राजस्थान के मेवाड़ राजवंशो के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी (भाग -1)

मेवाड़ राजवंश -

  • मेवाड़ को मेदपाट/प्राग्वाट व शिवि जनपद के नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र में मेद अर्थात् मेर जाति रहती थी।
  • शिवि जनपद की राजधानी मध्यमिका/मझयमिका थी। मध्यमिका को वर्तमान में नगरी कहा जाता है। नगरी चितौडग़ढ़ में स्थित है। 
  • मेद का शाब्दिक अर्थ - मलेच्छों को मारने वाला है। 
  • मेवाड़ के राजा स्वयं को राम का वंशज मानते थे।
  • मेवाड़ राजाओं को ‘रघुवंशी’ या ‘हिन्दुआ सूरज’ भी कहा जाता है।
  • मेवाड़ सबसे प्राचीन रियासत थी।
  • संसार में एक ही क्षेत्र में अधिक समय तक राज करने वाला एकमात्र राजवंश मेवाड़ राजवंश है।
  • राजस्थान में मेवाड़ सबसे प्राचीन राजवंश था। 565 ई में गुहादित्य ने मेवाड़ में गुहिल वंश की स्थापना की।
  • साका प्रथा राजपूतों में प्रचलित थी। राजपूतों में पुरूषों द्वारा केसरिया बाना पहनकर युद्ध के मैदान में बलिदान हो जाना तथा महिलाओं द्वारा आग में कूदकर जौहर करना ही साका कहलाता है। साका राजपूतों में अपनी आन-बान-सान के लिए किया जाता था। 
गुहिल वंश या रावल वंश या गहलोतवंश 
1. गुहादित्य :- 

  • मेवाड़ में गुहिल वंश का संस्थापक।
  • 565 ईस्वी में गुहादित्य ने गुहिलवंश की नींव रखी। 

2. बप्पारावल :- (734 ई.-753 ई.)

  • मेवाड़ में गुहिल वंश का प्रथम प्रतापी राजा बप्पा रावल था।
  • बप्पारावल को कालभोज के नाम से जाना जाता है। बप्पारावल को मेवाड़ का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है। बप्पारावल हारित ऋषि की गाय चराता था। 
  • बप्पा रावल एक झटके में दो भैसों की बली देता था, पैंतीस हाथ की धोती और सौलह हाथ का दुपट्टा पहनता था। उसकी खडग़ 32 मन की थी। वह चार बकरों का भोजन करता था। उसकी सेना में 12 लाख 72 हजार सैनिक थे।
  • मेवाड़ का राजा एकलिंग नाथ के दीवान के रूप में शासन करता है।
  • बप्पारावल ने कैलासपुरी (उदयपुर) में एकलिंगनाथ जी का मन्दिर बनवाया।  एकलिंगनाथ जी के मेवाड़ के कुलदेवता थे।
  • एकलिंगनाथ मन्दिर राजस्थान में पाशुपात सम्प्रदाय/लकुलिश संप्रदाय का एकमात्र स्थल है। पाशुपात सम्प्रदाय शैवधर्म का सबसे प्राचीन सम्प्रदाय है जिसके प्रर्वतक लकुलिश मुनि है।
  • एकलिंग जी का मेला फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को कैलाशपुरी, उदयपुर में लगता है।
  • 734 ई. में बप्पारावल मौर्य शासक मानमौरी से चितौडग़ढ़ का किला जीता तथा नागदा (उदयपुर) को राजधानी बनाया। नागदा मेवाड़ के गुहिल वंश की प्रारम्भिक राजधानी बनाया।
  • बप्पा रावल की समाधि नागदा, उदयपुर में बनी है। जिसे बापारावल नाम से जानते है।

नोट - 

  • चितौडग़ढ़ का किला (गिरिदुर्ग) गम्भीरी व बेड़च नदियों के किनारे मेसा के पठार पर चित्रांगद मौर्य (कुमार पाल संभव के अभिलेख के अनुसार चित्रांग) द्वारा बनवाया गया।
  • चितौड़ के किले में सात द्वार है - पाडनपोल, भैरवपोल, गणेशपोल, हनुमानपोल, जोडनपोल, लक्ष्मणपोल, रामपोल।
  • चितौड़ के किले के बारे में कहा गया है कि गढ़ तो बस चितौडग़ढ, बाकि सब गढैया।
  • क्षेत्रफल की दृष्टि राजस्थान का सबसे बड़ा किला चितौड़ का किला है। यह व्हेल मछली की आकृति का किला है। इसे राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी प्रवेश द्वार कहते है। चितौडग़ढ़ को राजस्थान में किलो का सिरमौर  व राजस्थान का गौरव कहते है। 
  • चितौड़ का किला राजस्थान का पहला लिविंग फोर्ट है। चितौडगढ़ में सर्वाधिक जनसंख्या निवास करती है।
  • राजस्थान किलों की दृष्टि से देश में तीसरा स्थान रखता है। पहला स्थान महाराष्ट्र दूसरा स्थान मध्यप्रदेश व तीसरा स्थान राजस्थान का है। राजस्थान में  लगभग 250 किले है।
  • मानमौरी अभिलेख को कर्नल जेम्स टॉड ने इंग्लैण्ड जाते समय भारी होने के कारण समुद्र मे फेंका। 


