प्रस्तावना/उद्देशिका
हम भारत के लोग - प्रस्तावना इसी शब्द से आरम्भ होती है तथा इस शब्द का अर्थ है कि संविधान का मूल स्त्रोत भारत की जनता है तथा वहीं सभी शक्तियों का केन्द्र बिन्दु है।
नोट - संविधान द्वारा भारत में सम्प्रभुता (सर्वोच्च शक्ति) जनता को प्रदान की गई है।
सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न - प्रस्तावना के अनुसार भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न राष्ट्र होगा अर्थात भारत अपने आंतरिक एवं बाह्य मामलों में किसी विदेशी सत्ता/शक्ति के अधिन नहीं होगा।
पंथ निरपेक्ष - भारत में किसी धर्म विशेष को राजधर्म के रूप मान्यता प्रदान नहीं की गई। बल्कि सभी धर्मो को तटस्थ भाव से समान सरंक्षण प्रदान किया गया है।
समाजवाद - संविधान की प्रस्तावना के आर्थिक न्याय एवं भाग - 4 में वर्णित निति निर्देशक तत्व में अनुच्छेद 39, 39बी, 39सी के तहत समाजवादी दृष्टिकोण दृर्शित होता है।
अर्थात - भौतिक साधनों का समानता के आधार पर वितरण तथा धन का विकेन्द्रीकरण समाजवाद कहलाता है।
लोक तंत्रात्मक - इससे तात्पर्य है कि भारत में राजसत्ता का प्रयोग जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि करते हैं और वे जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। संविधान सभी को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय का आश्वासन देता है।
गणराज्य - भारत में संसदीय शासन प्रणाली होने के कारण दोहरी कार्यपालिका है।
भारत में सर्वोच्च पद राष्ट्रपति का है जिसे राष्ट्राध्यक्ष कहा जाता है जो निर्वाचित होता है।
न्याय के प्रकार - तीन
सामाजिक न्याय - का अर्थ है कि सभी नागरिकों कों बिना किसी भेद भाव के समानता प्राप्त है।
आर्थिक न्याय - वर्ग भेद न्यूनतम हो तथा प्रत्येक व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की जाये।
- यह स्त्रोत अमेरिका से लिया गया है।
- इसकी भाषा ऑस्ट्रेलिया से ली गई है।
- प्रस्तावना में संविधान का सारांश है।
- 13 दिसम्बर 1946 को जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा में उद्देश्य/वस्तुनिष्ठ प्रस्ताव किया जिसे 22 जनवरी 1947 को पारित किया गया। यह प्रस्ताव प्रस्तावना का मुख्य आधार है।
- प्रस्तावना से सम्बन्धित प्रमुख विवाद
- युनियन आॅफ इण्डिया बनाम मदन गोपाल विवाद 1957 - इस विवाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा की प्रस्तावना को न्यायलय में परिवर्तित नहीं किया जा सकता (न्याय के वाद योग्य नहीं है)
- नोट - प्रस्तावना का न्यायिक पूर्नावलोकन नहीं किया जा सकता है।
- इनरी बेरूबारी बनाम भारत सरकार विवाद 1960 - इस विवाद में सर्वोच्च न्यायलय ने यह कहां कि प्रस्तावना संविधान का अंग/भाग नहीं है।
- गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य विवाद - 1967 में सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधिश हिदायतुल्ला ने उद्देशिका को संविधान की मूल आत्मा कहा है।
- केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य विवाद 1973 - इस विवाद में सर्वोच्च न्यायलय के प्रमुख निर्णय निम्नलिखित है।
- उद्देशिका संविधान का अभिन्न अंग है।
- उद्देशिका में संशोधन किया जा सकता है।
- उद्देशिका न्याय योग्य नहीं है अर्थात इसके आधार पर कोई निर्णय नहीं दिया जा सकता।
- नोट - प्रस्तावना में संसद के द्वारा परिवर्तन किया जा सकता है अब तक प्रस्तावना में एक बार परिवर्तन हुआ है जो निम्न है - 42वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा प्रस्तावना में संशोधन किया गया और समाजवादी, पंथ निरपेक्ष व और अखण्डता शब्द जोड़े गये।
- प्रस्तावना से संबंधित प्रमुख कथन
