अपने वायुमण्डल को जाने - वायुमण्डल का गठन

वायुमण्डल का गठन:-
  • पृथ्वी के चारों तरफ कई सौ किमी. की मोटाई में  व्याप्त गैसीय आवरण  को ‘वायुमण्डल’ कहा जाता है।
  •  पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के कारण ही यह वायुमण्डल उसके साथ टिका हुआ है। पृथ्वी के वायुमण्डल 97 प्रतिशत भाग 29 किमी की ऊँचाई तक पाया जाता है।
  •  वायुमण्डल एक गैसीय संगठन हे। इसमें 99 प्रतिशत भाग केवल नाईट्रोजन (78 प्रतिशत) तथा आॅक्सीजन (21 प्रतिशत) का ही रहता है।
  •  शेष 1 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व आॅर्गन, कार्बन-डाई-आॅक्साइड हाइड्रोजन, नियोन, हीलियम, क्रिप्टोन, जेनान आदि भारी तथा हल्की गैसों द्वारा होता है। 
  •   वायुमण्डल में जलवायु के दृष्टिकोण से जलवाष्प का सर्वाधिक महत्व होता है। भूतल पर जलभागों, मिट्टियों तथा वनस्पतियों के वाष्पीकरण के द्वारा वायुमण्डल में वाष्प पहुंचती है।
  •  जलवाष्प वायुमण्डल का सर्वाधिक स्थायी तत्व है।
  •  वायु में वाष्प की अधिकतम मात्रा 5 प्रतिशत तक रहती है। वाष्प  की मात्रा तापमान पर आधारित होती है।
  •  भूतल से 5 किमी. तक वाले वायुमण्डल में वाष्प का 90 प्रतिशत भाग रहता है।
  •  वायुमण्डल में वाष्प की यह न्यून मात्रा सर्वाधिक महत्व है। वाष्प के कारण ही सभी प्रकार के संघनन तथा वर्षण एवं उनके विभिन्न रूप (बादल, तुषार, जलवृष्टि हिम, ओस, ओला आदि) का सर्जन होता है।
  •  नमक तथा धुएं के कण जल वाष्प को आकृष्ट करते हैं। ये आर्द्रता ग्राही नाभिक होते हैं।
  •  गैस तथा वाष्प के अलावा वायुमण्डल में कुछ सूक्ष्म ठोस कण भी पाये जाते हैं। इनमें धूलिकण सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। ये छोटे कण विभिन्न स्त्रोतों-समुन्द्र नमक, महीन मिट्टी, धुएं की कालिना, धूल तारे के टूटे कण तथा राख, पराग आदि से निकली है।
  • सूर्य से आने वाली किरणों में प्रकीर्णन धूलिकणों के द्वारा होता है। जिस कारण आकाश का रंग नीला, सूर्योदय तथा सूर्यास्त एवं गोधूली के नयना भिराम रंग सम्भव हो पाते हैं। (नयनों को रोकने वाले रंग)

