • मारवाड़ चित्रकला शैली पर मुगलों का सर्वाधिक प्रभाव मोटाराज उदयसिंह के समय पड़ा।
10. सूरसिंह - अकबर ने इसे सवाई राजा की उपाधिक दी।
11. गजसिंह - जहांगीर ने इसे दलथम्बन की उपाधि दी।
  • गजसिंह ने अपने पुत्र अमरसिंह राठौड़ को राज ना देकर जसवंत सिंह को जोधपुर का राजा घोषित किया।
नोट - अमरसिंह राठौड़ - 1644 में बीकानेर के कर्ण सिंह व मारवाड़ के अमरसिंह राठौड़ के बीच मतीरे की राड़ (खिलवा गांव, बीकानेर व जोखणियां गांव, नागौर) हुई। इस युद्ध में अमरसिंह राठौड़ विजयी हुआ।
  • अमरसिंह राठौड़ ने शाहजहां के सेनापति सलावत खां की हत्या की और उसके बाद शाहजहां पर भी आक्रमण कर दिया लेकिन वह स्वयं मारा गया। इस समय शाहजहां लालकिले में छुपा था। अमरसिंह राठौड़ के सैनिकों ने लालकिले के बुखारा द्वार से लालकिले में प्रवेश किया और मुगल सेना से युद्ध करते समय ये सैनिक भी मारे गये। उस दिन से बुखारा द्वार ईंटों से बंद कर दिया गया और इसका नाम अमरसिंह फाटक पड़ गया।
  • अमर सिंह राठौड़ की छतरी 16 खंभों की छतरी है। जो नागौर में स्थित है।
12. जसवंत सिंह (1638-78) - 
  • महाराजा की उपाधि इसे शाहजहाँ ने दी।
  • 1658 में औरंगजेब व दाराशिकोह के बीच धरमत का युद्ध हुआ।    इस युद्ध में जसवंत सिंह ने दाराशिकोह का साथ दिया तथा औरंगजेब इसमें विजयी हुआ। इस विजय के बाद औरंगजेब ने धरमत का नाम फतेहबाद कर दिया।
  • धरमत, उज्जैन (क्षिप्रा नदी) रू.क्क.  में स्थित है।
  • 1659 में औरंगजेब व दाराशिकोह के बीच दौराई का युद्ध (अजमेर)   हुआ। जिसमें जसवंत सिंह ने दाराशिकोह का साथ दिया तथा औरंगजेब विजयी हुआ तथा इस युद्ध के बाद औरंगजेब ने दाराशिकोह को कांकणबाड़ी किले, अलवर में कैद करके रखा।
  • 1678 में जमरूद (अफगानिस्तान) में जसवंत सिंह की मृत्यु हुई। जसवंत सिंंह की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने कहा कि  ‘आज कुफ्र (धर्म विरोध) का दरवाजा टूट गया है’।
  • जसवंत सिंह ने भाषा-भूषण आनन्द विलास व गीता महात्म्य ग्रन्थो की रचना की। 
  • जसवंत सिंह का दरबारी कवि व इतिहासकार मुहणौत नैणसी (ओसवाल जैन जाति) था। मुहणौत नैणसी का जन्म 1610 ई में जोधुपर मेें हुआ।
  • मुहणौत नैणसी को मुंशी देवी प्रसाद ने ‘राजपुताने का अबुल फजल’ कहा है।
  • मुहणौत नैणसी ने दो ऐतिहासिक ग्रन्थ  ‘नैणसी री ख्यात (राजस्थान की सबसे प्राचीन ख्यात)’ व ‘मारवाड़ रै परगणा री विगत’ लिखे।
  • नैणसी री ख्यात की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें कहीं भी ‘है’ का प्रयोग नहीं हुआ है।
  • ख्यातें 16वीं शताब्दी में लिखनी शुरू की गई। ख्यातें भाट व चारण जाति द्वारा लिखी जाती है लेकिन नैणसी री ख्यात इसका अपवाद है।
  • ‘मारवाड़  रै परगणा री विगत’ में मुहणौत नैणसी ने इतिहास का क्रमबद्ध लेखन किया। अत: मारवाड़ रै परगणा री विगत को राजस्थान का गजेटियर कहते है।
  • राजस्थान में इतिहास को क्रमबद्ध लिखने का सर्वप्रथम श्रेय मुहणौत नैणसी को है।
  • राजस्थान के सम्पूर्ण इतिहास को क्रमबद्ध लिखने का श्रेय कर्नल जेम्स टॉड  (घोड़े वाले बाबा) को है अत: कर्नल टॉड को राजस्थान के इतिहास का पितामह कहते है।
