चौहान वंश :- चौहानों की उत्पत्ति
1. अग्नि कुंड :- माउंटआबू में गुरु वशिष्ठ ने यज्ञ करवाया जिसमें अग्निकुंड से चौहानों ,चालुक्य (सोलंकी ),परमार ,और प्रतिहार जातियों की उत्पत्ति हुई ।इस बात का पता संस्कृत भाषा में लिखित किराडू शिलालेख से लगता है।
2. अग्नि कुंड :- पृथ्वीराज रासो (चंद्रवरदाई ),हमीर रासो,( सारंगधर/ जोधराज) मुहणोत नैंण्सी (राजपूताने का अबुल फजल), सूर्यमल मिश्रण बूंदी( राज्य कवि )
3. सूर्यवंशी :- हरिकेली ,नाटक पृथ्वीराज विजय( जयानक), हमीर महाकाव्य(नयन चंद्र सूरी ),गौरीशंकर ओझा ( रोहिडा सिरोही)
4. हांसी शिलालेख और आबू के अचलेश्वर मंदिर का शिलालेख।
5. विदेशी मत :- (शक - शिथियन )कर्नल जेम्स टॉड , डॉ. वी ए स्मिथ के अनुसार चौहान विदेशी जाती है।
6. ब्राह्मण वंशीय मत :- डॉ दशरथ शर्मा (चूरू) के अनुसार चौहान ब्राह्मण वंशीय हैं ।य 1170 ईसवी के बिजोलिया शिलालेख को आधार मानते हैं ।
डॉ गोपीनाथ शर्मा , कायम खा रासौ तथा बिजोलिया शिलालेख में भी चौहानों को ब्राह्मण वंशीय बताया गया है ।
7. कुर्क ने चौहानों को अग्नि से उत्पन्न माना है ।
डॉ भंडारकर के अनुसार चौहानों की उत्पत्ति खज जाति से हुई मानी जाती है ।
8. चौहानों के इतिहास के बारे में दिल्ली शिवालिक लेख जो कि बिसलदेव का है तथा हर्ष का लेख( जयपुर )जो कि विग्रहराज द्वितीय का है जानकारी मिलती है ।
- जांगल प्रदेश का पूर्वी भाग सपादलक्ष से चौहानों का मूल स्थान था।
- इनकी प्रारंभिक राजधानी अहीछत्रपुर थी तथा वासुदेव चौहान ने सांभर को तथा अजय राज ने अजमेर को राजधानी बनाया।
- अजमेर के चौहानों को अजमेर के चौहान , सांभर के चौहान शाकंभरी के चौहान कहा जाता है ।
- अजमेर के चौहानों की कुलदेवी शाकंभरी देवी है ।
- वंश भास्कर तथा वीर सतसई रचना सूर्यमल मिश्रण की है ।
1. वासुदेव चौहान :-
- 551 ई. में वासुदेव चौहान ने सांभर में चौहान वंश की नींव रखी |
- वासुदेव चौहान ने सांभर झील का निर्माण करवाया इसका पता बिजोलिया शिलालेख 1170 इससे लगता है ।
- वासुदेव चौहान चौहानों का आदि पुरुष कहलाता है ।
- सांभर की राजधानी अहिच्छत्रपुर थी ।
- सांभर झील भारत की खारे पानी की दूसरी बड़ी झील है ।
- सांभर झील अजमेर , नागौर , जयपुर 3 जिलों में स्थित है ।सांभर में ही भारमल बिहारीमल ने 1562 ईस्वी में अपनी पुत्री हरखा बाई का विवाह अकबर से किया था।
2. अजय पाल
- सातवीं शताब्दी में अजय पाल ने अजयमेरू दुर्ग का निर्माण करवाया था।
- यह दुर्ग बिठडी की पहाड़ी पर बना है इसे गढ बिठडी कहते हैं ।
- अन्य नाम -- राजस्थान का जिब्राल्टर , पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर , तारागढ़ दुर्ग ,राजपूताना की कुंजी ,अरावली का अरमान
नोट - सर्वाधिक स्थानीय आक्रमण इसी दुर्ग पर हुए थे । इसमें मीरान साहब की दरगाह , घोड़े की मजार , नाना जी का झालरा ,रूठी रानी उमादे की छतरी स्थित है ।
अजय राज ( 1113 ) :-
- अजय राज के शासनकाल को चौहानों के साम्राज्य का निर्माण का काल कहा जाता है ।
- अजय राज को अजयराज चक्री , चक्रवर्ती विजेता कहा जाता है ।
- अजय राज ने ''अजय देव तथा अजय प्रिय द्रामस" नाम के चांदी के सिक्के चलवाये। जिन पर इसकी रानी सोमवती सोम लेखा का नाम भी अंकित मिलता है ।
- 1113 ईस्वी में अजय राज ने अजमेर नगर बसाया तथा अजमेर को राजधानी बनाया ।
- अजमेर को राजस्थान का हृदय , राष्ट्रीय राजमार्ग का चौराहा , भारत का मक्का , राजस्थान का नाका और अंडों की टोकरी कहा जाता है । अजय राज ने अजय देव नाम से चांदी के सिक्के चलाए थे ।
