राजस्थान की नदिया Notes


  • विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताऐं नदियों के किनारे विकसित हुई  जैसे सिन्धु , मेसोपोटेमियां की सभ्यता ।
  • राजस्थान में देश का 1.16: जल पाया जाता है। इसका लगभग 60.02: जल आन्तरिक प्रवाह का जल है।
  • नोट:- उल्लेखनीय है कि आन्तरिक प्रवाह में बहने वाले जल को सीर कहा जाता है।
  • राजस्थान में जल विभाजन का कार्य अरावली पर्वतमाला द्वारा किया जाता है। इसलिए महान जल विभाजक रेखा कहलाती है।
  • अरावली के पूर्वी घाट से निकलने वाली अधिकांश नदियां अपना जल बंगाल की खाड़ी में ले जाती है, जबकि पश्चिमी घाट से निकलने वाली अधिकांश नदियां अपना जल अरब सागर में ले जाती है।

नोट:- उल्लेखनीय है कि कुछ नदियां ऐसी भी होती है जो अपना जल ना किसी सागर में ले जाती है और ना किसी खाड़ी  में।अपितु मैदान में फैलकर समाप्त हो जाती है, आन्तरिक प्रवाह की नदियां कहलाती है।बनास व लूणी नदियां अरावली को काटती है, राजस्थान में तीन प्रकार की नदियां पाई जाती है। 
1. आन्तरिक अपवाह तंत्र - 62.02%
ज्तपबा रू.  काका सावी न घाघरो लादे बाद में रूप निखरेगा:-
1. कातली   2. काकनेय    3. सावी    4. घग्घर    5. मैन्था    6. रूपनगढ़    7. नीमड़ा   8. रेहला
2  अरब सागर में गिरने वाली नदियां:-
सासु मां सो जा पश्चिम से चलने वाली लू लग जाएगी:-
1. साबरमती 2.सूकड़ी       3.माही    4.सोम      5.जाखम    6.पश्चिमी बनास  7.लूनी   8.जवाई 
3.  बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां:-
B B B    K K K    G P C
1. बनास   2.बाणगंगा   3.बेड़च  4.काली सिंध   5.कोठारी  6. खारी   7.गम्भीर   8. पार्वती    9. चम्बल
1. आन्तरिक प्रवाह की नदियांः-
1. घग्घर नदी - उपनाम- सोतर नदी, मृत नदी, नट नदी, हकरा नदी एवं प्राचीन काल की सरस्वती व दृशधती नदी।   
उद्गम- कालीका पहाड़ी शिवालिक श्रेणी भ्ण्च्ण् ; हिमाचल प्रदेश राजस्थान में प्रवेश- तलवाड़ा गांव टिब्बी तहसील (हनुमानगढ़द्स) मापन- भटनेर के रेगिस्तान में विशेष- एकमात्र आंतरिक प्रवाह की सबसे लम्बी एवं अन्तर्राष्ट्रीय नदी जो 4 राज्यों व 2 देशों में बहती है।    

  • उत्तर दिशा से राजस्थान में प्रवेश करने वाली एकमात्र नदी। राजस्थान में प्रवेश करते समय तलवाड़ा झील का निर्माण करती है। 7 किमी लम्बी यह झील पश्चिमी राज. की सबसे नीचे स्थान पर स्थित है।  घग्घर नदी का पाट ; किनारा द्ध नाली कहलाता है जो बासमती चावल के लिए प्रसिद्ध है।                                                             
  • घग्घर बेसिन में पायी जाने वाली नमी युक्त भूमिबग्गी कहलाती है। घग्घर नदी के किनारे प्राचीन सभ्यता स्थल कालीबंगां जिसका शाब्दिक अर्थ काली चूड़ियां होता है। जहाॅ शल्य चिकित्सा व भूकम्प के साक्ष्य मिलेआन्तरिक प्रवाह की सबसे बड़ी नदी।
  • राजस्थान का शोक कहलाती है । कुल लम्बाई 465 कि.मी. है ।                                                         
  • प्राचीन काल में इस नदी में बाढ़ आती थी तो इसका पानी ’फोर्ट अब्बास’ पाकिस्तान में चला जाता था, जहां इस नदी को व इसके अपवाह क्षैत्र को हकरा के नाम से जाना जाता है।                                                           