विभिन्न प्रशस्तियाँ -

  • देपाक या देपा द्वारा रचित रणकपुर प्रशस्ति (1439 ई०) में बप्पारावल व कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति बताया गया है। 
  • विजय स्तंभ पर लिखी गई कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति (अत्रि व उसके पुत्र महेश द्वारा रचित)1460 ई०में बप्पारावल से कुंभा तक के राजाओं के विरूदंों, उपलब्धियों व युद्ध विजयों का वर्णन है। संस्कृत भाषा में लिखित इस प्रशस्ति में कुंभा द्वारा रचित ग्रंथों का वर्णन किया गया है।
  • कुम्भलगढ़ प्रशस्ति (महेश द्वारा रचित, 1460 ई०) में बप्पा रावल को ब्राह्मण या विप्रवंशीय बताया है। 5 शिलाओं पर उत्कीर्ण कुंभश्याम मंदिर/मामदेव मंदिर में संस्कृत भाषा में लिखी।
  • एकलिंग नाथ के दक्षिण द्वार की प्रशस्ति 1488 ई० में बप्पा रावल के संन्यास लेने का उल्लेख है।
  • संग्राम सिंह द्वितीय के काल में 1719 ई० में लिखी गयी वैद्यनाथ प्रशस्ति में हारित ऋषि से बप्पा रावल को मेवाड़ साम्राज्य मिलने का उल्लेख है। वैद्यनाथ प्रशस्ति रूप भट्ट द्वारा लिखित पिछोला झील के निकट सीसा रास गांव के वैद्यनाथ मेंदिर में स्थित है।

3. अल्लट (951-953ई०) :

  • इसने आहड़ को दूसरी राजधानी बनाया।
  • मेवाड़ में नौकरशाही प्रथा की शुरूआत अल्लट ने की।

4. जैत्रसिंह :-

  • जैत्रसिहं के समय इल्तुतमिश 1222-29 ई० के बीच ने नागदा पर आक्रमण किया। 
  • जैत्रसिंह ने नागदा से राजधानी हटाकर चितौड़ को राजधानी बनाया।


5. तेजसिंह :-

  • 1260 ई० में मेवाड़ चित्र शैली का प्रथम ग्रन्थ श्रावक प्रतिकर्मण सूत्र  चूर्णि (कमल चंद्र द्वारा रचित) तेजसिंह के  काल में लिखा गया है।
  • मेवाड़ चित्रकला शैली राजस्थान की सबसे प्राचीन चित्रकला शैली है।
  • मेवाड़ चित्रकला शैली की शुरूआत तेजसिंह के समय हुई।


6. रावलरत्न सिंह:- (1301-1303ई०) :-

  • 1303 ई० में चितौडग़ढ़ में रावल रत्न सिंह का शासन था।  28 जनवरी 1303 ई० में अलाउद्दीन खिलजी ने चितौड़ पर आक्रमण किया व 26 अगस्त 1303 ई० को चितौडगढ़ जीता। इस युद्ध में रावल रत्न सिंह व उसके दो सैनिक गौरा व बादल मारे गए तथा पद्मिनी ने जौहर किया। इसे चितौड़ का पहला साका कहते है। 
  • अलाउद्दीन खिलजी ने चितौड़ को 8 माह तक घेरे रखा। मजनिक पत्थर फेंकने के उपकरण थे। जिसकी सहायता से चितौडगढ़ पर पत्थर फेंके गए।
  • चितौड़ के पहले साके में इतिहासकार अमीर खुसरो मौजूद था जिसने इस साके का वर्णन अपनी रचना खजाइनुल कुतुह या तारीख-ए-अलाई में किया है।
  • राघव चेतन ब्राह्मण ने अलाउद्दीन खिलजी का भडक़ाया।
  • चितौड़ पर आक्रमण करने का तात्कालिक कारण पद्मिनी की सुंदरता था। 
  • चितौडग़ढ़ दुर्ग जीतने के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग का नाम खिज्राबाद रखा। चितौड़ का नाम धाई बा पीर की दरगाह के अभिलेख में मिलता है।
  • सिंहल द्विप (श्रीलंका) के राजा गंधर्व सेन की पुत्री पद्मीनी का विवाह चितौड़ के राजा रावल रत्नसिंह से हुआ। 
  • गौरा पद्मिनी का चाचा था व बादल चचेरा भाई था।
  • रावल रत्नसिंह मेवाड़ क े गुहिल या रावल वंश का अंतिम राजा था।
  • शेरशाह सुरी के दरबारी कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने 1540 ई० में पद्मावत ग्रंथ की रचना अवधी भाषा में की। जिसमें उक्त साके का वर्णन किया।
  • चितौडग़ढ़ के किले में पद्मिनी पैलेस, गौरा बादल महल, नौगजा पीर की दरगाह, चल फिरशाह की दरगाह व कालिका माता का मन्दिर (राजस्थान का प्राचीनतम सूर्य मन्दिर ), कुंभा द्वारा निर्मित्त विजय स्तम्भ (कीर्ति स्तंभ), जीजा द्वारा निर्मित जैन कीर्ति स्तम्भ (ऋषभदेव को समर्पित), मोकल द्वारा पुननिर्माण कराया गया समिधेश्वर मंदिर (त्रिभुवन नारायण मंदिर), मीरां मंदिर, तुलजा भवानी मंदिर, सतबीस देवरी (27 जैन मंदिर) आदि दर्शनीय ऐतिहासिक स्थल है।
  • चितौडग़ढ़ दुर्ग में   बाघ सिंह की छतरी, जयमल पत्ता की छतरीयां , वीर कल्ला राठौड़ की छतरी (चार हाथों वाले देवता, शेष नाग के अवतार), मीरां के गुरू संत रैदास (चमार जाति) की छतरी, जौहर स्थल आदि ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल है।
  • चेत्र कृष्ण एकादशी को जौहर मेला चितौडग़ढ़ में लगता है।