अर्णोराज / आनाजी (1133 - 1153)
- इन्होंने अजमेर में आना सागर झील का निर्माण करवाया इस झील के किनारे पुष्कर का वराह मंदिर स्थित है ।
- बिजोलिया शिलालेख के अनुसार आनासागर झील का निर्माण (1133 -1137) इसवी तथा पृथ्वीराज रासो में( 1135 -1137) ईस्वी में बताया गया है ।
- आनासागर झील का निर्माण 1137 ईस्वी तुर्की की सेना के सहार के बाद खून से रंगी धरती को साफ करने के लिए चंद्रा नदी के जल को रोककर करवाया गया यह झील नाग पहाड़ में तारागढ़ दुर्ग के बीच में स्थित है । आनासागर झील के किनारे मुगल बादशाह जहांगीर ने दौलत बाग बनवाया जिसे वर्तमान में सुभाष उद्यान कहा जाता है। शाहजहाँ ने इसके किनारे संगमरमर की 12 दरियों का निर्माण करवाया इन दोनों मुगल बादशाहों की माता राजपूत थी।
- अर्णो राज शैव धर्म का उपासक था फिर भी इसने पुष्कर के वरहा मंदिर का निर्माण करवाया।
- अर्णोराज की हत्या इसके पुत्र जगदेव ने की थी अतः इसे चौहानों में पित्रहंता राजा कहा जाता है ।
- चालूक्य शासक 1134 ईस्वी सिद्धराज जयसिंह से राज्य की सीमा को लेकर हुए विवाद के कारण युद्ध में अर्णोराज विजयी हुआ और सिद्धराज जयसिंह ने अपनी पुत्री कंचन देवी का विवाह अर्णोराज से किया।
विग्रहराज चतुर्थ (1153-1163)
- अन्य नाम - बीसलदेव , परम भट्टारकर , परमेश्वर , महाराजाधिराज।
- विग्रहराज कवियों के विद्वानों का आश्रय दाता था। यह कवि बांधव (जयानक भट्ट ने कहा) के नाम से भी जाना जाता था। किलहाँर्न ने विग्रहराज चतुर्थ की प्रशंसा में कहा है कि वह उन हिंदू शासकों में से एक व्यक्ति था जो कालिदास और भवभूति की होड़ कर सकता था।
- इसका काल कला तथा साहित्य की दृष्टि से चौहानों का स्वर्णकाल कहलाता है ।
- इसने अजमेर की संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया जिसे शिहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने तुड़वा कर यहां इस पाठशाला के स्थान पर मस्जिद का निर्माण करवाया तथा यहां फारसी अभिलेख लिखवाए।
- राजस्थान में प्रथम फारसी अभिलेख यही मिलते हैं संस्कृत पाठशाला के इस स्थान पर मुस्लिम संत पंजाब शाह का अढाई दिन का उर्स लगने के कारण इस स्थान को अढाई दिन का झोपड़ा कहा जाता है।
- कर्नल जेम्स टॉड ने अढाई दिन के झोपड़े के बारे में कहा है कि मैंने राजस्थान में इतनी प्राचीन व सुरक्षित इमारत नहीं देखी पर्सी ब्राउन - इस मस्जिद के पास ढाई दिन का मेला मुस्लिम संत पंजाब शाह का लगने के कारण इसे अढाई दिन का झोपड़ा कहते हैं ।
- जॉन मार्शल - इस मस्जिद का निर्माण मात्र ढाई दिन में किया गया इसलिए इस मस्जिद को अढाई दिन का झोपड़ा कहते हैं।
- अढाई दिन का झोपड़ा 16 खंभों युक्त इमारत है अतः इसे वर्तमान में 16 खंभों वाला महल भी कहते हैं।
- यह राजस्थान की पहली मस्जिद है अबूबकर ने अढाई दिन के झोपड़े का डिजाइन तैयार किया था ।
- विग्रहराज चतुर्थ बीसलदेव ने संस्कृत में हरीकेली नाटक लिखा हरिकेली नाटक की कुछ पंक्तियां अढाई दिन के झोपड़े में तथा ब्रिस्टल इंग्लैंड मे स्थित राजा राममोहन राय के स्मारक पर उत्कीर्ण है।
- बीसलदेव का दरबारी कवि सोमदेव था जिसने ललित विग्रहराज ग्रंथ लिखा ललित विग्रहराज एवं इंद्रपुरी की राजकुमारी जैसल देवी के मध्य प्रेम संबंधों का उल्लेख मिलता है।
