राजस्थान के मेवाड़ राजवंशो के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी (भाग -2)

मेवाड़ राजवंश - शेष भाग -1
महाराणा प्रताप (1572-97 ई०)
  • महाराणा प्रताप सिसोदिया वंश का महान राजा था।
  • महाराणा प्रताप को कर्नल टॉड ने मेवाड़ केसरी कहा है। महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी का शेर भी कहा जाता है।
  • महाराणा प्रताप ने मेवाड़ में कुल 25 वर्ष तक शासन किया। 
  • महाराणा प्रताप के पिता उदयसिंह व माता जैवन्ता बाई थी।
  • उदयसिंह ने अपनी रानी भटियाणी (धीर बाई) के प्रभाव में आकर जगमाल को उत्तराधिकारी बनाया।
  • इतिहास का एकमात्र राजा महाराणा प्रताप है,  जिसका जन्म 1597 विक्रमी संवत् व मृत्यु 1597 ई० में हुई।
  • महाराणा प्रताप का जन्म बादल महल (कटारगढ) कुम्भलगढ दुर्ग में 9 मई 1540 ई० (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया, विक्रमी संवत् 1597) को हुआ। 
  • इसके बचपन का नाम  कीका (भीलों में छोटे बालक को कीका कहते है।) था।
  • महाराणा प्रताप का राज्यभिषेक 28 फरवरी 1572 ई० में गोगुन्दा, उदयपुर  के जंगलों में 32 वर्ष की आयु में हुआ। 
  • 1570 ई० में अकबर अजमेर दरगाह पर जियारत करने आया। तब अकबर ने अजमेर में मैग्जीन दुर्ग (अकबर का किला) बनवाया।  राजस्थान में मुस्लमानी पद्धति  से बना एकमात्र किला मैग्जीन का किला है। इसे राजस्थान का शस्त्रागार या अकबर का दौलतखाना भी कहा जाता है। 1908 ई० में मैग्जीन के किले को राजपूताना संग्रहालय में बदल दिया गया है। राजस्थान आने वाला प्रथम अंग्रेंज सर टॉमस रोमैग्जीन के किले में ही  1616 ई० में जहाँगीर से मिला था। 
  • अकबर ने हल्दीघाटी युद्ध की व्यूह रचना मैग्जीन दुर्ग में ही रची थी।
  • अकबर द्वारा महाराणा प्रताप से संधि करने हेतु निम्न 4 संधि प्रस्तावकों को भेजा गया। 

1. 1572 - जलाल खांं
2. जून 1573 - मिर्जा राजा मानसिंह (मिर्जा राजा मानसिंह महाराणा प्रताप के पुत्र अमरसिंह प्रथम से उदयसागर झील के किनारे मिला।)
3. सितम्बर 1573 - भगवन्तदास
4. दिसम्बर 1573 - टोडरमल

  • 18 जून 1576 ई० (गोपीनाथ शर्मा के अनुसार 21 जून 1576ई०) को हल्दीघाटी का युद्ध  /रक्त तलाई का युद्ध हुआ।  हल्दीघाटी का युद्ध मुगल सेनापति मिर्जा राजा  मानसिंह व महाराणा प्रताप के बीच हुआ। 
  • हल्दीघाटी स्थान को स्वतंत्रता प्रेमियों का तीर्थस्थल कहा जाता है। हल्दीघाटी स्थान गोगुन्दा व खमनौर की पहाडिय़ों के बीच बनास नदी के किनारे राजसमन्द जिले में स्थित है।
  • हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व आमेर के मिर्जा राजा मानसिंह ने किया।  मानसिंह ने मुगल सेना का नेतृत्व करते हुए मोलेला गांव (राजसमंद) में पड़ाव  डाला तथा प्रताप की सेना में लोहसिंह गांव (राजसमंद) में पड़ाव डाला। मायरा की गुफा, उदयपुर में महाराणा प्रताप का शस्त्रागार था। हल्दीघाटी युद्ध के समय प्रताप  ने मुख्य नियंत्रण केन्द्र केलवाड़ा, राजसमंद को बनाया।
  • हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक युद्ध था। लेकिन राजप्रशस्ती व राजविलास के अनुसार हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप विजयी हुआ।
  • हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की हरावल सेना का नेतृत्व हकीम खां सूरी  पठान ने किया। हकीम खां सूरी का मकबरा खमनौर (राजसमंद) में बना है।
  • हल्दीघाटी युद्ध में भील सेना का नेतृत्व राणा पुंजा ने किया। 
  • हल्दीघाटी युद्ध को बनास का युद्ध तथा हाथियों का युद्ध भी कहा जाता है। कर्नल जेम्स टॉड ने ‘हल्दीघाटी को मेवाड़ की थर्माेपोली’ कहा है। हल्दीघाटी युद्ध को अबुल फजल  ने खमनौर का युद्ध व बंदायूनी ने गोगुन्दा का युद्ध कहा है।
  • हल्दीघाटी युद्ध के बाद इतिहासकार बंदायूनी ने राजपुतों के खून से अपनी दाढ़ी को रंगा। हल्दीघाटी युद्ध में प्रसिद्ध इतिहासकार बंदायूनी मौजूद था।
  • महाराणा प्रताप की सेना में रामप्रसाद, गजप्रसाद, गजमुक्त व लूणा हाथी थे। हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप के प्रिय हाथी का नाम रामप्रसाद था जिसे अकबर ने पीर  प्रसाद नाम दिया था। हल्दीघाटी युद्ध में मिर्जा राजा मानसिंह के हाथी मर्दाना था। 
  • झाला बीदा या झाला मन्ना ने महाराणा प्रताप का राज्य चिन्ह् लेकर स्वयं लडऩा शुरू किया तथा  हल्दीघाटी युद्ध में अपना बलिदान देकर प्रताप  को युद्ध के मैदान से  निकाला।
  • चेतक की समाधि बलिचा गाँव (उदयपुर) में बनी है। चेतक की समाधि को चबूतरा कहा जाता है। बलिचा गाँव में राजस्थान का एकमात्र ढ्ढ ढ्ढ रू (भारतीय प्रबन्धन  संस्थान) खुला है। 
  • हल्दीघाटी युद्ध के बाद प्रताप की सेना कोल्यारी गांव (उदयपुर) रूकी। अकबर ने हल्दीघाटी युद्ध के बाद चितौड़ व उदयपुर पर अधिकार कर लिया तथा अकबर ने उदयपुर का नाम मुहम्मदाबाद कर दिया।
  • शक्तिसिंह द्वारा (महाराणा प्रताप का भाई) द्वारा महाराणा प्रताप को घोड़ा देकर सहायता दी जाती है।
  • पाली के भामाशाह व ताराचंद ने प्रताप को 20000 स्वर्ण मुद्राएं देकर आर्थिक सहायता दी। भामाशाह को मेवाड़ का दानवीर कहा जाता है। कर्नल टॉड ने भामाशाह  को मेवाड़ का कर्ण कहा है।
  • मेवाड़ फउंडेशन का भामाशाह पुरस्कार दानदाताओंं को दिया जाता है तथा साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए हकीम खां सूरी सम्मान दिया जाता है।
  • हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने कुंभलगढ़ दुर्ग को राजधानी बनाया तथा 1578  ई० को महाराणा प्रताप के कुम्भलगढ़ दुर्ग को केन्द्र बनाकर मुगलों का विरोध किया। महाराणा प्रताप का दूसरा  व औपचारिक राज्यभिषेक 1578ई० में कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ इस समय मारवाड़  का राजा चन्द्रसेन वहाँ मौजूद था।
  • अकबर ने कुम्भलगढ़ दुर्ग पर तीन बार शहबाज खां को चौथी बार अब्दुल रहीम  खानेखाना को तथा अन्तिम पांचवी बार जगन्नाथ कच्छवाह को प्रताप के विरूद्ध  आक्रमण हेतु भेजा।