नोट:- घग्घर नदी के स्थान पर पहले सरस्वती नदी बहती थी। ऋग्वेद के अनुसार यह नदी अरब सागर में जाकर मिलती थी, जबकि मेवाड़ इतिहास से ज्ञात होता है कि बीकानेर व मारवाड़ क्षैत्र में घग्घर नदी बहती थी।
2.   साबी नदी-उद्गम- सेवर की पहाड़ी   (जयपुर) समापन-पटौदी गाॅव , गुड़गांव  हरियाणा ) विशेष- आन्तरिक प्रवाह की एकमात्र नदी जो उत्तर दिशा से बाहर निकलती है। एकमात्र अन्तर्राज्यीय नदी।                                 प्राचीन सभ्यता स्थल जोधपुरा ;जयपुरद्ध इसी के किनारे पर अवस्थित है। जहां से हाथी के दान्त के अवशेष प्राप्त हुए हैं। बाबर ने इस पर बांध बनाने की कोशिश की व सबसे तेज बहने वाली नदी बताया है। यह अलवर की सबसे बड़ी नदी है । 
3.   काकनेय नदी -
उपनाम-  काकनी, मसूरदी नदी , काकनेय।      उद्गम- कोटड़ी/कोठारी/कोठयारी गांव जैसलमेर।                       समापन- बुझझील रुपसी गांव ( बाढ़ आनें पर पानी मीठा खाड़ी तक )                                                       विशेष- आन्तरिक प्रवाह की सबसे छोटी नदी जिसका कुल अपवाह 17 किमी. है और एक ही जिले में बहती है।
4.    कांतली नदी -
उद्गम- खण्डेला की पहाड़ी सीकर  समापन- चुरु की सीमा से पहले झुंझुंनू में                                                  विशेष- शेखावाटी क्षैत्र की एकमात्र नदी कांतली है जिसका अपवाह क्षैत्र तोरावाटी कहलाता है।

  • इस नदी का कुल लम्बाई 100 किमी है। ( पूर्ण बहाव के आधार पर राजस्थान की सबसे बड़ी नदी है । )
  • खण्डेला की पहाड़ी सीकर से निकलने वाली झुंझुनू  को दो भागों में बांटती है, एवं चुरू की सीमा से पहले 
  •  समाप्त हो जाती है तो वर्तमान में खण्डेला प्रसिद्ध है- गोटा उद्योग के लिए।
  • कांतली नदी के किनारे प्राचीन सभ्यता स्थल ताम्र सभ्यताओं की जननी कहलाने वाला गणेश्वर  अवस्थित है।

5.    मेन्था - उद्गम- मनोहर थाना की पहाड़ी जयपुर समापन- उत्तर दिशा से संाभर झील में ।                        विशेष- इस नदी के किनारे प्रसिद्ध जैन स्थल लूणवां ; नागौर द्ध   स्थित है।
6.    रुपनगढ़ नदी-
उद्गम- नाग पहाड़ रिजर्व फोरेस्ट कुचिल झील के पास से अजमेर।समापन- दक्षिण दिशा से संाभर झील में।        विशेष- निम्बार्क सम्प्रदाय के लिए प्रसिद्ध सलेमाबाद अजमेर इस नदी के किनारे अवस्थित है।
नोट:-  उल्लेखनीय है कि जैसलमेर की रेहला व बाड़मेर की नीमड़ा नामक दो आन्तरिक प्रवाह की नदियां है जो 2006 में कवास क्षैत्र बाड़मेर में बाढ़ के लिए चर्चित रही है।

2. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां:-
B B B    K K K    G P C
1. बनास 2. बाणगंगा  3. बेड़च  4. कालीसिंध  5. कोठारी   6. खारी  7.  गम्भीर  8. पार्वती   9. चम्बल
चम्बल-उपनाम- चर्णवती, बारहमासी/नित्यवाहिनी/कामधेनू।                                          
उद्गम- जानापाव की पहाड़ी विंद्याचल पर्वत महू मंदसौर मध्यप्रदेश। राजस्थान में प्रवेश-चैरासीगढ़,चितौड़गढ़।
समापन- मुरादगज इटावा उत्तरप्रदेश यमुना में।  विशेष- महू से मुरादगज तक कुल लम्बाई 966 किमी जबकि राजस्थान में 135 किमी है।