- नरपति नाल्ह बीसलदेव रासो में विग्रहराज एवं परमार राजा भोज की पुत्री राजमती के मध्य प्रेम संबंधों का उल्लेख है एवं खानदेश उड़ीसा की विजय का उल्लेख मिलता है।
- तोमर वंश को हराकर दिल्ली पर अधिकार करने वाला पहला चौहान शासक विग्रहराज की दिल्ली विजय की पुष्टि बिजोलिया शिलालेख से होती है।
- वर्तमान टोंक जिले में बीसलपुर कस्बा एवं बीसलपुर सागर बांध का निर्माण भी बिसलदेव द्वारा करवाया गया।
पृथ्वीराज तृतीय (1177-1192)
- इनका जन्म 1166 ईस्वी में अन्हिलपाटन गुजरात में हुआ था।
- 11 वर्ष की आयु में 1177 में पृथ्वीराज चौहान का राज्य अभिषेक अजमेर में हुआ।
- पिता - सोमेश्वर चौहान
- माता - कर्पूरी देवी संरक्षक
- प्रधानमंत्री - कदंब वास
- सेनापति - भुवन मल्ल कर्पूरी देवी का चाचा
- 1182 ईसवी में सर्वप्रथम अपने चचेरे भाई नागार्जुन के विद्रोह का दमन किया ।
- 1182 ईस्वी में ही भंडारनायकों को हराया, 1182 में बुंदेलखंड के चंदेल राजा परमर्दीदेव तथा उसके सैनीक आल्हा व उदल को हराकर महोबा विजय की।
- 1134 ईस्वी में कन्नौज के गढ़वाल वंश के राजा जयचंद को हराया तथा उसकी पुत्री संयोगिता से विवाह किया।
- चालूक्यों पर विजय 1184 नागौर युद्ध 1184 इसमें गुजरात के चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय के प्रधानमंत्री जगदेव प्रतिहार व पृथ्वीराज चौहान की सेना के मध्य नागौर का युद्ध हुआ अंत में जगदेव प्रतिहार के 1184 में नागौर युद्ध के दौरान दोनों राज्यों के बीच संधि हो गई (कारण ईच्छिनी)
- 1191 ईस्वी शिहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान तृतीय के बीच में तराइन का प्रथम युद्ध हुआ जिसमें पृथ्वीराज की विजय हुई तराईन करनाल जिला हरियाणा में पड़ता है।
- 1192 ईस्वी में तराइन का द्वितीय युद्ध इनके बीच में हुआ जिसमें गोरी विजय हुआ तराइन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास में एक निर्णायक युद्ध सिद्ध हुआ क्योंकि इस युद्ध विजय के बाद उत्तर भारत में राजपूत काल का अंत तथा सल्तनत काल का उदय हुआ ।
- पृथ्वीराज को दल पुंगल (विश्व विजेता)की उपाधि प्राप्त थी।
- पृथ्वीराज को राय पिथौरा (युद्ध में पीठ न दिखाने वाला) के नाम से भी जाना जाता है।
- पृथ्वीराज चौहान तृतीय का आश्रित कवि चंद्रवरदाई था इसने पिंगल भाषा में पृथ्वीराज रासो की रचना की थी।
- पृथ्वीराज रासो में तराइन के युद्ध का वर्णन है पृथ्वीराज रासो में चंद्रवरदाई ने चौहानों की उत्पत्ति अग्निकुंड से मानी है।पृथ्वीराज के दरबारी कवि की यह रचना जो की एक विद्वान था जिसने क्रमश विग्रहराज चतुर्थ , सोमेश्वर चौहान तथा पृथ्वीराज चौहान तृतीय को अपने राज्य से माहिती और पृथ्वीराज विजय इसमें नियोग प्रथा , सती प्रथा एवं स्लंबर प्रथा का ज्ञान होता है । पृथ्वीराज चौहान ने अजमेर से अपना शासन चलाया था।
- पृथ्वीराज चौहान तृतीय के दरबार में विद्यापति गॉड ईश्वर तथा जनार्दन आदि विद्वान थे।
- पृथ्वीराज चौहान वंश का अंतिम प्रतापी राजा था।
- तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज के पुत्र गोविंद देव चौहान ने रणथंभौर में चौहान वंश की नींव रखी।
- 1192 ईस्वी में ही ईरान से ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भारत में चिश्ती सिलसिले के प्रवर्तक गरीब नवाज नवाब मोहम्मद गौरी के साथ पृथ्वीराज चौहान तृतीय के काल में अजमेर आए ।व अजमेर को कार्यस्थल बनाया अजमेर में इनकी दरगाह बनी है। ख्वाजा की दरगाह संसार का दूसरा मक्का मदीना कहलाता है।