  • कुम्भलगढ़ दुर्ग छोडक़र महाराणा प्रताप जंगलों व पहाडिय़ों में रहकर छापामार पद्धति से मुगलों का विरोध करता रहा। महाराणा प्रताप ने छाछन की पहाडिय़ों (उदयपुर) में रहकर समय बिताया।
  • महाराणा प्रताप की पत्नि अजब दे पंवार जगंलों में साथ रही तथा अमरसिंह प्रथम   अजब दे पंवार का ही पुत्र था।
  • मेवाड़, में दिवेर (राजसमंद), देसुरी (राजसमंद), देवल (डूंगरपुर) व देवारी (उदयपुर) चार प्रमुख ठिकाने थे। सबसे महत्वपूर्ण ठिकाना दिवेर ठिकाना था। जहाँ अकबर ने सुल्तान खां को मुखितयार नियुक्त किया था।
  • महाराणा प्रताप ने अक्टूबर 1582 ई० में मुगलों का विरोध शुरू किया। इसे दिवेर का युद्ध कहते है। क्योंकि यह युद्ध लम्बे समय तक चला। अत: इसे कर्नल टॉड  ने मेवाड़ का मैराथन नाम दिया। दिवेर के युद्ध (1582 ई०) को महाराणा प्रताप की विजयों का श्री गणेश कहा जाता है।  दिवेर युद्ध में सुल्तान खां मारा गया।
  • 1584ई० में अकबर ने महाराणा प्रताप के विरूद्ध जगन्नाथ कछवाहा को भेजकर अंतिम अभियान किया। इसके बाद 1584 से 1597 ई० तक अंतिम 12 वर्षों में महाराणा प्रताप व अकबर के बीच कोई युद्ध नहीं हुआ। इतिहासकार इसे अघोषित संधि कहते है।
  • 1585 ई० में प्रताप ने अपनी आपातकाल व अंतिम राजधानी चावण्ड (उदयपुर) को बनाया। दिवेर विजय व चावण्ड को राजधानी बनाने के बाद महाराणा प्रताप ने चितौड़ व मांडलगढ़ को छोडक़र पूरे मेवाड़ पर अधिकार कर लिया।
  • चावण्ड चित्रकला शैली का विकास महाराणा प्रताप के समय हुआ। इस शैली का   1605 ई० में अमरसिंह प्रथम के समय का रागमाला पर नसिरूद्दिन चित्रकार द्वारा बनाया गया  चित्र महत्वपूर्ण है।
  • चावण्ड में चामुण्डा देवी का मन्दिर महाराणा प्रताप द्वारा बनाया गया। महाराणा प्रताप की कुल देवी बाण माता थी।
  • 19 जनवरी 1597 ई० को 57 वर्ष की आयु में चावण्ड (उदयपुर) में धनुष पर प्रत्यंचा चढाते समय महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई। महाराणा प्रताप की 8 खम्भों की छतरी  बंाडोली (उदयपुर) में बनी है। महाराणा प्रताप का स्मारक मोती मगरी (उदयपुर) व दिवेर (राजसमंद) में बना है।
  • सुजानगढ़ (चुरू) में कवि कन्हैया लाल सेठीया ने अपनी रचना पाथल और पीथल (राजस्थानी भाषा) में पाथल शब्द का प्रयोग महाराणा प्रताप के लिए तथा पीथल शब्द का प्रयोग पृथ्वीराज राठौड़ (बीकानेर के कल्याणमल का पुत्र) के लिया किया गया है।
  • कन्हैया लाल सेठीया की अन्य रचनाएं धरती धोरां री, लीलटास, बनफूल (सेठीया जी का पहला उपन्यास) है।
  • राजस्थान में खेल के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वाेच्च सम्मान महाराणा प्रताप खेल रत्न पुरस्कार/राजस्थान खेल रत्न पुरस्कार  है। पहला राजस्थान खेल रत्न पुरस्कार तीरंदाज लिम्बा राम को दिया गया है। 
अमरसिंह प्रथम (1597-1620 ई०) -
  • 1605 ई० में मेवाड़ स्कूल की चावण्ड चित्रकला शैली का स्वर्णकाल अमरसिंह प्रथम का काल था। इसके समय चित्रकार नासिरूद्दीन ने रागमाला पर चित्र बनाया।