नोट - 

  • त्रिकुट पर्वत पर  स्थित 1155 ई० में जैसल भाटी द्वारा स्वर्ण नगरी (गोल्डन सिटी) जैसलमेर में सोनारगढ़ दुर्ग (स्वर्णगिरि) बनवाया गया जो धान्वन दुर्गों में राजस्थान का महत्वपूर्ण दुर्ग है। सोनारगढ़ दुर्ग राजस्थान का दूसरा लिविंग फोर्ट है। सर्वाधिक 99 बूर्जों वाला सोनारगढ़ दुर्ग पीले पत्थरों से बना है। इस दुर्ग के बारे में कहा जाता है। ‘पत्थर की टांगें ही यहां तक ले जा सकती है’ तथा ‘बिना चूने के पत्थरों को जोडक़र बनाया गया किला है’ तथा ‘रात्रि में चांदनी के प्रकाश में इस प्रकार लगता है जैसे कोई जहाज समुद्र में लंगर डाले खड़ा है।’


सिसोदिया वंश 

  • गुहिल वंश के राजा राहप ने उदयपुर के सिसोदा ग्राम में जाकर रहना शुरू किया। राहप के ही वंशज में लक्ष्मण देव सिसोदिया हुआ।
  • लक्ष्मण देव सिसोदिया के सात पुत्रों में से छ: पुत्र चितौड़ के पहले साके (1303) में मारे गऐ तथा सातवां पुत्र हम्मीर सिसोदिया ने मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश की नींव रखी।
  • मेंवाड़ के सिसोदिया वंश की कुलदेवी बाणमाता है। बाणमाता का मंदिर उदयपुर में बना है।

1. राणा हम्मीर (1326-1364 ई०):- 

  • मेवाड़ के सिसोदिया वंश का संस्थापक राणा हम्मीर था। राणा हम्मीर ने 1326 ई० में सिसोदिया वंश की नीवं रखी।
  • राणा हम्मीर को  मेवाड़ का उद्धारक कहते है। 
  • राणा कुंभा द्वारा रचित रसिकप्रिया (जयदेव की गीतगोविन्द पर टीका) तथा अत्रि व महेश द्वारा विजय स्तम्भ पर लिखी गयी कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति (1460) में राणा हम्मीर  को विषमघाटी पंचानन (युद्ध में सिंह के समान) बताया गया है। 
  • राणा हम्मीर ने दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुगलक के चितौडगढ पर आक्रमण को विफल कर दिया।

2. राणा लाखा/लक्षसिंह (1382-1421) :- 

  • राणा लाखा का विवाह मारवाड़ के रणमल की बहिन हंसाबाई से हुआ। मोकल इन्ही की संतान थी जिसने मेंवाड़ का शासन सम्भाला।
  • राणा लाखा का पुत्र राणा चुण्डा को मेवाड़ का भीष्म कहा जाता है। रघुकु ल वंश श्री रामचंद्र के बाद पितृ भक्ति का ज्वलंत उदाहरण राणा चूंडा का मिलता है।
  • राणा लाखा के समय 1387 ई० में छित्तरमल नामक बनजारे ने पिछोला झील (उदयपुर) का निर्माण करवाया । 

नोट - पिछोला झील बेड़च नदी पर स्थित है। इसे स्वरूप सागर झील भी कहते है। 14वीं शताब्दी में बनी पिछोला झील में सीसरमा व बुझड़ा नदी आकर गिरती है। इस झील में जगमंदिर, जगनिवास महल, गलकी नटनी का चबूतरा बना है।

  • सीसे जस्ते (जुड़वा खनिज)की प्रसिद्ध खान जावर खान (उदयपुर) की खोज भी राणा लाखा के समय हुई थी। 

3. राणा मोकल :- 

  • इसने चितौडगढ़ में समिद्वेश्वर मंदिर (त्रिभुवन नारायण मंदिर) का पुननिर्माण करवाया था। 
  • समिद्वेश्वर मंदिर का निर्माण परमार राजा भोज ने करवाया।

