मृण्य कला/ टेरा कोटा-
पशुओं की सजावट के लिए हस्तकला --
- प्रमुख कलाकार मोहनलाल
- मिट्टी का काम करने वाला कुम्हार कहलाताहै। इनके लिए समाज में आदरसूचक शब्द परजापत भी प्रचलित है।
- इस कला से मिट्टी के खिलौनें व मूर्तियां बनाई जाती है। जिसके लिए मोेलेेला ।राजसमंद। प्रसिद्ध है।
- कुंजा पानी ठण्डा रखने के लिए मिट्टी का बर्तन ।
- जयपुर की प्रसिद्ध है।
- चीनी मिट्टी के बर्तनों पर चित्रकारी
- मूलरूप से यह कला ईरान/पर्शिया की है।
- यह कला आमेर शासक मानसिंह प्रथम के समय जयपुर में प्रारम्भ की गई।
- जयपुर में ब्ल्यू पाॅटरी के विकास का श्रेय महाराजा रामसिंह को जाता है। उनके समय प्रसिद्ध कलाकार
चूडामन व कालूराम थे। - जयपुर के कृपाला सिंह शेखावत को इस कला के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।
- स्व. नाथी बाई इस कला की प्रसिद्ध महिला कलाकार है।
- ब्ल्यू पाॅटरी में नीले व हरे रंग का प्रयोग किया जाता है।
- ब्लैक पाॅटरी-कोटा
- सुनहरी पेंटिंग की ब्ल्यू पाॅटरी बीकानेर
- डबल कट वर्क की पाॅटरी जिसे कागजी पाॅटरी कहा जाता है। जो अलवर की प्रसिद्ध है।
- लकडी हाथीदांत व चंदन पर कार्य -
- जैसलमेर में पांच मंजिल का ताजिया आकार का स्तंभ उल्लेखनीय है।
- आमेर महल के सुहाग मंदिर में चंदन के किवाडों पर हाथीदंात की पच्चीकारी बहुत सुन्दर है।
- हाथीदांत पर काम जयपुर, मेडता व उदयपुर में होता है।
- यहां पर दाऊदी बोहरा संप्रदाय के शिल्पी सोपस्टोन पत्थर को तराशकर उसकी विभिन्न कलाकृतियां बनाते है।
- पेपरमेसी कला-कुट्टी मिट्टी
- भारत में मूगलों के समय यह कला प्रारंभ हुई ।
- जयपुर महाराजा रामसिंह द्वितीया के समय इस कला का विकास जयपुर में हुआ।
- पेपरमेसी का घोडा सिटी पेलेस जयपुर
पशुओं की सजावट के लिए हस्तकला --
- मोर पंख का बनाया गया र्तुरा जो बैलों के सिर पर बांधा जाता है- छोग
- घोडों की पीठ पर डाले जाने वाला वस्त्र -जीणपोश
- घोडों की काठी- जीण
- चमडे की काठी- सपाट
- जीण के उपर बिछाया जाने वाला रेजी का वस्त्र - मेलखोरा
- ऊंट श्रृंगार के लिए कमरबंद /तंग मोहर के लिए जैसलमेर के डूंगरसिंह भाटी तथा ईश्वरसिंह प्रसिद्ध है।
- जरी- जयपुर
- नान्दणे- शाहपुरा, ।भिलवाडा। - छपाई के घाघरे
- पिछवाईया- नाथद्वारा
- तारकशी के जेवर - नाथद्वारा
- संगमरमर मूर्तिया- जयपुर-अलवर
- पीतल की मूर्तिया- जयपुर-अलवर
- सुराही- बीकानेर
- मथैरण- बीकानेर
- खेसले- लेटा, जालौर
- सुंघनी नसवार- ब्यावर
- बादला- जोधपुर जिंक से बना जल पात्र
- जस्ते की मूर्ति - जोधपुर
- हाथी दांत की चूडियां- जोधपुर
- तलवार- सिरोही
- खेल सामग्री- हनुमानगढ
- गलीचे- टोंक
- नमदे- टोंक
- तुडिया कला नकली जेवर बनाने की कला - धौलपुर
- कावड- बस्सी , ।चितौडगढ।
- बेवाण- बस्सी
- पेचवर्क - शेखावाटी
- लाख की ज्वैलरी- मेडता ।नागौर।, इन्द्रगढ ।बूंदी।
- रेशम की ज्वैलरी - जयपुर
- तालछापर ज्वैलरी - चुरू
- मलमल- मथानिया ।जोधपुर।
- रेजी- आमेर
- छींट - बूंदी
- चंदोबे व बदनवार - शेखावाटी
- पत्थर पर नकाशी काम- जैसलमेर
- पत्थर की मूर्तिया- जैसलमेर
- हाथी दांत पर चित्रकारी- अलवर
- कृषि के औजार- गजसिंहपुर ।गंगानगर।
- चटापटी का कार्य- शेखावाटी
- सूठ की साडिया- सवाईमाधोपुर
- फूल पतियों की साडिया- नाथद्वारा
- जरी की साडिया- जैसलमेर
- लाख की चुडिया- हिण्डोन ।करौली।