  • 1615 ई० में मेवाड़ के अमरसिंह प्रथम व मुगल शासक जहांगीर के बीच मुगल मेवाड़ संधि हुई। मुगल मेवाड़ संधि के बाद 1050 वर्ष बाद मेवाड़ स्वतंत्रता का अंत हुआ। मुगल मेवाड़ संधि की शर्ते निम्र थी -
1. मेवाड़ का राजा कभी मुगल दरबार में उपस्थित नहीं हेागा व शाही सेना में महाराणा एक हजार सवार रखेगा।
2. मेवाड़ के राजा का पुत्र मुगल दरबार में उपस्थित होगा।
3. चितौडग़ढ दुर्ग की किलेबन्दी और निर्माण नहीं करवाया जाएगा।
4. मेवाड़ मुगलों से कोई वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं करेगा। 
  • मुगल मेवाड़ संधि के दु:ख से अमर सिंह प्रथम राजपाट त्याग कर वैरागी जीवन बिताया तथा आहड़ (उदयपुर) में इसकी मृत्यु हुई। 
  • आहड़ (उदयपुर) की महासत्तियों में सबसे पहली छत्तरी महाराणा अमरसिंह प्रथम की छतरी है।
कर्ण सिंह (1620-28 ई०) -
  • करणसिंह ने पिछोला झील (उदयपुर) में जग मन्दिरों का निर्माण शुरू करवाया। 1622 ई० में शाहजहां (खुर्रम) को जग मन्दिर में शरण दी। शाहजहां ने इन्ही जगमन्दिरों को देखकर ताजमहल बनवाने का विचार किया।
  • खुर्रम (शाहजहां) ने अपने मेवाड़ प्रवासकाल के दौरान गफुर बाबा की मज्जार बनवाई। 
  • मुगल दरबार में उपस्थित होने वाला पहला राजकुमार करण सिंह था।
  • जगत सिंह  प्रथम (1628-1652 ई०) -
  • जगतसिंह प्रथम पिछौला झील में बने जगमन्दिरो का निर्माण पूर्ण करवाया इसी के नाम पर इन मंदिरों का नाम जगमन्दिर पड़ा।
  • जग मंदिर सूत्रधार भाणा व उसके पुत्र मुकुंद की देखरेख में बना इसी मंदिर में कृष्ण भट्ट द्वारा रचित जगन्नाथ राय प्रशस्ति लिखी है।
  • मेवाड़ चित्रकला शैली का स्वर्णकाल जगतसिंह प्रथम का काल था।
  • जगतसिंह प्रथम ने अपने दरबार में चित्रकारों को विकसित करने के लिए चितरों री ओवरी (तस्वीरां रो कारखानो) नामक संस्था बनायी।
  • जगत सिंह प्रथम के समय ही प्रतापगढ़ रियासत मुगल बादशाह शाहजहां द्वारा मेवाड़ से स्वतंत्र करवा ली गई।
  • राजसिंह (1652-1680 ई०) -
  • राज्यभिषेक - 10 अक्टूबर 1652 ई०।
  • 1652-1662 ई. में अकालराहत कार्यों के लिए गौमती नदी के पानी को रोककर राजसिंह ने राजसमन्द जिले में राजसमन्द झील का निर्माण करवाया।
  • राजसमन्द झील की नींव घेवर माता द्वारा रखवाई गई। घेवर माता बिना पति के सती होने वाली देवी है। इसका मन्दिर राजसमन्द झील के किनारे बना है।
  • राजसमन्द झील का उत्तरी किनारा नौ चौकी पाल कहलाता है। जिसपर 25 काली शिलाओं पर संसार का सबसे बड़ा शिलालेख  ‘राजप्रशस्ति’ रणछोड़ भट्ट तैलंग द्वारा संस्कृत में लिखा गया है। राजप्रशस्ति 1676 ई० में लिखवाया गया। इस शिलालेख में बप्पारावल से लेकर राजसिंह के समय तक का मेवाड़ का इतिहास मिलता है। मेवाड़ इतिहास जानने का सबसे अच्छा स्रोत राजप्रशस्ति है।

औरंगजेब राजसिंह का विरोधी हो गया जिसके निम्र कारण थे -
1. राजसिंह ने चितौडग़ढ़ दुर्ग का निर्माण करवाकर 1615 ई० की मुगल मेवाड़ संधि तोड़ दी।
2. राजसिंह ने मेवाड़ में जजिया कर (गैर मुस्लमानों से लिया जाने वाला धार्मिक कर) नहीं वसूला।
