बातिक - इसमें किसी भी चित्र को बनाने के लिए पहले सूति कपड़े पर किसी मार्कर/कार्बन पेपर से इच्छित चित्र की आउट लाईन बना ली जाती है। फिर रंग योजना तैयार की जाती है। योजना के अनुसार सबसे पहले कपड़े के जिस भाग को रंगना होता है उस हिस्से को छोड़कर बाकी सारे हिस्से को पिघला हुआ मोम लगाकर ढक दिया जाता है।
नोट: मोम की सहायता से चित्रकारी को बातिक कला कहते है। बातिक के कार्य के लिए सीकर जिले का खण्डेला स्थान प्रसिद्ध है।
सांझी - राजस्थान में सांझी बनाने की परम्परा वृदावन से आयी, राजस्थान में कुंवारी कन्या दीवार पर गोबर से चित्र बनाने की कला को सांझी कहते है।
पाने - राजस्थान में विभिन्न पर्व, त्यौहारों एवं मांगलिक अवसरों पर कागज पर बने चित्रों द्वारा देवताओं का प्रतिष्ठान किया जाता है अथवा कागज पर बने चित्र पाने कहलता है।
मांडणे - ये मांगलिक चित्र है जो घर के आंगन तथा द्वार पर बनाये जाते है। ये श्री एवं समृद्धि के प्रतीक है।
नोट: सबसे छोटा मांडणा स्वास्तिक चिन्ह होता है। जो श्री गणेश जी प्रतिक है।
गोदना - पुरूष एवं महिला द्वारा अपने शरीर पर विभिन्न प्रकार के चित्र बनाने की कला को गोदना कहते है।
वील - ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं घर सजाने के लिए तथा दैनिक उपयोग की चिजो सुरक्षत करने के लिए मिट्टी की महलनुमा कलाकृतियां बनाती है। इसको वील कला कहते है।
पथवारी - गांवों में पथरक्षक रूम में पूजे जाने वाले स्थल को पथवारी कहा जाता है। जिस पर विभिन्न प्रकार
चित्र बने होते है।
थापे - महिलाओं द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में विभिन्न त्यौहारों व उत्सवों पर परम्परागत रंगो द्वारा किया गया चित्रण।
मथेरण कला - इस कला के द्वारा बीकानेर में धार्मिक स्थलों एवं पौराणिक कथाओं पर आधारित विभिन्न देवी- देवताओं के भिति चित्र बनाने की कला।
नोट: इस कला मथैन घरारा (जैन परिवार) प्रसिद्ध है।
फड - राजस्थान में फड निर्माण का प्रमुख केन्द्र शाहपुरा (भीलवाड़ा) है। यहां के जोशी परिवार फड बनाने में निपूण है।
पाबूजी की फड - नायक/रैबारी जाति के भोंपो द्वारा रावण हत्था वाद्ययंत्र के साथ बांची जाती है।
राजदेव जी की फड - कामड़ जाति के भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बांचते है।
देवनारायण जी की फड - गुर्जर जाति के भोपे जंतर वाद्ययंत्र के साथ बांचते है।
सबसे प्राचीन सबसे लम्बी फड - देवनारायण जी
रामदला - कृष्णदला की फड एक मात्र ऐसी पड है जिसका वाचन दिन में होता है।
नोट: मोम की सहायता से चित्रकारी को बातिक कला कहते है। बातिक के कार्य के लिए सीकर जिले का खण्डेला स्थान प्रसिद्ध है।
सांझी - राजस्थान में सांझी बनाने की परम्परा वृदावन से आयी, राजस्थान में कुंवारी कन्या दीवार पर गोबर से चित्र बनाने की कला को सांझी कहते है।
पाने - राजस्थान में विभिन्न पर्व, त्यौहारों एवं मांगलिक अवसरों पर कागज पर बने चित्रों द्वारा देवताओं का प्रतिष्ठान किया जाता है अथवा कागज पर बने चित्र पाने कहलता है।
मांडणे - ये मांगलिक चित्र है जो घर के आंगन तथा द्वार पर बनाये जाते है। ये श्री एवं समृद्धि के प्रतीक है।
नोट: सबसे छोटा मांडणा स्वास्तिक चिन्ह होता है। जो श्री गणेश जी प्रतिक है।
गोदना - पुरूष एवं महिला द्वारा अपने शरीर पर विभिन्न प्रकार के चित्र बनाने की कला को गोदना कहते है।
वील - ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं घर सजाने के लिए तथा दैनिक उपयोग की चिजो सुरक्षत करने के लिए मिट्टी की महलनुमा कलाकृतियां बनाती है। इसको वील कला कहते है।
पथवारी - गांवों में पथरक्षक रूम में पूजे जाने वाले स्थल को पथवारी कहा जाता है। जिस पर विभिन्न प्रकार
चित्र बने होते है।
थापे - महिलाओं द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में विभिन्न त्यौहारों व उत्सवों पर परम्परागत रंगो द्वारा किया गया चित्रण।
मथेरण कला - इस कला के द्वारा बीकानेर में धार्मिक स्थलों एवं पौराणिक कथाओं पर आधारित विभिन्न देवी- देवताओं के भिति चित्र बनाने की कला।
नोट: इस कला मथैन घरारा (जैन परिवार) प्रसिद्ध है।
फड - राजस्थान में फड निर्माण का प्रमुख केन्द्र शाहपुरा (भीलवाड़ा) है। यहां के जोशी परिवार फड बनाने में निपूण है।
पाबूजी की फड - नायक/रैबारी जाति के भोंपो द्वारा रावण हत्था वाद्ययंत्र के साथ बांची जाती है।
राजदेव जी की फड - कामड़ जाति के भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बांचते है।
देवनारायण जी की फड - गुर्जर जाति के भोपे जंतर वाद्ययंत्र के साथ बांचते है।
सबसे प्राचीन सबसे लम्बी फड - देवनारायण जी
- भारत सरकार ने सर्वप्रथम 2 सितम्बर 1992 को देवनारायण जी की फड पर डाक टिकट जारी किया था।
- सर्वाधिक तथा सबसे लोकप्रिय/प्रसिद्ध फड पाबूजी
- भैसासुर की फड का वाचन नहीं होता इसकी केवल पूजा होती है। (बावरी जाति के द्वारा)
रामदला - कृष्णदला की फड एक मात्र ऐसी पड है जिसका वाचन दिन में होता है।