संत सुंदरदास जी (निर्गुण) -
- जन्म दौसा 15 9 ई।
- पिता- परमानंद (शाह चोखा)
- मात-सती
- ये खंडेलवाल वाशै था
- गुरू दादादयाल जी
- सुंदरदासजी ने कुल 42 ग्रंथों की रचना की जिनमें से प्रमुख ग्रंथ- ज्ञान सम्मीत, बावनी, बारह अष्टक, ज्ञान सावित्री (संतोदर विलास)
- दादू पंथ में नागा साधु वर्ग प्ररांभ किया था।
- मृत्यु 1707 ई में संगानेर में हूवर
- जाति चमार
- गुरु रमनंद
- मीराबाई के गुरू थे
- निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का उपदेश दिया
- मीरा बाई के समय चित्तढ़ आए थे इनकी छतरी चितौड़गढ़ का कुंभश्याम मंदिर में स्थित है।
- उनकी उपदेश प्रमुख ग्रंथ परची में संग्रहित है।
संत माव जी
- जन्म - साबला (आसपुर, डूंगरपुर) 1714 ई, के ब्रह्म परिवार में
- पिता दालरूमशी
- माता- केशरबाई
- १७२७ ई में इन्हे बैणेश्वर (डूंगरपुर) नामक स्थान पर ज्ञान की प्राप्ति हुई।
- माव जी अनुयायी उन्हे हिन्दू धर्म का दसवां अवतार, कल्कि अवतार मानते है।
- माव जी के अछूतों को भी सम्मानजनक स्थान दिया और उन्हे साध की संज्ञा दी।
- बैणेश्वर धाम की स्थापना सेाम-माही-जाखम नदियों के त्रिवेणी संगम पर नवरातपुरा में माव जी ने ही करवाई।
- इनका प्रमुख मंदिर एवं पीठ माही तट पर साबला गांव में है। ये वहां श्रीकृष्ण के निष्कलंकी अवतार के रूप में प्रतिष्ठापित है।
- इन्होंने बागड़ी भाषा में कृष्ण लीलाओं की रचना की जो चोपड़ा कहलाती है।
- संत माव जी ने निर्गुण एवं सगुण का समन्वय कर सहज भक्ति के सर्वग्राह्म मार्ग की शुरूआत की।
- उन्होंने 72 लाख 96 हजार छंदों से एक ग्रंथ लिखा जिसे चैपड़ा कहा जाता है जो हस्तलिखित है।
- निष्कलंक संप्रदाय प्रारंभ किया।
- प्रमुख ग्रंथ भूंगल पुराण के रचियता।
भक्त कवि दुर्लभ
- जन्म 1696ई वागड़ क्षे़त्र में
- इन्होंने कृष्ण भक्ति के उपदेश दिए।
- भक्त कवि दुर्लभ को राजस्थान का नृसिंह कहा जाता है।
भक्त कवि ईसरदास
- जन्म 1538ई में मालानी परगने (बाड़मेर) के भादरेस गांव में
- पिता चारण सूजा, माता अमर बाई
- ईसरदास का विवाह 14 वर्ष की उम्र में देवल बाई के साथ हुआ।
- प्रमुख रचना गुण हरिरस(डिंगल भाषा), देवियांणा, वैराट, गुण- निंदा स्तुति, गुण- भगवन्त हंस तथा आपण
- इनकी रचना हालां-झालां-री कुंडलियां वीर रस प्रधान है।
संत लाल गिरि-
- जन्म सुलखिया (चूरू), जाति मोची
- बचपन मे ही नागा साधु बन गए थे-
- संप्रदाय की प्रमुख पीठ बीकानेर
- समाधि गलता (जयपुर)
- लालगिरि के कुण्ड लिये प्रसिद्ध है।
- प्रमुख ग्रंथ अलख स्तुति प्रकाश
संत प्राणनाथ
- जन्म - गुजरात (जामनगर)
- परनामी संप्रदाय के प्रर्वतक जो निर्गुण विचारधारा वाला संप्रदाय है।
- इनके अराध्य देव श्रीकृष्ण है जिन्हें प्रणाम करना इस संप्रदाय का मूल दर्शन है।
- संप्रदाय की प्रमुख पीठ पन्ना (मध्यप्रदेश)
- राजस्थान में एक मात्र पीठ आदर्श नगर (जयपुर) में इस संप्रदाय का एक विशाल कृष्ण मंदिर है।
- प्रमुख ग्रंथ कुजलम स्वरूप है।
संत दास जी
- गुदड़ संप्रदास के प्रवर्तक
- प्रमुख पीठ दांतड़ा(भीलवाड़ा)
- गुदड़ संप्रदाय के लोग निर्गुण भक्ति पर बल देते है।
संत नवलदास जी-
- जन्म हस्सोलाव(नागौर)
- नवल संप्रदाय प्रारंभ किया गया।
- प्रमुख ग्रंथ नवलेशवर अनुभववाणी
- नवलदास जी का मुख्य मंदिर जोधपुर में स्थित है।
संत नन्हीं बाई
गंवरी बाई
- जयपुर राज्य की ख्ेातड़ी रियासत की सुप्रसिद्ध गायिका थी।
- स्वामी विवेकानंद जब खेतड़ी आए तब इन्होंने उसे अपना संगीत सुनवाया था, दिल्ली घराने तानरस खंा की शिष्या बनी।
- नोट- संत दया बाई ने दयाबोध ग्रंथ की रचना की
- नोट- संत सहजो बाई ने सोलह तिथि, सहज प्रकाश की रचना की। चरणदासी पंथ की प्रमुख महिला संत थी।
गंवरी बाई
- डूंगरपुर के नागर कुल में जन्म
- बागड़ की मीरा के रूप में प्रसिद्ध
- गवरी बाई ने अपनी भक्ति मे हरदय की शुद्धता पर बल दिया है।
- डूंगरपुर के महारावल शिवसिंह ने गवरी बाई के प्रति श्रद्धास्वरूप बालमुकुंद मंदिर का निर्माण करवाया था।