  • नैणसी री ख्यात व मारवाड़ रै परगना री विगत राजस्थानी भाषा में लिखे गये है।
  • मारवाड़  चित्र शैली (जोधपुर चित्रशैली) का स्वर्णकाल जसवंत सिंह के समय था।
  • जोधपुर चित्रकला शैली में पीले रंग व आम के वृक्षों का चित्रांकन किया गया है।
  • जसवंत सिंह का सेवक आसकरण था। आसकरण का पुत्र दुर्गादास राठौड़ था। दुर्गादास राठौड़ को मारवाड़ का उद्धारक कहते है तथा कर्नल टॉड ने इसे राठौड़ों का यूलीसैस  कहा।
  • दुर्गादास राठौड़ ने जसवंतसिंह को वचन दिया कि उसकी मृत्यु के बाद मारवाड़ का राजा उसका पुत्र बनेगा।
  • जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने 1678 में मारवाड़ की भूमि (जोधपुर की भूमि) को खालसा भूमि (राजकीय नियन्त्रण भूमि) घोषित किया।
दुर्गादास राठौड़ -
  • जन्म - 1638 ई० सालवां गांव (जोधपुर रियासत)
  • पिता - आसकरण राठौड़।
  • कर्नल जेम्स टॉड ने इसे ‘राठौड़ों का यूलीसेस’ कहा है। दुर्गादास राठौड़ को ‘मारवाड़ का अणबिंदिया मोती ’ व ‘मारवाड़ का उद्धारक’ कहा जाता है।
  • 1718 में दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु उज्जैन, मध्यप्रदेश में हुई। उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे ही दुर्गादास राठौड़ की छतरी बनी है।
13. अजीत सिंह (1707-1724) - 
  • अजीत सिंह का जन्म 1679 में  लाहौर में हुआ।
  • औरंगजेब ने अजीतसिंह व उसकी माता को दिल्ली के किले में कैद किया।
  • दुर्गादास राठौड़ ने मुकुंद दास खींची की सहायता से अजीत सिंह को दिल्ली के किले से निकालकर कालिन्दी (सिरोही) में जयदेव ब्राह्मण के घर रखा तथा मेवाड़ के  राजा राजसिंह से सहायता प्राप्त की। राजसिंह ने अजीत सिंह को केलवा सहित 12 गांव का पट्टा देकर वहां का जागीरदार बनाया।
  • अजीत सिंह का पालन-पोषण गोराधाय ने किया। गोराधाय को ‘मारवाड़ की पन्नाधाय’ कहा जाता है। गोराधाय का नाम मारवाड़ के राष्ट्रगीत ‘धूंसा’  में शामिल किया गया है।
  • 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद देबारी समझौता (उदयपुर) में हुआ।
  • देबारी समझौता में तय हुआ कि मारवाड़ के राजा अजीत सिंह अपनी पुत्री सूरज कंवर व मेवाड़ के राजा अमरसिंह द्वितीय अपनी पुत्री चन्द्रकंवर का विवाह जयपुर के राजा सवाई जयसिंह से करेंगें। चन्द्र कंवर से उत्पन्न संतान (माधवसिंह) जयपुर का शासन सम्भालेंगी।
नोट - ईश्वरी सिंह व माधव सिंह प्रथम के बीच 1747 में राजमहल (टोंक) का युद्ध हुआ। जिसकी विजय में इश्वरी सिंह ने जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में ईसरलाट (सरगासूली) का निर्माण करवाया।
  • 1707 देबारी समझौता।
मारवाड़             मेवाड़   जयपुर
अजीत सिंह अमर सिंह - 2 सवाई जयसिंह (1700-43)   
सूरजकंवर चन्द्रकंवर ईश्वरी सिंह (1743-50)
इश्वरी सिंह            माधोसिंह माधोसिंह (1750-68)
 राजमहल (टोंक) 1747
  • अजीतोदय के रचनाकार जगजीवन भट्ट थे।
14. अभय सिंह (1730) -
  • खेजड़ली ग्राम/गुढा बिश्रोई ग्राम (जोधपुर) में अभयसिंह ने खेजड़ी/जांटी/शमी के वृक्ष कटवाने का आदेश दिया।