4. राणा कुम्भा  :- (1433-1468 ई०) - 

  • राणा कुंभा का जन्म 1423 ई० में चितौडगढ़ दुर्ग में हुआ।
  • राणा कुंभा का राज्यभिषेक 10 वर्ष की आयु में 1433 ई० में चितौडगढ़ दुर्ग में हुआ।
  • राजस्थान में कला व स्थापत्य कला की दृष्टि से राणा कुंभा का काल स्वर्ण काल कहलाता है। राणा कुंभा को स्थापत्य कला का जनक कहते है।
  • कुंभा के पिता का नाम मोकल व माता का नाम सौभाग्यदेवी था।
  • राणा कुंभा को हाल गुरू (गिरी दुर्गों का स्वामी), राजगुरू (राजनीति में दक्ष), राणारासो , अभिनव भरताचार्य ,नाटकराजकत्र्ता (कुंभा ने 4 नाटक लिखे),  प्रज्ञापालक, रायरायन, महराजा धिराज, महाराणा, चापगुरू (धनुर्विद्या में पारंगत ), शैलगुरू, नरपति, परमगुरू , हिन्दू सूत्राण, दान गुरू, तोडरमल (संगीत की तीनों विधाओं में श्रेष्ठ), नंदनदीश्वर(शैव धर्म का उपासक) आदि उपाधियां प्राप्त थी।
  • राणा कुंभा को अश्वपति, गणपति, छाप गुरू (छापामार पद्धति में कुशल) आदि सैनिक उपाधियां भी प्राप्त थी।
  • ‘वीर विनोद’ ग्रंथ के रचयिता कविराज श्यामल दास (जन्म - मेवाड़ क्षेत्र में भीलवाड़ा के ढोलकिया गांव) के अनुसार कुंभा ने राजस्थान में कुल 84 गिरी दुर्गों में से 32 गिरी दुर्ग बनवाये। अत: कुम्भा को हाल गुरू अर्थात गिरी दुर्गों का स्वामी कहते है।
  • मेवाड़ के राणा कुम्भा व मारवाड़ के राव जोधा के बीच आवल-बावल की संधि हुई। इस संधि के द्वारा मेवाड़ व मारवाड़ की सीमा का निर्धारण किया गया तथा जोधा ने अपनी पुत्री श्रृंगारी देवी का विवाह राणा कुम्भा के पुत्र रायमल से किया। इसकी जानकारी श्रृंगारी देवी द्वारा बनाई गयी घोसुण्डी की बावड़ी (चितौडग़ढ) पर लगी प्रशस्ति से मिलता है।
  • 1437 ई० में राणा कुम्भा व मालवा के शासक महमूद खिलजी प्रथम के बीच सारंगपुर का युद्ध हुआ। इस युद्ध में राणा कुम्भा विजयी हुआ तथा युद्ध विजयी की खुशी में चितौडग़ढ़ दुर्ग में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया। 
  • विजय स्तम्भ विष्णु को समर्पित है अत: इसे विष्णु ध्वज या विष्णु स्तम्भ भी कहते है।
  • विजयस्तम्भ 122 फीट ऊँचा व 9 मंजिला इमारत है। इसमें 157 सीढ़ीयां है तथा इसकी तीसरी मंजिल पर 9 बार अल्लाह लिखा है। यह राणा कुंभा के समय की सर्वाेतम कलाकृति है। विजय स्तंभ बनाने में कुल 90 लाख रूपये खर्च हुए। 
  • महाराणा स्वरूप सिंह के समय विजय स्तंभ पर बिजली गिरने से यह क्षतिग्रस्त हो गया तब स्वरूप सिंह ने विजय स्तंभ का पुन: निर्माण करवाया।
  • विजयस्तम्भ (1440-48 ई० में बना) पर अत्रि व उसके पुत्र महेश द्वारा कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति (1460 ई०) लिखी गयी इसलिए विजयस्तम्भ को कीर्तिस्तम्भ भी कहते है।
  • विजय स्तम्भ के शिल्पी जैता, नापा, पंूजा थे। विजयस्तम्भ पर भारतीय देवी-देवीताओं के चित्र उत्कीर्ण है। अत: विजय स्तम्भ को भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष या अजायबघर कहते है। 
  • कर्नल टॉड ने विजय स्तंभ को कुतुब मिनार से बेहतरीन इमारत बताया है तथा फग्र्यूसन ने विजय स्तंभ की तुलना रोम के टार्जन से की है। 
  • राजस्थान ने 15 अगस्त 1949 ई० को अपना सर्वप्रथम डाक टिकट विजय स्तंभ पर जारी किया। यह डाक टिकट एक रूपये का था। 
  • माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (राजस्थान-अजमेर), जे०के.सीमेंट व राजस्थान पुलिस का प्रतीक चिन्ह विजय स्तम्भ है। 
  • 1456 ई० में गुजरात के कुतुबद्दीनशाह व मालवा शासक महमूद खिलजी प्रथम के बीच कुम्भा के विरूद्ध चम्पानेर की संधि हुई। इस संधि में तय किया गया कि दोनों मेवाड़ के राणा कुंभा को मारकर मेवाड़ आपस में बांट लेंगे। लेकिन कुम्भा ने इस संधि को विफल कर दिया।

नोट -  चितौडगढ़ दुर्ग में जैन संत जीजा द्वारा बनवाया गया जैन कीर्ति स्तंभ भी है। जो प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव/आदिनाथ को समर्पित है। जैन कीर्ति स्तंभ 75 फिट ऊंचा सात मंजिला इमारत है। 


