हिन्दी शिक्षण विधियां

 हिंदी भाषायी कौशल एवं उनका विकास

भाषा शिक्षण की प्रक्रिया है ।भाषा शिक्षण की प्रक्रिया में व्यक्ति के मस्तिष्क में चार बिम्ब बनते हैं।
1.     श्रुतिबिम्ब - सुनकर किसी वस्तु या घटना का ज्ञानात्मक मानचित्र निर्मित करना।
2.     दृश्य बिम्ब - देखकर किसी वस्तु या घटना का ज्ञानात्मक मानचित्र निर्मित करना।
3.     विचार बिम्ब/प्रत्यय बिम्ब/अवधारणा/संक्रिया/ब्वदबमचज
    जब बालक किसी घटना वस्तु विषय वस्तु इत्यादि का बोध अथवा व्याख्या कर पाता है तो वह विचार बिम्ब कहलाता है।
4.     भाव बिम्ब- जब हमारे विचार संवेगों से जुड़ जाते हैं तो वे भाव बिम्ब के रूप में निर्मित हो जाते हैं।

*    बच्चों में भाषा की जन्मजात क्षमता होती है।
*    भाषा शिक्षक बालक को कल्पना करने, तर्क करने और विश£ेषण करने की गतिविधियां करने का अवसर दे, तो भाषायी विकास सुदृढ़ होता है।
*    भाषा सीखने का सर्वाेत्तम समय तीन वर्ष की आयु होता है। इस उम्र में अनुकरण की प्रवृत्ति अधिक होती है।

एनसीएफ 2005 के अनुसार - भाषा सीखने और सीखाने में अर्थ, उद्देश्य, आवश्यकता, प्रयोग एवं रूचि का तत्व सदैव केन्द्र में रहना चाहिए।
    भाषायी विकास के दो मुख्य शिक्षा शास्त्रीय पहलू हैं -
    1. पर्याप्त अवसर मिलने पर बच्चे नई भाषाएं सीख सकते हैं।
    2. शिक्षण का फोकस व्याकरण पर ना होकर विषय वस्तु पर होना चाहिए।
    * कक्षा 3 के बाद से मौखिक और लिखित माध्यमों से उच्चस्तरीय संवाद कौशल और समालोचनात्मक चिंतन के विकास के प्रयास किए जाने चाहिए।
    * प्राथमिक स्तर पर बच्चों की भाषा को बिना सुधारे ही स्वीकार करना चाहिए।
    * कक्षा 4 के बाद अगर समृद्ध और रूचिकर मौके दिए जाए तो बच्चे स्वयं भाषा के मानक रूप को ग्रहण कर लेते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान बच्चे की घरेलू भाषा के प्रति सम्मान का भाव बना रहना चाहिए। गलतियाँ अधिगम का हिस्सा होती है। अत: कमियों पर ध्यान दिये जाने की बजाए अधिक समय बच्चों को विस्तृत, रूचिकर और चुनौतीपूर्ण कार्य दिए जाने चाहिए।  

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