चौहान वंश Notes

माउण्ट आबू में गुरू विशिष्ट ने यज्ञ करवाया जिसमें अग्रिकुण्ड से चौहान, चालुक्य (सौलंकी), परमार , प्रतिहार चार जातियां निकली।
चौहानों की उत्पति-
 * प्रथ्वीराज रासौ  - हम्मीर रासौ   - मुहणौत नैणसी   - सूर्यमल्ल मिश्रण
चन्दरबरदाई    - सांरगधर/जोधराज     - राजपुताने का  -    (बूंदी) अग्रिकुण्ड
                        अबुल-फजल -  (राज्य कवि)      
 * पृथ्वीराज विजय हम्मीर महाकाव्य         सूर्यवंशी                    
 (जयानक)           (नयनचन्द्र सूरी)
* कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार चौहान विदेशी जाति थी।
* दशरथ शर्मा (चुरू) के अनुसार चौहान ब्राह्मणवंशीय थे। (1170 के बिजोलिया के शिलालेख के अनुसार)
* जंागल प्रदेश का पूर्वी भाग - सपादलक्ष चौहानों का मूल स्थान।
* चौहानों की प्रारम्भिक राजधानी अहिछत्रपुर थी तथा वासुदेव चौहान ने सांभर को व अजय राज ने अजमेर को राजधानी बनाया।
* अजमेर के चौहानों को सपादलक्ष के चौहान/ सांभर के चौहान/ शाकम्भरी के चौहान भी कहते है।
* अजमेर के चौहानों की कुलदेवी शाकम्भरी देवी है।
वंशभास्कर व वीर सतसई की रचना सूर्यमल्ल मिश्रण ने की।
वासुदेव चौहान -
* 551 ई. में वासुदेव चौहान ने साम्भर में चौहान वंश की नींव रखी।
* वासुदेव चौहान ने सांभर झील का निर्माण करवाया। (इसका पता बिजौलिया के अभिलेख  1170 के लगता है)
अजयपाल -
* 7वीं शताब्दी में अजयपाल ने अजयमेरू दुर्ग का निर्माण करवाया।
* अजयमेरू दुर्ग बीठड़ी की पहाड़ी पर बना है। अत: इसे गढ़बिठडी कहते हेै।
* अजयमेरू दुर्ग के अन्य नाम - राजस्थान का जिब्राल्टर, तारागढ़ दुर्ग, पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर, राजपूताना की कुंजी, अरावली का अरमान।
अजयराज:-
* 1113 में  अजयराज नें अजमेर नगर बसाया। अजमेर को राजधानी बनाया।
अजमेर को राजस्थान का ह्रदय, राष्ट्रीय राजमार्गों का चौराहा, भारत का मक्का, राजस्थान का नाका, अण्डों की टोकरी कहा जाता है।
अर्णोराज / आनाजी:- 
* अर्णोराज ने अजमेर में आना में आनासागर झील का निर्माण कराया।
* आनासागर झील के किनारे मुगल शासक जहांगीर ने दौलत बाग बनवाया जिसे वर्तमान में सुभाष उद्यान कहते है।
*   शाहजहाँ ने आनासागर झील के किनारे संगमरमर की 12 दरियों का निर्माण करवाया।
* अर्णाेराज शैव धर्म का अनुयायी था तथा इसने पुष्कर के वराह मन्दिर का निर्माण करवाया।
विग्रहराज - 4 (बीसलदेव) - विग्रहराज चतुर्थ का काल कला व साहित्य की दृष्टि से चौहानों का स्वर्ण काल कहलाता है।
विग्रहराज चतुर्थ ने अजमेर में संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया जिसे शिहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी के गुलाम कुतुबद्दीन ऐबक (लाखबक्श) ने तुड़वाकर यहाँ मस्जिद का निर्माण करवाया तथा यहां फारसी अभिलेख लिखवाए। राजस्थान में प्रथमत: फारसी अभिलेख यहीं मिलते है।
* संस्कृत पाठशाला के इस स्थान पर मुस्लिम संत पंजाबशाह का ढाई दिन का उर्स लगने के कारण वर्तमान में इस स्थान को ढाई दिन का झोपडा़ कहा जाता है।
* कर्नल जेम्स टॉड ने ढाई दिन के झोपड़े के लिए कहा है कि  ‘मैंने राजस्थान में इतनी प्राचीन व सुरक्षित इमारत नहीं देखी’।
* बीसलदेव कवियों व विद्वानों का आश्रयदाता था अत: इस कवि बान्धव के नाम से जाना जाता है।
* विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) ने संस्कृत में हरिकेली नाटक लिखा।
* बीसलदेव का दरबारी कवि सोमदेव था। जिसने ललित विग्रहराज ग्रंथ लिखा।
* दिल्ली पर अधिकार करने वाला पहला शासक विग्रहराज था।
* बीसलदेव रासौ के रचयिता नरपति नाल्ह है।
पृथ्वीराज चौहान तृतीय (1177-92):-
* पृथ्वीराज चौहान तृतीय का जन्म 1166 ई. अन्हिलपाटन (गुजरात) में हुआ।
11 वर्ष की आयु में 1177 ई. में पृथ्वीराज चौहान तृतीय का राज्यभिषेक अजमेर में हुआ।
* पिता - सोमेश्वर चौहान, माता - कर्पुरी देवी (सरंक्षक)
* 1182 में सर्वप्रथम अपने चचेरे भाई नागार्जुन के विद्रोह को दमन किया। 1182 में भण्डनायकों को हराया।
* 1184 में बुदेंलखण्ड के चंदेल राजा परमारार्दि देव व उसके सैनिक आल्हा व ऊदल को हराकर महोबा विजय की।
* 1184 में कन्नौज के गहड़वाल वंश के राजा जयचंद को हराया तथा उसकी पुत्री संयोगिता से विवाह किया।
* 1191 ई. में शिहाबुद्दीन महोम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान तृतीय के बीच में तराइन का प्रथम युद्ध हुआ। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान तृतीय विजयी हुआ।
* तराइन करनाल जिला (हरियाणा) में पड़ता है।
* 1192 ई. मे शिहाबुद्दीन महोम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान तृतीय के बीच में तराइन या द्वितीय युद्ध हुआ। जिसमें मोहम्मद गौरी विजय हुआ। तराईन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास में एक निर्णायक युद्ध सिद्ध हुआ क्योंकि इस युद्ध के बाद उत्तर भारत में राजपूत काल का अंत व दिल्ली में सल्तनत काल का उदय हुआ।
* पृथ्वीराज को दल पुंगल विश्वविजेता की उपाधि प्राप्त थी।   पृथ्वीराज तृतीय को रायपिथौरा (युद्ध में पीठ न दिखाने वाला) के नाम से जाना जाता है।
* पृथ्वीराज चौहान तृतीय का आश्रित कवि चन्दबरदाई था। चन्द्रबरदाई ने पिंगल भाषा में पृथ्वीराज रासो की रचना की। पृथ्वीराज रासो में चन्द्रबरदाई ने चौहानों की उत्पत्ति अग्रिकुण्ड से बताई है।
* पृथ्वीराज के दरबारी कवि जयानक ने पृथ्वीराज विजय की रचना की।
* पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने अजमेर व दिल्ली से अपना शासन चलाया।
* पृथ्वीराज चौहान तृतीय चौहान वंश का अंतिम प्रतापी राजा था।
* तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान तृतीय का पुत्र गोविन्द देव चौहान ने रणथम्भौर में चौहान वंश की नींव रखी।
1192 ई में फारस (ईरान) से ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (भारत में चिश्ती सिलसिले के संस्थापक/गरीब नवाज) मोहम्मद गौरी के साथ पृथ्वीराज चौहान तृतीय के काल में अजमेर आए तथा अजमेर को अपनी कर्मस्थली बनाया। अजमेर में इनकी दरगाह बनी है।

रणथम्भौर के चौहान 
* गोविन्ददेव चौहान रणथम्भौर के चौहान वंश का संस्थापक था।
* रणथम्भौर के चौहान वंश का प्रथम व अन्तिम प्रतापी राजा हम्मीर चौहान था।
* जलालुद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर अनेक आक्रमण किए। लेकिन इसे न जीत पाने के कारण जलालुद्दीन ने रणथम्भौर दुर्ग के लिए कहा -
‘ऐसे 100 दुर्ग मैं मुस्लमान की दाढ़ी के एक बाल बराबर समझता हूँ।’
* रणथम्भौर दुर्ग सवाईमाधोपुर में स्थित है। यह दुर्ग सात पहाडिय़ों से घिरा है अत: अबुलफजल ने इस दुर्ग के लिए कहा है कि -
* ‘राजस्थान में अन्य सभी दुर्ग नंगेें है लेकिन यह दुर्ग बख्तर बन्द है।’