  • कुंभलगढ़ दुर्ग -
  • कुंभलगढ़ दुर्ग कुंभा द्वारा अपनी पत्नी कुंभलदेवी की याद में 1443-59 ई० के बीच बनवाया गया। कुंभलगढ़ दुर्ग को कुंभलमेर दुर्ग, मछींदरपुर दुर्ग, बैरों का दुर्ग, मेवाड़ के राजाओं की शरण स्थली, कुंभपुर दुर्ग, कमल पीर दुर्ग भी कहा जाता है।
  • कुंभलगढ़ दुर्ग में कृषि भूमि भी है। अत: कुंभलगढ़ दुर्ग को राजस्थान का आत्मनिर्भर दुर्ग कहा जाता है। 
  • कुं भलगढ़ दुर्ग में 50 हजार व्यक्ति निवास करते थे।
  • कुंभलगढ़ दुर्ग हाथी की नाल दर्रे पर अरावली की जरगा पहाड़ी पर कुंभलगढ़ अभयारण्य में राजसमंद जिले में स्थित है। कुंभलगढ़ दुर्ग की प्राचीर भारत में सभी दुर्गों की प्राचीर से लम्बी है। इसकी प्राचीर 36 किमी० लम्बे परकोटे से घिरी है। अत: इसे भारत की मीनार भी कहते है। इसकी प्राचीर पर एक साथ चार घोड़े दौड़ाए जा सकते है।
  • कुंभलगढ़ दुर्ग के लिए अबुल फजल ने कहा है कि  ‘यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर बना है कि नीचे से ऊपर देखने पर सिर पर रखी पगड़ी गिर जाती है।’
  • कर्नल टॉड ने कुंभलगढ़ दुर्ग की दृढ़ता के कारण इसको ‘एट्रूस्कन’ दुर्ग की संज्ञा दी है।
  • कुम्भलगढ़ दुर्ग में पांच द्वार है -

1. ओरठपोल  2. हल्लापोल  3. हनुमानपोल  4. विजयपोल   5. रामपोल

  • कुंभलगढ़ दुर्ग में पृथ्वीराज सिसोदिया (उडना राजकुमार) की 12 खंभों की छतरी बनी है।
  • कुम्भगढ़ दुर्ग में सबसे ऊँचाई पर बना एक छोटा दुर्ग कटारगढ़ है। जहाँ से पूरा मेवाड़ दिखाई देता है अत: कटारगढ़ दुर्ग को मेवाड़ की आंख कहते है। कटारगढ़ दुर्ग/मामदेव मंदिर कुम्भा का निवास स्थल था तथा इसी दुर्ग में कुम्भा के पुत्र ऊदा/उदयकरण ने कुम्भा की हत्या की।
  • कुंभलगढ़ दुर्ग में पन्नाधाय उदयसिंह को बचा कर लाई थी तथा कुम्भगढ दुर्ग में ही 1537 ई० में उदयसिंह का राज्यभिषेक हुआ।
  • कटारगढ़ दुर्ग (कुंभलगढ़ दुर्ग) में 9 मई 1540 ई० को महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। 
  • हल्दीघाटी युद्ध (1576 ई०) के बाद 1578 ई० ई में महाराणा प्रताप ने कुंभलगढ़ दुर्ग को अपनी राजधानी बनाया तथा यहीं महाराणा प्रताप का 1578 ई० में दूसरा व औपचारिक राज्यभिषेक हुआ।
  • मेवाड़ प्रजामण्डल के संस्थापक माणिक्य लाल वर्मा (मेवाड़ का गांधी) को प्रजामण्डल आंदोलन के समय कुंभलगढ़ दुर्ग में ही नजरबंद रखा गया।
  • कुंभलगढ़ दुर्ग का शिल्पी मंडन था। कुम्भा के शिल्पी मंडन ने देवमूर्ति प्रकरण (रूपावतार), राजमण्डन, कोदंड मण्डन, रूप मण्डन, देवमण्डन, प्रासाद मण्डन व राजवल्लभ ग्रंथ लिखे। 
  • राजवल्लभ ग्रंथ आवासीय गृहों, राजमहल निर्माण से तथा प्रासाद मंडन देवयालयों के निर्माण से संंबंधित ग्रंथ है। 