3. राजसिंह ने मारवाड़ के राजा अजीतसिंह की सहायता की थी।
4. राजसिंह ने किशनगढ़ की राजकुमारी चारूमति से विवाह किया। जिससे औरंगजेब विवाह करना चाहता था।  (मुख्य कारण)।

  • राजसिंह ने मथुरा (वृंदावन) से 1671 ई० में औरंगजेब के विरोध से दो कृष्ण जी की मूर्तियां मेवाड़ लाया तथा सिहाड़ (नाथद्वारा) व द्वारिकाधीश, कांकरोली (राजसमन्द) में कृष्णजी की दोनों प्रतिमाएं स्थापित की।
  • नाथद्वारा में स्थित श्री नाथ जी का मन्दिर राजस्थान में वल्लभ सम्प्रदाय (पुष्टिमार्ग) की मुख्य पीठ है। नाथद्वारा की पिछवाई कला कृष्णलीला से सम्बन्धित है। नाथद्वारा अन्नकूट महोत्सव तथा ड़ांग नृत्य प्रसिद्ध है। 
  • श्रीनाथ जी की सेवा सात स्वरूपों में की जाती है - मंगला, ग्वाल, उत्थापन, राजभोग, आरती, भोग और शयन। यहां श्रीनाथ जी को सात ध्वजानाथ कहा जाता है।
  • नाथद्वारा मंदिर की केले की सांझियां प्रसिद्ध है। यह मंदिर कृष्ण जी की आठ झांकी के लिए प्रसिद्ध है।
  • नाथद्वारा बनास नदी के किनारे राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 (सबसे व्यवस्तम राजमार्ग) पर स्थित है।
  • नाथद्वारा चित्रकला की शुरूआत राजसिंह द्वार की गई। केलों के वृक्षों के चित्र इस शैली की मुख्य विशेषता है।
  • कांकरोली (राजसमन्द) में टायर ट्यूब बनाने का सबसे बड़ा कारखाना है।
  • राजसिंह के सैनिक रत्नसिंह चूंडावत को राजसिंह ने किशनगढ़ पर आक्रमण करने हेतु भेजा लेकिन युद्ध में अपनी पत्नी भी याद अपने पर वह युद्ध नहीं करना चाहता था तब उसकी पत्नी सलहकंवर (हाड़ी रानी) ने अपना सिर काटकर निशानी के रूप में भेजा। हाड़ी रानी (सलहकंवर) का स्मारक सलूम्बर (उदयपुर) में बना है। राजस्थान की पहली महिला बटालियन हाड़ी रानी महिला थी।
  • प्रसिद्ध कवि मेघराज मुकुल ने हाड़ी रानी पर सेनाणी कविता लिखी (चूंडावत मांगी सेनाणी, सिर काट दे दियो क्षत्राणी)।
  • राजसिंह की मृत्यु 1680 ई० में कुंभलगढ़ दुर्ग में हुई। यहां राजसिंह की छतरी बनी है।

जयसिंह (1680-98 ई०) - 
  • जयसिंह ने (1687-91 ई०) के बीच आकाल राहत कार्यों के लिए गोमत्ती नदी के पानी को रोककर जयसमन्द झील/ढेबर झील(उदयपुर) का निर्माण करवाया।
  • जयसमन्द झील राजस्थान की सबसे बड़ी मीठे पाीन की कृत्रिम झील है। (एशिया की दूसरी)।
  • जयसमंद झील में सात टापू बने है। जिनमें सबसे बड़ा टापू बाबा का भागडा व सबसे छोटा टापू प्यारी है।
  • अमरसिंह द्वितिय :-
  • अमरसिंह द्वितीय समय 1707 ई० में देवारी समझौता होता 
मारवाड़                मेवाड़   जयपुर
अजीतसिहं            अमरसिंहद्वितिय सवाईजयसिहं
सूरजकंवर             चन्द्रकवंर ईश्वरीसिंह 
ईश्वरी सिहं              माधोसिंहप्रथम माधोसिंहप्रथम
         
संग्रामसिंह द्वितिय (1710-1734 ई०):-
  • संग्रामसिंह द्वितिय ने उदयपुर में फतेहसागर झील के किनारे सहेलियों की बाड़ी बनवायी।
  • संग्रामसिंह द्वितीय के समय 1719 ई० में वैद्यनाथ प्रशस्ति लिखी गयी।