 वायुमण्डल का स्तरीकरण

  • वर्तमान समय मे वायुमण्डल की जानकारी प्राप्त करने के लिए राकेट यान, राडार, स्पुतनिक आदि नवीन उपकरणों की सहायता ली जाती है।
  •  इस आधार पर वायुमण्डल की ऊँचाई 16-29 हजार किमी. तक बतायी जाती है। परन्तु धरातल से केवल 800 किमी ऊंचा वायुमण्डल ही अधिक महत्वपूर्ण है।
  •  परिवर्तन (क्षोभ) मण्डल - (18 किमी.) ट्रोपोस्फीयर (अधोमण्डल)-
  •  वायुमण्डल के सबसे निचले भाग को जिसकी ऊँचाई धरातल से 12 किमी होती है, क्षोभ मण्डल या परिवर्तन मण्डल कहलाता है।
  •   क्षोभ मण्डल में ऊँचाई के साथ तापमान कम होता है।
  •  गीष्म ऋतु में क्षोभ मण्डल की उँचाई विषुवत रेखा (16 किमी)से धु्रवों (6 किमी.) की ओर कम होने लगती है।
  •  धरातलीय जीवों का सम्बन्ध इसी मण्डल से रहता है।
  •  इसी के अन्तर्गत भारी गैसों, जलवाष्प तथा धूलिकणों का अधिकतम भाग रहता है।
  •  संवहनीय तरंगों तथा विक्षुब्ध संवहन के कारण इस मण्डल को क्रम से संवहनीय मण्डल तथा विक्षोभ मण्डल भी कहा जाता है।
  •  मौसम की प्रायः सभी घटनाऐं- कोहरा, बादल, ओला, तुषार, आँधी-तूफान, मेघ गर्जन, विद्युत प्रकाश आदि इसी भाग में घटित होती है।
  •  परिवर्तन (क्षोभ) मण्डल तथा समताप मण्डल के बीच 1) ज्ञउ (क्षोभ सीमा) मोटी परत को ट्रोपोपास कहते हैं। इस भाग में सभी प्रकार के मौसमी परितवर्तन स्थगित हो जाते हैं।
  •  यह मण्डल (ट्रोपोपास) परिवर्तन तथा समताप मण्डलों का विभाजक होता है।
  •  विषुवत रेखा पर ट्रोपोपास की ऊँचाई अधिकतम (17½Km) तथा धु्रवों पर न्यूनतम (9-10) होती है।
  •  क्षोभ मण्डल में वायु कभी शान्त नहीं रहती इसलिए इसे अशान्त  समताप मण्डल (50 किमी) (स्ट्रेटोस्फीयर) मण्डल भी कहते हैं।
  •  समताप मण्डल की खोज सर्वप्रथम टीजरेन्स डी बोर्ट ने 1902 में की थी।
  •  समताप मण्डल क्षोभ मण्डल के ऊपर का भाग होता है।
  •  इसकी औसत ऊँचाई (मध्य अक्षांशों) 25 से 30 किमी. तक बताई जाती है। समताप मण्डल की अधिकतम सीमा 50 किमी तक है।
  •  क्रिचफील्ड के अनुसार समताप मण्डल की ऊपरी सीमा =25Km तक
  • स्ट्रालर के अनुसार = 50 Km तक
  •  स्ट्रालर के अनुसार ट्रोपोपास के ऊपर तापमान में शनैः-2 वृद्धि होती है तथा 50 किमी की उंचाई पर तापमान 0 डिग्री सेंटीग्रेड या 320 फा. हो जाता है। इस सीमा को स्ट्रेटोपास कहते हैं।
  •  यह मण्डल मौसमी हलचल से रहित होता है। परन्तु क्षीण हवाएं चलती हैं। यही कारण है कि इस मण्डल से होकर वायुयानों के मार्ग सुरक्षित माने जाते हैं।
  •  ओजोन मण्डल
  •  समताप मण्डल के निचले भाग में 15 किमी. से 35 किमी. के बीच ओजोन गैस का मण्डल होता है।
  •  वायुमण्डल में ओजोन का अत्यधिक महत्व होता है क्योंकि यह एक रक्षा कवच का कार्य करती है। (पृथ्वी का छाता)
  • इस आवरण के कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणें (क्षोभ) परिवर्तन मण्डल तथा पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुँच पाती है, क्योंकि यह गैस इन विकिरण तरंगों का अवशोषण कर लेती है।
  •  यदि ये किरणें धरातल तक पहुँच जाती तो तापमान इतना अधिक हो जाता है कि किसी भी प्रकार का जीव धरातल तथा उसके नीचे एवं सागर में संभव नहीं हो पाता।
  •  विज्ञान में तरक्की तथा नवीन प्रौद्योगिकी के फलस्वरूप मानवीय क्रिया-कलापों के कारण ओजोन मण्डल में विकिरण हो रहा है। जिससे चर्म केन्सर बढ़ रहा है तथा मनुष्य में अन्धापन।
  •  अण्टार्कटिका महाद्वीप के ऊपर इस परत में एक सुराख देखा गया।
  •  मध्य मण्डल (मेसा स्फीयर)
  •  50-80 किमी की ऊँचाई वाला वायुमण्डलीय भाग मध्य मण्डल कहा जाता है, जिसमें तापमान में ऊँचाई के साथ हृास होता है।
  • वास्तव में स्ट्रेटोपास (समताप सीमा) पर तापमान में वृद्धि समाप्त हो जाती है और इससे ऊपर तापमान में कमी होने लगती है।
  •  80 किमी की ऊँचाई पर तापमान 800ब हो जाता है। तापमान की इस न्यूनतम सीमा को मेसोपास कहते हें। जिसके ऊपर जाने पर तापमान में पुनः वृद्धि होती है।
  •  ताप मण्डल (थर्मो स्फीयर)
  •  मेसोपास के ऊपर वाला अनिश्चित ऊँचाई तक वाला वायुमण्डलीय भाग तापमण्डल कहलाता है।
  •  इसमें ऊँचाई के साथ तीव्र गति से तापमान बढ़ता है। अनुमानतः इसकी ऊपरी सीमा पर तापमान 17000ब् होता है।
आयन मण्डल

  •  धरातल से 80 से 640 किमी की ऊँचाई तक विस्तृत वायुमण्डल के भाग को ‘आयन मण्डल’ कहते हैं।
  •  पृथ्वी से प्रेषित रेडियों तरंगे इसी मण्डल से परावर्तित होकर पुनः पृथ्वी पर लौट आती है। इसी परत के कारण सुदूरवर्ती देशों के रेडिया प्रसारण सुनना संभव होता है।
  •  इस भाग में विस्मयकारी विद्युतीय एवं चुम्बकीय घटनायें घटित होती रहती हैं। ब्रह्मण्ड किरणों का परिलक्षण होता है।
  •  आयन मण्डल में पुनः तीन मण्डल होते हैे -
  •  (i) D सतह (ऊँचाई 60-96 किमी)
  •  (ii) E सतह (ऊँचाई 94-144 किमी) - रेडियो की मध्यम तरंगे यहां से परावर्तित हो जाती है।
  • (iii) F सतह (ऊँचाई 144-360 किमी.) - इस सतह से रेडियो की लघु तरंगे परावर्तित हो जाती है।
  •  यदि आयन मण्डल की स्थिति न होती तो रेडियो तरंगे भूतल पर न आकर आकाश मं असीमित ऊँचाई तक चली जाती।
  •  इसी मण्डल में उत्तरी धु्रवीय प्रकाश तथा दक्षिणी धु्रवीय प्रकाश दर्शन होते हैं।
  •  आयन मण्डल ताप मण्डल का सबसे निचला भाग होता है।
  •  इस परत में ऊँचाई के साथ तापमान पुनः बढ़ने लगता है। इस मण्डल की ऊपरी सीमा का तापमान अनुमानतः 1100 डिग्री सेल्सियस हो जाता है।
  • आयन मण्डल - (ब्राह्य मण्डल) एक्सोस्फीयर
  • वायुमण्डल का यह सबसे ऊपरी भाग है जो कि 640 किमी के ऊपर फैला है तथा इस मण्डल के विषय में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकी है। इसमें गैस गुच्दो के रूप में विद्यमान होती है। अधिकांशतः इसमें हाइड्रोजन तथा हीलियम गैस  विद्यमान रहती है।