  • रूप मंडन व देव मूर्ति प्रकरण मूर्ति निर्माण कला से संबंधित ग्रंथ है।
  • कोदंड मंडन धनु विद्या से संबंधित ग्रंथ है।
  • मंडन के भाई नाथा ने वास्तुमंजरी ग्रंथ की रचना की तथा मंडन के पुत्र गोविंद ने कलानिधि, उद्धारधोरणी व द्वार दीपिका आदि ग्रंथ लिखे।
  • कुम्भा ने अचलगढ़ दुर्ग (सिरोही) का पुन:निर्माण करवाया, बंसतीगढ दुर्ग (सिरोही), भीलों से सुरक्षा हेतु भोमट दुर्ग (सिरोही) तथा मेरों के प्रभाव को रोकने के लिए बैराठ दुर्ग (बदनौर, भीलवाड़ा) का निर्माण करवाया।  भोमट क्षेत्र भीलों का निवास क्षेत्र कहलाता है।
  • कुम्भा ने संगीतराज, संगीतसार, संगीत मीमांशा, सूढ प्रबंध व रसिकप्रिया (जयदेव की गीत गोविन्द पर टीका) आदि ग्रंथों की रचना की। कुंभा द्वारा लिखे गए संगीत ग्रंथों में सबसे बड़ा ग्रंथ संगीतराज है।
  • कुंभा का संगीत गुरू सारंगव्यास था तथा चित्रकला गुरू हीरानंद था। हीरानंद ने 1423 ई में (राणा मोकल के समय) मेवाड़ चित्रकला शैली का सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘सुपास नाहचरियम’ की रचना की।
  • कुम्भा की पुत्री रमाबाई संगीत की विदुषी थी जिसे वागेश्वरी की उपाधि प्राप्त थी।
  • कुम्भा का दरबारी कवि कान्हव्यास था जिसने एकलिंगनाथ माहात्मय (संस्कृत भाषा) की रचना की। एकलिंग महात्मय संगीत के स्वरों से संबंधित ग्रंथ है। जिसका प्रथम भाग राजवर्णन कुम्भा द्वारा लिखा गया है। 
  • राणा कुम्भा के समय 1439 ई० में पाली में राणकपुर के जैन मन्दिर (कुम्भलगढ अभयारण्य) में का निर्माण धरणक सेठ द्वारा करवाया गया इन मंदिरों का शिल्पी देपाक/ देपा था।
  • रणकपुर के जैन मंदिर मथाई नदी के किनारे स्थित है। रणकपुर के जैन मन्दिरो को चौमुखा मन्दिर भी कहते है। यह मन्दिर प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ (ऋषभदेव) को समर्पित है।
  • रणकपुर के जैन मन्दिर में 1444 खम्भे है। अत: इन्हें वनों का मन्दिर या खम्भों का मन्दिर या स्तम्भों का वन भी कहते है।
  • राणा कुम्भा द्वारा बदनौर (भीलवाड़ा) में कुशाल माता का मंदिर बनवाया गया।
  • कुंभा कालीन जैन आचार्य - सोमसुंदर सुरी, जयशेखर सुरी, भुवनकीर्ति एवं सोमदेव प्रमुख थे।
  • कुंभा ने चितौडगढ़ दुर्ग का पुन: निर्माण करवाया। 
  • कुंभा ने कैलाशपुरी, उदयपुर स्थित बप्पा रावल द्वारा निर्मित एकलिंगनाथ मंदिर का पुन:निर्माण करवाया।
  • कुंभा को राजस्थानी इतिहास में युग पुरूष कहा गया है। 
  • कुंभा धर्म सहिष्णु शासक था। उसने आबू पर जाने वाले तीर्थ यात्रियों से लिया जाने वाला कर समाप्त कर दिया था। 
  • हरविलास शारदा के अनुसार, ‘कुंभा एक महान शासक, महान सेनाध्यक्ष, महान निर्माता और वरिष्ठ विद्वान था।’