  • चम्बल नदी में प्रवेश स्थल के कुछ ही दूरी पर हरिपुरा चितौड़ से निकलने वाली वामनी नदी मिलती है
  • वामनी नदी चम्बल में भैंसरोडगढ चितौड़ में मिलती है। जहां राजस्थान का सबसे उंचा (18 मीटर) चूलिया जलप्रपात का निर्माण करती है।
  • वागली गांव से निकलकर बिन्दा गांव में राजस्थान में प्रवेश करने वाली काली सिंध नदी नानेरा (कोटा )  नामक स्थान पर चम्बल में मिलती है।                                                            
  • पालिया सवाईमाधोपुर चम्बल में सेहोर मध्यप्रदेश से निकलने वाली पार्वती नदी मिलती है।
  •  रामेश्वर घाट खण्डार सवाईमाधोपुर में बनास व सीप नदियां आकर मिलती है जहां आकर त्रिवेणी संगम होता है- बनास(चम्बल) सीप।
  • चम्बल नदी को घड़ियाल व मगरमच्छों की प्रजनन स्थली के रूप में जाना जाता है।
  • चम्बल नदी में विशिष्ट स्तनपायी जीव गांगेयसूस पाया जाता है। ( गंगाडोल्फिन ) 
  • चम्बल नदी यूनेस्को की विशेव धरोहर में दावा करती है - शामिल होने का ।
  • चम्बल नदी पर देश का पहला नदी अभ्यारण ( M.P.+Raj+U.P.) में विकसित करने की योजना है तो अभ्यारण की श्रेणी है - जलीय अभ्यारण।
  • राजस्थान में बहने वाली सबसे लम्बी, नदी व राज्य की सर्वाधिक अपवाह वाली नदी है।
  • चम्बल नदी में M.P.में गांधी सागर, चितौड़गढ़ में राणाप्रताप सागर, कोटा में कोटा बांध/जवाहर सागर व कोटा में ही कोटा सिंचाई बैराज बांध बनाये गये है तो इस परियोजना का एकमात्र सिंचाई परियोजना वाला बांध है- कोटा सिंचाई।

जिले - 6   Trick .कोसक ने धोबू को चम्बल में चित किया -
1.  कोटा      2. सवाईमाधोपुर       3.  करौली    4.  धौलपुर       5. बूंदी     6.  चितौड़गढ
सहायक नदियां:-
ज्तपबा .बचले मामा धुंध में बनास व खारी को ढूंढ बाद में काली पार्वती मिलेगी -
1. बेड़च     2. चन्द्रभागा 3. मानसी        4.  मोरेल   5.  धुंध 6.  मेनाल     7.  बनास   8.  खारी 9.  कोठारी     10. ढूंढ   11. वामनी  12. काली सिंध            13. पार्वती 
बनास नदी :-उपनाम- वशिष्ठी , वन की आशा, वर्ण आशा।      उद्गम- जसवंतपुरा की पहाड़ी ,खमनौर, राजसमंद। 
समापन- रामेश्वर घाट , खंडार , सवाईमाधोपुर चम्बल नदी में
विशेष- केवल राजस्थान में बहने वाली सबसे लम्बी नदी जिसकी लम्बाई 480 किमी. है। यह अरावली के पश्चिमी घाट से निकलती है। इसे जाना अरब सागर में था परन्तु यह अरावली को काटती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। उद्गम स्थल के बाद दिवेर की पहाड़ी राजसमंद से निकलने वाली कोठारी नदी मांडलगढ़ भीलवाड़ा में बनास में मिल जाती है।                                                                         
  • विगोद भीलवाड़ा में बेड़च व मैनाल नदियां आकर मिलती है तो यहां त्रिवेणी से संगम बनता है- बनास (बेड़च) मेनाल।    
  • टोडारायसिंह कस्वा टोंक में बनास नदी में खारी व डाई नदियां आकर मिलती है तो बिसलपुर में त्रिवेणी संगम बनता है।