- अल्लादी कृष्ण स्वामी अय्यर ने प्रसतावना को हमारे दीर्घकालिन सपनों का विचार कहा है।
- के.एम. मुंशी ने प्रस्तावना को संविधान की राजनितिक कुण्डली कहां है।
- अर्नेस्ट बार्कर ने प्रस्तावना को संविधान का कुंजी नोट कहा है।
- एन.ए. पालकीवाला ने प्रस्तावना को संविधान का परिचय-पत्र कहां है।
- प्रस्तावना में निम्नलिखित शब्दों का उल्लेख है -
हम भारत के लोग - प्रस्तावना इसी शब्द से आरम्भ होती है तथा इस शब्द का अर्थ है कि संविधान का मूल स्त्रोत भारत की जनता है तथा वहीं सभी शक्तियों का केन्द्र बिन्दु है।
नोट - संविधान द्वारा भारत में सम्प्रभुता (सर्वोच्च शक्ति) जनता को प्रदान की गई है।
सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न - प्रस्तावना के अनुसार भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न राष्ट्र होगा अर्थात भारत अपने आंतरिक एवं बाह्य मामलों में किसी विदेशी सत्ता/शक्ति के अधिन नहीं होगा।
पंथ निरपेक्ष - भारत में किसी धर्म विशेष को राजधर्म के रूप मान्यता प्रदान नहीं की गई। बल्कि सभी धर्मो को तटस्थ भाव से समान सरंक्षण प्रदान किया गया है।
समाजवाद - संविधान की प्रस्तावना के आर्थिक न्याय एवं भाग - 4 में वर्णित निति निर्देशक तत्व में अनुच्छेद 39, 39बी, 39सी के तहत समाजवादी दृष्टिकोण दृर्शित होता है।
अर्थात - भौतिक साधनों का समानता के आधार पर वितरण तथा धन का विकेन्द्रीकरण समाजवाद कहलाता है।
लोक तंत्रात्मक - इससे तात्पर्य है कि भारत में राजसत्ता का प्रयोग जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि करते हैं और वे जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। संविधान सभी को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय का आश्वासन देता है।
गणराज्य - भारत में संसदीय शासन प्रणाली होने के कारण दोहरी कार्यपालिका है।
भारत में सर्वोच्च पद राष्ट्रपति का है जिसे राष्ट्राध्यक्ष कहा जाता है जो निर्वाचित होता है।
न्याय के प्रकार - तीन
सामाजिक न्याय - का अर्थ है कि सभी नागरिकों कों बिना किसी भेद भाव के समानता प्राप्त है।
आर्थिक न्याय - वर्ग भेद न्यूनतम हो तथा प्रत्येक व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की जाये।
- राजनैतिक न्याय - सभी नागरिकों को राजनीतिक क्षेत्र में समान और स्वतंत्र रूप से भाग लेने का अवसर है।
- प्रतिष्ठा और अवसर की समान
- स्वतंत्रता के प्रकार - पांच
- विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म तथा उपासना।
- बन्धुत्व - प्रस्तावना द्वारा अपने सभी नागरिकों में ऐसी बन्धुत्व बढाने का संकल्प लिया गया है जो व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता और अखण्डता को सुनिश्चित करने वाली है।
- व्यक्ति की गरिमा व राष्ट्र की एकता - हमारे संविधान निर्माता भारत की विविधताओं के अन्तर्गत विद्यमान एकता से परिचित थे। वे चाहते थे कि हमारे नागरिक क्षेत्रीयता, प्रान्तवाद, भाषावाद व सम्प्रदायवाद को महत्व न देकर देश की एकता के भाव को अपनायें। इसलिए हमारे संविधान में बन्धुत्व का आदर्श दो आधारों पर टिका है। यह आधार हैं - राष्ट्र की एकता व व्यक्ति की गरिमा।
- अखण्डता - 42वें संविधान संशोधन द्वारा उद्देशिका में ‘‘अखण्डता’’ शब्द को सम्मिलित किया गया है। इसका मूल उद्देश्य भारत की एकता और अखण्डता को सुनिश्चित करना है।
- प्रस्तावना के अंतिम भाग में निम्न शब्दों का उल्लेख है
- अंगीकृत - संविधान को स्वीकार करना।
- अधिनियमित करना - संविधान को लागू करना।
- आत्मार्पित करना - स्वयं को संविधान को सौपना।
- प्रस्तावना में भारत शब्द का उल्लेख दो बार हुआ है।
- नोट - 26 नवम्बर, 1949 का प्रस्तावना में उल्लेख है तथा 26 नवम्बर को विधि दिवस के रूप में मनाया जाता है।