5. रायमल - रायमल के तीन पुत्र थे -
1. जयमल   2. पृथ्वीराज    3. राणा सांगा (1509) 
         रायमल
    जयमल                      पृथ्वीराज सिसोदिया            राणा सांगा/संग्राम सिंह
बूंदी  के सूरजनहाड़ा       तेजगति से घोड़ा चलाने 1509 में राज्यभिषेक
की पुत्री तारा से विवाह    के कारण इसे उडऩा तब दिल्ली सल्तनत का
किया। (टोडा टोंक जीते    राजकुमार कहते है। राजा सिकन्दर लोदी था।
बिना)तो सुरजन हाड़ा ने  इसने टोड़ा टोक को जीतकर  
इसे मरवा दिया।          सूरजनहाड़ा की पुत्री तारा से  विवाह किया।   इसने अपनी पत्नी तारा के नाम  पर अजयमेरू दुर्ग का नाम तारागढ रखा। इसकी छतरी (12 खंभे) कुंभलगढ दुर्ग में है।

6. राणा सांगा/राणा संग्राम सिंह (1509-27 ई०) - 

  • राणा सांगा को हिन्दू पात बादशाह कहा जाता है। राणा सांगा का राज्यभिषेक 24 मई 1509 में हुआ। इस समय दिल्ली सल्तनत का राजा सिकन्दरलोदी था।
  • राणा संग्राम सिंह का जन्म 12 अप्रैल 1482 ई० को हुआ।
  • पिता - रायमल तथा माता - रतन कुंवर।  
  • राणा सांगा के शरीर पर 80 घाव थे। अत: कर्नल जेम्स टॉड ने राणा सांगा को सैनिकों का भग्रावेश कहा।
  • कर्नल टॉड के अनुसार - राणा सांगा में सात राजा, नौ राव और 104 सरदार उसकी सेवा में उपस्थित रहते थे।
  • 1517 ई० में राणा सांगा व इब्राहिम लोदी के बीच खातोली (बूंदी) का युद्ध हुआ। जिसमें राणा संागा विजयी हुआ।
  • 1518 ई० में राणा सांगा व इब्राहिम लोदी के बीच बाड़ी का युद्ध (धौलपुर) हुआ। जिसमें राणा सांगा विजयी हुआ। बाड़ी के युद्ध में इब्राहिम लोदी ने मियां हुसैन तथा मिया माखन के नेतृत्व में सेना भेजी थी।
  • 1519 ई० में राणा संागा व मांडू (गुजरात) के महमूद खिलजी द्वितीय के बीच गागरौन का युद्ध (झालावाड़) में हुआ। जिससे राणा सांगा विजयी हुआ तथा महमूद खिलजी द्वितीय का कमरबन्द व ताज छीन लिया।
  • पंजाब के दौलत खां व इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खां लोदी ने फरगना (काबुल) के शासक बाबर को भारत आमंत्रित किया।
  • बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी (तुर्की भाषा) में राणा सांगा द्वारा बाबर को भारत आमंत्रित करने का उल्लेख किया है। तुजुक-ए-बाबरी में बाबर ने कमल के फूल के बाग का वर्णन किया है। जो धौलपुर में है।
  • 21 अप्रेल 1526 में बाबर व इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध (हरियाणा) हुआ जिसमें बाबर विजयी हुआ तथा भारत में मुगल वंश की नींव रखी गयी।
  • पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद महमूद लोदी व हसन खां मेवाती दो अफगान सरदार सांगा के पक्ष में मिल गये।
  • 15 फरवरी 1527 को राणा सांगा व बाबर के बीच बयाना का युद्ध (भरतपुर) हुआ। जिसमें राणा सांगा विजयी हुआ। इसी समय काबुल से आये एक ज्योतिष मुहम्मद शरीफ ने बाबर की पराजय की भविष्यवाणी कर दी।
  • 17 मार्च 1527 (प्रात: 9.30 बजे) को राणा संागा व बाबर के बीच खानवा का युद्ध (भरतपुर) हुआ। जिसमें मुगल शासक बाबर विजयी हुआ तथा खानवा के इस निर्णायक युद्ध के बाद मुस्लिम (मुगल) सता की वास्तविक स्थापना हुई। खानवा स्थान फतेहपुर, सीकरी आगरा से 10 मी० की दूरी पर स्थित है। खानवा रूपवास तहसील (भरतपुर) में स्थित है। खानवा गंभीरी नदी के किनारे है।
  • खानवा युद्ध के राणा सांगा ने सभी राजपूत हिन्दू राजाओं को पत्र लिखकर युद्ध में आमंत्रित किया। राजपूतों में इस प्रथा को पाती परवण कहा जाता है।
  • खानवा के युद्ध में आमेर सेना का नेतृत्व पृथ्वीराज कच्छवाह, मारवाड़ के मालदेव, बूंदी के नारायण राव, सिरोही के अखैहराज देवड़ा प्रथम, भरतपुर के अशोक परमार, बीकानेर के कल्याणमल, चंदेरी का मेदीनीराय, मेड़ता का रायमल राठौड़, डूंगरपुर का रावल उदयसिंह, सलम्बूर का रावल रत्न सिंह ने किया।  
  • अशोक परमार की वीरता से प्रभावित होकर राणा सांगा ने अशोक परमार को बिजौलिया ठिकाना भेंट किया। अत: बिजौलिया ठिकाने (भीलवाड़ा) का संस्थापक अशोक परमार था।
  • राणा सांगा अन्तिम हिन्दू राजपूत राजा था, जिसके समय सारी हिन्दू राजपूत जातियां विदेशियों को बाहर निकालने के लिए एकजुट हो गई थी। 
  • खानवा युद्ध में चंद्रभान, भोपत राम, माणिक चंद्र, दलपत, रावत जग्गा, रावत बाघ, कर्मचंद, ईडर का भारमल आदि राजपूत सरदार मारे गये।
  • खानवा के युद्ध में बाबर ने जेहाद (धर्मयुद्ध) का नारा दिया। युद्ध जीतने के बाद गाजी की उपाधि धारण की तथा मुसलमानों से लिया जाने वाला व्यापारिक कर तमगा कर माफ कर दिया।
  • खानवा के युद्ध में बाबर ने राजस्थान में सर्वप्रथम तोपखाने व तुगलमा पद्धति का प्रयोग किया। यही उसकी जीत का कारण था। 
  • खानवा के युद्ध में रायसीन के सिलहंदी तंवर व नागौर के खानजादा ने राणा सांगा के साथ विश्वासघात किया।
  • खानवा के युद्ध में राणा सांगा की सेवा में हरावल सेना का नेतृत्व एकमात्र मुस्लिम सेना हसन खां मेवाती ने किया तथा युद्ध में मारा गया।
  • इतिहासकार लेनपुल के अनुसार - खानवा के युद्ध ने हिन्दुओं के महान संगठन को कुचल दिया।
  • खानवा के युद्ध में झाला अज्जा ने सांगा का राज्य चिन्ह व मुकुट लेकर सांगा की सहायता की व अपना बलिदान दिया। झाला शासक कीर्तिगढ़ सिन्धु प्रदेश के मूल निवासी थे।
  • खानवा युद्ध में घायल राणा सांगा को मालदेव द्वारा बसवा, दौसा पहुंचाया गया। कालपी, उत्तरप्रदेश में 30 जनवरी 1528 को राणा सांगा की मृत्यु हो गई।
  • राणा सांगा मध्यकालीन भारत का अंतिम हिंदूपात (हिन्दुओं को एकजुट करने वाला राजा था।)
  • मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में राणा सांगा की छतरी बनी है। बसवा, दौसा में राणा सांगा का स्मारक बना है।