नोट:- बनास नदी पर निर्मित बीसलपुर बांध परियोजना कंकरीट निर्मित राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है।  बनास नदी अपने समापन पर त्रिवेणी संगम बनाती है वह स्थान रामेश्वर घाट खण्डार सवाईमाधोपुर में है तो त्रिवेणी संगम बनता है- चम्बल$बनास$सीप नदियों द्वारा। बनास नदी टोंक जिले में सर्पिलाकार में बहती है।
जिले - 6 Trick .राजा नें टोंक के भील को सफाई के साथ चित किया  1 राजसंमद 2 टोंक 3 भीलवाड़ा 4 सवाईमाधोपुर 5 चितौड़गढ 6 अजमेर
सहायक नदियां- Trick .खारी मैना मोर को बडे़ मान से ढूंढकर लाई 1. खारी 2.  मेनाल  3.  मोरेल 4.  कोठारी  5.  बेड़च 6.  मानसी  7.  ढूंढ  8.  डाई
बेड़च नदी-उपनाम- बेड़च/आहड़/आयड।   उद्गम- गोगुंदा की पहाड़ी उदयपुर       समापन- बिगोद भीलवाड़ा , बनास नदी में
विशेष- उदयसागर में गिरने से पूर्व यह नदी आयड़ के नाम से जानी जाती है। ताम्र सभ्यताओं की नगरी के नाम से प्रसिद्ध या ताम्रनगरी कहलाने वाली प्राचीन सभ्यता स्थल आहड़ इसी नदी के किनारे स्थित है तो आहड़ सभ्यता को कहा जाता है- बनास संस्कृति।                                                   
  • जावद मध्यप्रदेश से निकलकर गम्भीरी नदी बेड़च में मिलती  है तो  गम्भीरी व बेड़च के संगम पर स्थित  है- चितौड़ दुर्ग।                                                                        
  • बेड़च नदी अपने समापन स्थल पर त्रिवेणी संगम का निर्माण करती है।

सहायक नदियांः-Trick . गोमती ने आरी से बैंगन बड़ी गम्भीरता से काटा - गोमती, आरी, वागन, गम्भीरी।
4.  काली सिंध नदी:-उद्गम- बागली गांव देवास मध्यप्रदेश।  राजस्थान में प्रवेश- बिन्दा गांव झालावाड़।समापन- नानेरा गांव कोटा चम्बलमें।
विशेष:- कालीसिंध व आहूनदी संगम पर गागरोन दुर्ग अवस्थित है। परवन, आहू निवाज व उजाड़ सहायक नदियां है। 
5.  पार्वती नदी:-उद्गम- सेहोर म.प्र.। राजस्थान में प्रवेश- करियाहट बारां में। समापन- पालिया स.माधोपुर चम्बल नदी में।                             
  • सवाईमाधोपुर चम्बल में इस नदी के किनारे किशनगंज शहर बारां अवस्थित है। 
  • यह नदी दो बार राजस्थान व मध्यप्रदेश के मध्य सीमा बनाती है। अहेली, रेतली, अंधेरी सहायक नदियां है।

