मूल अधिकार Fundamental Rights
- 1895 ई. में भारत में सर्वप्रथम मौलिक अधिकारों की मांग बाल गंगाधर तिलक ने स्वराज्य विधेयक में की।
- 1925 ई. में एनीबेसेन्ट ने काॅमन वेल्थ आॅफ इण्डिया में मूल अधिकारों की मांग की।
- नेहरू रिपोर्ट 1928 - इस रिपोर्ट में सर्वप्रथम मौलिक अधिकारों का वर्णन मिलता हैं।
- 1931 ई. में राष्ट्रीय कांग्रेस का करांची में अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता सरदार पटेल ने की।
- इस अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू के द्वारा मूल अधिकारों का प्रारूप तैयार किया गया।
- 1931 ई. में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में गांधीजी ने मूल-अधिकारों की मांग की।
- संविधान सभा ने संविधान में मूल अधिकरों को शामिल करने के लिए पटेल की अध्यक्षता में मूल अधिकार समिति का गठन किया।
- मूल अधिकार उपसमित के अध्यक्ष - जे.बी. कृपालानी
- मूल अधिकारों की प्रकृति - सकारात्मक व नकारात्मक
- सामान्यतः मूल अधिकार राज्य के विरूद्ध नागरिकों को प्रदान किये गये है किन्तु कुछ मूल अधिकार नागरिकों के विरूद्ध भी प्रदान किये गये है जैसे अनुच्छेद 17, 23, 24
- कुछ मूल अधिकार केवल भारतीय नागरिकों प्राप्त है अनुच्छेद 15, 16, 19, 29 30
- मूल अधिकार वाद योग्य है।
- मूल अधिक संविधान में प्रारम्भ से शामिल है।
- यह स्रोत अमेरिका से लिया गया है।
- इनका उल्लेख संविधान के भाग-3 व अनुच्छेद 12-35 में है।
- मूल रूप से संविधान में कुल मूल अधिकार 7 थे।
- वर्तमान में संवधिान में कुल मूल अधिकार 6 है।
- सम्पति के अधिकार का उल्लेख मूल संविधान में अनुच्छेद 31 में था तथा वर्तमान में इसका उल्लेख अनुच्छेद 300 (क) में है। जो एक विधिक अधिकार है।
- गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य 1967 - इस विवाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा कि मूल अधिकारों में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
- केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य विवाद 1973 - इस विवाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा कि भारतीय संसद मूल अधिकारों में कमी या वृद्धि कर सकती है। परन्तु संविधान के मूल ढांचे में परितर्वन/संसोधन नहीं कर सकती हैं।
- नोट - संसद मूल अधिकारों में साधारण विधि के द्वारा कमी नहीं कर सकती परन्तु अनुच्छेद 368 के द्वारा संशोधन कर सकती हैं।
- मूल अधिकार को संविधान का मेग्नाकार्टा कहा जाता है।
- अनुच्छेद 12 - राज्य शब्द को परिभाषित किया गया। राज्य शब्द में संघिय सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय स्वशासन तथा वे सभी संस्थाएं जो सरकार से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ लेती है को शामिल किया जाता है।
- अनुच्छेद 13 - इसे न्यायीक पुनरावलोकन का आधार माना जाता हैं परन्तु संविधान में न्यायीक पुनरावलोकन शब्द का उल्लेख नहीं है।
- यह अनुच्छेद न्यायापालिका को अधिकार देता है। कि किसी भी ऐसी विधि जो मूल अधिकारों के विरूध है उसकी समीक्षा कर सकती है।
- विधि शब्द को परिभाषित करता है।
- विधि शब्द से तात्पर्य संसद व विधानमण्डल द्वारा बनाया गया कानून तथा सभी अध्यादेश, आदेश, नियम, अधिसूचना आदि।