  • अमृता देवी बिश्रोई के नेतृत्व में बिश्रोई सम्प्रदाय के 363 लोगों ने खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरेरिया) के पेड़ों से चिपककर बलिदान दिया। राजस्थान में इसे चिपको आंदोलन/खेजड़ली आंदोलन कहते है।
  • विश्व में एकमात्र वृक्ष मेला ख्ेाजड़ली मेला खेजड़ली ग्राम (जोधपुर) में लगता है।  यह मेला भाद्रपद शुक्ल दशमी (तेजादशमी) को लगता है।
  • खेजड़ी वृक्ष की पूजा दशहरा/विजयदशमी (आश्विन शुक्ल दशमी) के दिन होती है। दशहरे पर लीलटांस पक्षी देखना शुभ माना जाता है।
15. विजयसिंह -
इसने जोधपुर में चांदी के विजयशाही सिक्के चलवाये।
स्थान    -     सिक्के   - स्थान - सिक्के
जयपुर - झाड़शाही  - कोटा - गुमानशाही
करौली - मदनशाही - धौलपुर - तमन्चाशाही
जोधपुर - विजयशाही - मेवाड़ - स्वरूपशाही
जैसलमेर - अखैशाही
नोट - राजस्थान में पंच मार्क सिक्के / आहत सिक्के सबसे प्राचीन है।
16. भीमसिंह -
17. मानसिंह -
  • नाथ सम्प्रदाय के गुरू आयसनाथ ने मानसिंह को जोधपुर का राजा बनने को भविष्यवाणी की तथा यह भविष्यवाणी सही सिद्ध हुई। अत: मानसिंह ने जोधपुर में मान मंदिर या महामंदिर बनवाया।
  • राजस्थान में नाथ सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र/पीठ जोधपुर में स्थित है।
  • मानसिंह ने मेहरानगढ़ दुर्ग में मान प्रकाश पुस्तकालय की स्थापना की।
  • मानसिंह के दरबार में दरबारी कवि बांकीदास था। बांकीदास चारण जाति का था। बांकीदास ने बांकीदास री ख्यात लिखी जो 1857 के संग्राम से संबंधित है।
  • 1807 में इसके समय (कृष्णा कुमारी विवाद) (गिंगोली का युद्ध) हुआ।
  • मेवाड़ के राणा भीमसिंह ने अपनी पुत्री कृष्णा कुमारी का विवाह मारवाड़ के राजा भीमसिंह से तय किया। लेकिन तभी भीमसिंह की मृत्यु हो गई। तब ये रिश्ता जयपुर के जगतसिंह- द्वितीय से तय हुआ। कृष्णा कुमारी को लेकर मारवाड़ के मानसिंह और जयपुर के जगत सिंह द्वितीय के बीच 1807 में गिंगोली का युद्ध हुआ। इस युद्ध में जगत सिंह द्वितीय विजयी हुआ।
  • गिंगोली स्थान परबतसर (नागौर) में है।
मारवाड़     मेवाड़ जयपुर
भीमसिंह राणा भीम सिंह जगत सिंह - द्वितीय
मानसिंह कृष्णा कुमारी
  • 1818 में मारवाड़ के मानसिंह में अंग्रेंजों से संधि की। (मराठों के डर से)
18. तख्त सिंह -
  • 1857 की क्रांति के समय जोधपुर का राजा तख्त सिंह था।
19. जसवंत सिंह द्वितीय - 
  • जसवंत सिंह द्वितीय के दरबार की वैश्या नन्ही भगतन/नन्ही बाई ने दयानन्द सरस्वती को विष दिया तथा 1883 में अजमेर में दयानन्द सरस्वती की मृत्यु हुई।
नोट - जसवंत सिंह द्वितीय के पुत्र सरदार सिंह ने अपने पिता जसवंत सिंह द्वितीय की याद में मण्डौर, जोधपुर में जसवंत थड़ा बनवाया। जसवंत थड़ा को राजस्थान का ताजमहल कहा जाता है।   
20. हनुमंत सिंह -
  • राजस्थान के एकीकरण के समय जोधपुर का राजा हनुमंत सिंह था। 
  • गजसिंह ने 1986 में अकाल पडऩे के कारण रूणेचा की पैदल यात्रा की। गजसिंह द्वितीय ने पानी बचाओ आन्दोलन चलाया। गजसिंह को मारवाड़ का भागीरथ कहते है।