6.  कोठारी नदी - उद्गम- दिवेर की पहाड़ी राजसमंद । समापन- मांडलगढ भीलवाड़ा बनास में।
विशेष- इस नदी के किनारे प्राचीन सभ्यता स्थल बागौर स्थित है । मेजा नामक बांध कोठारी नदी पर बनाया गया है। इस बांध के पास ही ग्रीन माउंट 
पार्क अवस्थित है।
7.  आहू नदी-उद्गम- सुसनेर मध्यप्रदेश।राजस्थान में प्रवेश- नंदपुरा झालावाड़।समापन- गागरोन दुर्ग के पास काली सिंध में। 
विशेष -  यह नदी मुकुन्दरा हिल्स/दर्रा अभ्यारण्य कोटा में होकर गुजरती है।  कोटा व झालावाड़ के मध्य प्राकृतिक सीमा का निर्धारण करती है।
8.  परवन नदी-उद्गम- मालवा का पठार मध्यप्रदेश ।  राजस्थान में प्रवेश- खरीबोर झालावाड़ में। समापन - रामगढ कोटा काली सिंध नदी में।विशेष यह नदी शेरगढ अभ्यारण्य बारां में होकर गुजरती है।नदी के किनारे जल दुर्ग शेरगढ अवस्थित है शेरगढ को जाना जाता है-सांपों की शरण स्थली।
9. वामनी नदी-उद्गम- हरिपुरा चितौड़।समापन- भैंसरोडेगढ चम्बल नदी में।
विशेष- चम्बल नदी व वामनी नदी के संगम पर राज्य का सबसे उंचा चूलिया जलप्रपात 18 मीटर बनता है। यह नदी बस्सी अभ्यारण्य चितौड़ से होकर गुजरती है।
नोट:- उल्लेखनीय है कि वामनी नदी को ब्रह्माणी  नदी के नाम से जाना जाता है।
10.  गम्भीर नदी:-उद्गम- गंगापुर सिटी करौली की पहाड़ी ।      समापन - मैनपुरी उत्तरप्रदेश यमुना में।
सहायक नदियां-ज्तपबा .भैंस के आगे मत भाग वरना पांचना आ जाएगा।                                              
 1.  भैंसावट 2.  अटा 3.  माची   4.  भद्रावती 5.  बरखेड़ा
भैंसावट, अटा, माची, भद्रावती, बरखेड़ा गम्भीर की सहायक नदियां है। इन पांचों नदियों पर एक बांध बनाया हुआ है। इसलिए इसे पांचना बांध भी कहते हैं।   नोट - उल्लेखनीय है कि पांचना बांध राज्य का एकमात्र मिट्टी निर्मित बांध है जो कि यू.एस.ए. के सहयोग से बनाया गया है। अभी हाल ही में इस नदी का पानी घना पक्षी विहार अभ्यारण्य को छोड़ा गया । इसलिए किसानों में रोष है। गम्भीर की सहायक नदी भद्रावती का करौली को डूबने से बचाने के लिए चूलीदेह परियोजना का निर्माण किया गया है।    
11.  बाणगंगा नदी:-उपनाम- अर्जुन की गंगा , ताला नदी, लुण्ठित नदी/रूठित नदी।    
उद्गम- बैराठ की पहाड़ी जयपुर।   समापन- फतेहाबाद उत्तरप्रदेश यमुना में समापन। 
विशेष- यह नदी वर्तमान में भरतपुर के मैदान में फेलकर समाप्त हो जाती है, इसलिए अब यह आन्तरिक प्रवाह की नदी बनकर रह गयी है। बाणगंगा नदी पर बने रामगढ़ बांध से जयपुर शहर को जलापूर्ती होती है। बाणगंगा नदी पर बने अजान बांध से घना पक्षी अभ्यारण्य को पानी छोड़ा जाता है।                               

  • इस नदी के किनारे प्राचीन सभ्यता स्थल बैराठ अवस्थित है जहां से मिले भाब्रू अभिलेखअशोक के बौद्ध होने का प्रमाण होने का प्रमाण मिलता है।  नोट:- उल्लेखनीय है कि भाब्रू अभिलेख में अशोक बौद्ध त्रिरत्नों में निष्ठा प्रकट करता है तो बौद्ध त्रिरत्न है-  बुद्ध, धम्म, संघ ।

3.  अरब सागर में गिरने वाली सहायक नदियांः- 17.1 :

  • लूणी नदी:-उपनाम- अन्तःसलिला, साबरमती, लवणमती, आधी खारी-आधी मिठ्ठीउद्गम- नाग पहाड़ अजमेर से निकलकर अन्नासागर झील से। समापन- कच्छ का रन में अरब सागर।
  • विशेष- अरावली के पूर्वी घाट से निकलकर पश्चिमी घाट में बहने वाली सबसे लम्बी नदी जिसकी कुल लम्बाई 330 किमी है।
  • इस नदी का पानी बालोतरा से आगे खारा हो जाता है जिस कारण इसमें मिलने वाले खारे नदी नाले हैं।
  • इस नदी के किनारे प्राचीन सभ्यता स्थल तिलवाड़ा बाड़मेर अवस्थित है। जहां वर्तमान में मल्लीनाथ पशु मेला थारपारकर गाय की खरीद-फरोखत के लिए विख्यात है। लूणी नदी का समापन स्थल कच्छ का रन वर्तमान में जंगली गधों के अभ्यारण्य के लिए प्रसिद्ध है।    

सहायक नदियां-ज्तपबा .जो सजा बालिका वधु को दी वो सासु के लिए गुड़ जैसी मिट्ठी थी -

  •  1 जोजरी  2 सगाई  3 जवाई 4 बाण्डी 5 लिलड़ी 6 सागी 7 सूकड़ी 8 गुहिया   9 मिट्ठड़ी               