नोट -   मांडलगढ़ का नाहर नृत्य प्रसिद्ध है। जो भीलों की एक लघु नृत्य नाटिका है। भीलों के अन्य नृत्य गवरी, गैर (केवल पुरूष भाग लेते है), नेजा (खेल नृत्य), हाथी मना (विवाह उत्सव पर) आदि है। गवरी राजस्थान का सबसे प्राचीनतम लोकनाट्य है।
कर्मावती/कर्णवती - 

  • 1533 ई० में गुजरात के बहादुर शाह ने चितौड पर आक्रमण किया लेकिन कर्मावती ने कमरबन्द व राज्य चिन्ह देकर बाहदुरशाह से संधि की।
  • 1534 ई में गुजरात के बहादुर शाह ने चितौड पर पुन: आक्रमण किया। इसे चितौड का दूसरा साका कहते है। चितौड के दूसरे साके में कर्मावती ने 13 हजार रानियों के साथ जोहर किया (यह इतिहास का सबसे बड़ा जोहर था।) तथा बाघ सिंह के नेतृत्व में केसरिया हुआ। बाघ सिंह की छतरी चितौडग़ढ दुर्ग में बनी है। 

मीरां बाई - 

  • मीरां बाई का जन्म 1498 ई० में मेड़ता के राठौड़वंश में हुआ। मीरां के बचपन का नाम पेमलदे था। 
  • मीरां मेड़ता के राठौड़वंश के राव दूदा की पौत्री व राव रत्नसिंह की पुत्री थी। मीरां का जन्म कुडकी गांव पाली में हुआ।
  • मीरां का विवाह राणा सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ। भोजराज की मृत्यु के बाद मीरां ने दास-दासी संप्रदाय चलाया।
  • मीरां के गुरू संत रैदास थे जो चमार जाति के थे। संत रैदास की छतरी चितौडग़ढ़ दुर्ग में बनी है। 
  • मीरां को राजस्थान की राधा कहते है। मीरां बाई ने वृंदावन (मथुरा) व द्वारका गुजरात में अपना अंतिम समय बिताया। 
  • द्वारका, गुजरात के रणछौर मंदिर में मीरां कृष्ण प्रतिमा में विलिन हो गई।
  • मीरां महोत्सव चितौडगढ़ में मनाया जाता है। 
  • 1952 में मीरां बाई पर दो आने का डाक टिकट जारी किया गया।
  • नोट - गवरी बाई को वागड़ की मीरां कहा जाता है।
  • उदयसिंह :- (1537-72 ई०)
  • उदयसिंह का जन्म चितौडग़ढ़ में हुआ था।
  • पन्नाधाय (गुर्जर जाति) ने पत्तल चुगने वाले कीरतबारी की सहायता से उदयसिंह को चितौडग़ढ़ से निकाला तथा कुंभलगढ़ दुर्ग के द्वारपाल आशादेवपुरा की सहायता से कुंभलगढ़ दुर्ग में रखा ।
  •  उदयसिंह का राज्यभिषेक 1537 ई. में कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ। यहीं 9 मई 1540 ई० को यहीं उदयसिंह के पुत्र महाराणा प्रताप का जन्म हुआ।
  • अफगान शासक शेरशाह सूरी ने चितौडगढ़ पर आक्र मण किया तो उदयसिंह ने चितौडग़ढ़ दुर्ग की चाबियां शेरशाह सूरी तक पहुंचायी।  अफगानों  की अधीनता स्वीकार करने वाला मेवाड़ का पहला राजा उदयसिंह था।
  • 1559 ई० में उदयसिंह ने उदयपुर/झीलों की नगरी/पूर्व का वेनिस/व्हाईट सिटी/सेलानियों का स्वर्ग/माउण्टेन-फाउण्टेन की नगरी/सितारों की नगरी नगर बसाया।
  • छापामार पद्धति (गोरिला पद्धति) का सर्वप्रथम प्रयोग करने वाला राजस्थान का प्रथम राजा उदयसिंह था।
  • 1567 ई० में अकबर ने चितौड़ पर आक्रमण किया तब उदयसिंह सिरोही चला गया व चितौडग़ढ़ दुर्ग अपने सैनिक जयमल व फता को सौंपा गया। जयमल  व फता अकबर के साथ युद्ध करते समय मारे गये तथा फूल कंवर ने जौहर किया। इसे चितौडग़ढ़ का तीसरा साका कहते है। जयमल पत्ता की छतरियां चितौडगढ़ दुर्ग में बनी है। जयमल पत्ता की वीरता से प्रभावित होकर अकबर ने आगरा दुर्ग के बाहर इनकी मूर्तियां बनवाई। ऐसी ही मूर्तियां जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर) के बाहर स्थित है। 
  • 25 फरवरी 1568 ई० को अकबर ने चितौडग़ढ फतह कर लिया। 
  • 28 फरवरी 1572 ई० में गोगुन्दा उदयपुर में उदयसिंह की मृत्यु हो गई और इसी स्थान पर उसके पुत्र महाराणा प्रताप का राज्यभिषेक हुआ।
  • कर्नल टॉड ने लिखा है कि - यदि सांगा और प्रताप के बीच में उदयसिंह न होता तो इतिहास के पन्ने अधिक उज्जवल होते।
क्रमशः .....
 राजस्थान के मेवाड़  राजवंशो के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी  (भाग -2)