  • मराठों का राज.में प्रवेश रोकने के लिए संग्रामसिंह द्वितिय ने हुरड़ा (भीलवाड़ा)सम्मेलन बुलाने का विचार किया। लेकिन इसकी मृत्यु हो गयी।
जगतसिंह द्वितिय :- (1734-1768 ई०) -
  • इसके समय अफगान आक्रमणकारी नादिरशाह ने 1739 ई० में दिल्ली पर आक्रमण किया।
  • जगतसिंह द्वितिय ने पिछोला झील में जगनिवास मंहलों का निर्माण करवाया।
  • इनके दरबारी कवि नेक राम ने जगत विलास ग्रंथ लिखा।
  • 17 जुलाई 1734 ई० को हुरड़ा सम्मेलन (भीलवाड़ा) की अध्यक्षता जगतसिहं द्वितिय ने की। यह सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह द्वितिय द्वारा बुलवाया गया।

महाराणा सरदार सिंह - भीलों के उपद्रवों को दबाने हेतु इन्होने 1841 ई० में मेवाड़ भील कोर का गठन किया।
स्वरूप सिंह - विजय स्तम्भ का जीर्वोद्वारा करवाया।
1857 की क्रांति में अंग्रेजों का साथ देने वाला राजस्थान का पहला राजा स्वरूप सिंह था।
इसने मेवाड़ में स्वरूप शाही सिक्के चलवाये।
राणा लाखा के काल में बनी पिछोला झील का जीर्णोद्वार करवाया।
शम्भू सिंह - 
सज्जन सिंह -
फतेह सिंह - चित्तौडग़ढ़ दुर्ग में फतहे सिंह द्वारा निर्मित फलेट प्रकाश महल है जो वर्तमान में संग्रहालय है।
भूपाल सिंह -
  • हल्दी घाटी युद्ध में हकीम खां सूरी व चित्रकला के क्षेत्र में नसीरूद्दीन को महत्तव प्रदान करना महाराणा प्रताप की धर्म निरपेक्षता को सिद्ध करता है।
  • (पाली के सोनगर न चौहान अरबैराज की पुत्री)
  • उदयसिंह की मृत्यु के बाद जगमाल को राजगद्दी पर बिठाया गया लेकिन जालौर के अखयराज व ग्वालियर के रामसिंह ने इसका विरोध किया। और प्रताप को राजा घोषित किया।
  • 18 जून 1576 (ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया, वि०से०1633)
  • हल्दी घाटी युद्ध में ग्वालियर का रामसिंह व उसका पुत्र शालिवाहन, भामाशाह व उसका भाई ताराचन्द, झाला मानसिंह, झाला वीदा सोनगरा मानसिंह।
कुभा - 
  • कुंभा के दरबार में मण्डन, नाभा, गोविन्द, कान्ह व्यास, महेश आदि आश्रित विद्वान में।
  • राजस्थान में कुम्भलगढ़ दुर्ग में कृषि भी की जाती है अत: कुम्भलगढ़ दुर्ग को राजस्थान का आत्मनिर्भर दुर्ग कहा जाता है।
  • कुंभा ने चित्तौडग़ढ़ दुर्ग का पुननिर्माण करवाया।
  • कुम्भलगढ़ दुर्ग में 50 हजार व्यक्ति निवास कर सकते है।
  • कुंभा को राजस्थान इतिहास में युग पुरूष कहा गया है।
  • कुंभा धर्मसहिषणु शासक था। उसने आर पर जाने वाले तीर्थ यात्रियों से लिया जाने वाल कर समाप्त कर दिया था।
  • हर विलास शाखा के अनुसार ‘कुम्भा एक महान शासक, महान सेनाध्य, महान निर्माता और वरिष्ठ विद्वान था।’
राणा भीमसिंह (1807 ई०, 1818 ई०):-
  • 1807 ई० कृष्णा कुमारी विवाद (गिगोंली का युद्ध,परबतसर नागौर) हुआ। कृष्णाकुमारी राणा भीम सिंह की पुत्री थी।
  • 1818 ई० में मराठों के डर से राणाभीमसिंह ने अंग्रजों से संधि की।
 राजस्थान के मेवाड़  राजवंशो के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी  (भाग -1)