जिले-6 ज्तपबा . आजा बाजो नापा 1.  अजमेर 2. जालोर  3. बाड़मेर 4. जोधपुर 5. नागौर 6.  पाली
नोट- दायीं तरफ से मिलने वाली एकमात्र नदी जोजरी/जोजड़ी हैतो जालौर में लूणी नदी का प्रवाह कहलाता है- रेड़ा/रेडा।                                                                                   
नोट- उल्लेखनीय है कि पश्चिमी बनास व लूणी नदी कच्छ की खाड़ी में जाती है जबकि माही व साबरमती नदी खम्भात की खाड़ी में जाती है।
2. माही नदी:-उद्गम:-मेहद झील , धार जिला ( एम. पी. ) उपनाम- बागड़ की गंगा, कांठल की गंगा, दक्षिणी राजस्थान की स्वर्ण रेखा।
राजस्थान में प्रवेश- खादू गांव ;हरदेव जोशी का गांव, मुख्यमंत्रीद्धसमापन- खम्भात की खाड़ी अरब सागर।   
विशेष- उल्टे  आकार में राज्य में बहने वाली नदी कर्क रेखा को दो बार काटती है।               
माही नदी, सोम नदी व जाखम नदी के संगम पर बैणका नामक टापू का निर्माण नेवटपुरा डुंगरपुर में होता है, जहां आदिवासियों का कुंभ कहलाने वाला बेणेष्वर मेला लगता है, जिसमें पुलिस का प्रवेष निषेध है। बैणका टापू नेवटपुरा डुंगरपुर में 19 वीं सदी के उतरार्द्ध में सन्त माऊजी द्वारा शिवलिंग की स्थापना की गई। यह एकमात्र खण्डित शिवलिंग है जो पूजा जाता है। यहां सन्त माऊजी ने पांच ग्रंथों की रचना की जो चोपड़ा के नाम से जाना जाता है।

  • माही नदी पर आदिवासी क्षैत्र की सबसे बड़ी परियोजना माही बजाज सागर बांसवाड़ा व कागदी पिकअप बांध का निर्माण किया गया। हरणचाप, अनास, एराव, एरण, सोम आदि इसकी प्रमुख सहायक नदियां है।                              

नोट:- सोम की सहायक नदी जाखम है जबकि माही की सोम, त्रिवेणी संगम बनता है- सोम$माही$जाखम से।
3. सोम नदी-उद्गम- बिछामेड़ा की पहाड़ी ऋषभदेव उदयपुर। समापन- माही नदी डूंगरपुर में             
विशेष- यह नदी पहाड़ो में तीव्र गति से बहने वाली नदी है। सारणी, गोमती, जाखम इसकी सहायक नदियां है।
4. जाखम नदी-उद्गम- भंवरमाल की पहाड़ी छोटी सादड़ी, प्रतापगढ़ समापन- बेणका टापू नेवटपुरा सोम में।              
विशेष-  यह नदी भी तीव्र बहने के कारण विख्यात है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां सूकड़ी व करमाई है।
5. पश्चिमी बनास नदी-उद्गम- सिरोही की पहाड़ी समापन- कच्छ की खाड़ी में।            
विशेष-  इस नदी के किनारे आबूरोड़ शहर बसा हुआ है।
6. साबरमती नदी-उद्गम- गोगुंदा की पहाड़ी उदयपुरसमापन- खम्भात की खाड़ी में            
विशेष- इसकी कुल लम्बाई 416 किमी. लेकिन राजस्थान में केवल 43 किमी. राज्य में इसका अपवाह 1% है। 

  • झाड़ोल व फुलवारी की नाल के मध्य पांच सरिताओं में विभक्त होकर राजस्थान से बाहर निकलती है।  

बाकल व सेई प्रमुख सहायक नदियां है।

  • नोट:- उल्लेखनीय है कि 1977 में सेई नदी पर राज्य की प्रथम जल सुरंग का निर्माण किया गया।

7. जवाई नदी:-उद्गम- गोरिया गांव पाली में समापन- सामला गांव के पास जालौर लूणी नदी में।
विशेष-  इस नदी पर मारवाड़ का अमृत सरोवर कहलाने वाला जवाई बांध (पाली) निर्मित है।
मारवाड़ का भागीरथ उम्मेद सिंह ने जवाई बांध का निर्माण करवाया था।