* रणथम्भौर दुर्ग की कुंजी सारन दुर्ग कहलाता है।
* अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 ई. में रणथम्भौर दुर्ग पर आक्रमण किया। इस समय यहाँ हम्मीर चौहान का राज था। इस युद्ध को रणथम्भौर का शाका कहते है।
* अलाउद्दीन खिलजी के विश्वासघाती सैनिक मोहम्मदशाह को हम्मीर द्वारा शरण देना इस युद्ध का प्रमुख कारण था।
* हम्मीर ने अपने जीवन में कुल 17 युद्ध किये जिनमें से 16 युद्ध जीता है लेकिन 1301 में रणथम्भौर शाके को रास्थान का प्रथम शाका कहा जाता है। हम्मीर चौहान की पत्नी रंगदेवी व पुत्री पदमला ने यहां जलजौहर किया। जो राजस्थान का एकमात्र जल जौहर था।
* 1301 का युद्ध हम्मीर द्वारा हारे जाने का कारण था - उसने सैनिक रणमल व रतिपाल का विश्वास घात।
* अलाउद्दीन खिलजी के सैनिक उलुग खां व नुसरत खां को रणथम्भौर दुर्ग पर आक्रमण करने के लिए भेजा था। नुसरत खां मारा गया तथा उलुख खां को शासक नियुक्त किया गया।
* 1301 के रणथम्भौर साके के समय अलाउद्दीन खिलजी का सैनिक कवि व इतिहासकार अमीर खुसरो भी मौजूद था।
* अमीर खुसरो ने रणथम्भौर दुर्ग जीतने के बाद कहा कि - ‘आज कुफ्र घर इस्लाम का घर हो गया है।’
* हम्मीर रासो -सारंगधर (जोधराज)।
* हम्मीर महाकाव्य - नयनचन्द्र सूरी
* हमीर हठ - चन्द्रशेखर
नाडौल के चौहान 
* संस्थापक - लक्ष्मण देव  चौहान
* प्रथम प्रतापी राजा - कीर्तिपाल चौहान
* कीर्तिपाल चौहान ने सोनगढ पहाड़ी (जालौर) पर सुवर्ण गिरी का दुर्ग बनवाया तथा जालौर में सोनगरा चौहान वंश की नींव रखी इस प्रकार नाडौल शाखा जालौर शाखा में विलय हुई।
 जालौर के सोनगरा चौहान -
* जालौर के सोनगरा चौहान वंश का संस्थापक कीर्तिपाल चौहान था।
* कीर्तिपाल चौहान ने सोनगढ़ पहाड़ी पर सुवर्णगिरी दुर्ग का निर्माण करवाया। जालौर का किला सुकड़ी नदी के किनारे बना है।
* 1305 में जालौर का शासक कान्हड़ दे चौहान बना।
* 1308 में सिवाणा दुर्ग का शाका हुआ। इस समय अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा दुर्ग (कूमट) पर आक्रमण किया। संातल व सोमदेव चौहान यहाँ मारे गए। दुर्ग जीतने के बाद अलाउद्दीन में इसका नाम खैराबाद रखा तथा सिवाणा दुर्ग (बाड़मेर) का प्रशासक कमालुद्दीन गुर्ग को नियुक्त किया।
* 1310-11 सुवर्ण गिरी (जालौर) का शाका हुआ। अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर दुर्ग पर आक्रमण किया। यहाँ कान्हड़ देव उसका पुत्र वीरमदेव चौहान मारे गए तथा दुर्ग जीतने के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर दुर्ग का नाम जलालाबाद रखा। अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर दुर्ग में मस्जिद का निर्माण करवाया जिसे अलाउद्दीन खिलजी की मस्जिद कहते है।
* सिवाणा व जालौर दुर्ग पर अलाउद्दीन का आक्रमण करना साम्राज्य विस्तार नीति, सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण दुर्ग व गुजरात व मालवा जाने का मार्ग होना  था।
* कान्हड़ देव पर आक्रमण करने का प्रमुख कारण कान्हड़ देव के पुत्र वीर द्वारा अलाउद्दीन खिलजी की पुत्री फिरोजा से विवाह न करना था।
* जालौर दुर्ग के विषय में कहा जाता है कि  ‘आज तक इस दुर्ग में इसके द्वार से प्रवेश करके इसे किसी ने नहीं जीता।’
* जालौर के सोनगरा चौहानों की कुलदेवी - आशापुरी (महोदरी माता)।
* कान्हड़दे के दरबारी कवि पद्मनाभ ने कान्हड़दे प्रबन्ध और बीरमदेव सोनगरा री बात की रचना की।