भारत का मानसून एंव मानसून उत्पत्ति के सिद्धान्त

जलवायु:- लम्बे समय के मौसम के औसत को जलवायु कहते हैं।
मौसम - वायुमण्डलीय दशाओं के योग को मौसम कहते हैं। वायुमण्डलीय दशाए - वर्षा, तापमान, आर्द्रता, पवनें, बादल आदि
मानसून - मानसून अरबी भाषा ‘मौसिन’ शब्द से बना है। जिसका अर्थ है - ऋतु
  • 1. ग्रीष्मकालीन मानसून- (द.प. मानसून, आगे बढ़ता हुआ मानसून) भारत में इस मानसून से लगभग 80 से 90 प्रतिशत तक वर्षा होती है। इस मानसून की दो शाखऐं हैं - 1.अरब सागरीय मानसून (65%) 2. बंगाल की खाड़ी 35%)
  •  2. शीतकालीन मानसून-(उत्तरी पूर्वी मानसून, पीछे लौटता मानसून, प्रत्यावर्तन मानसून) भारत की जलवायु मानसूनी प्रकार की होती है। भारत में सर्वाधिक वर्षा ग्रीष्मकालीन मानसून से होती है।
  मौसम विभाग ने भारतीय ऋतुओं को चार भागों में बांटा है।
  1. शरद् ऋतु  अक्टूबर से मध्य दिसम्बर तक
  2. शीतऋतु  मध्य दिसम्बर से फरवरी तक
  3. ग्रीष्म ऋतु  मार्च से मध्य जून तक
  4. वर्षा ऋतु मध्य  जून से सितम्बर तक
  • शीतकालीन मानसून से भारत के केवल तमिलनाडु राज्य में वर्षा होती है।
  • अरबसागरीय मानसून से भारत के पश्चिमी घाट के पश्चिमी क्षेत्र में भारी वर्षा होती है। लेकिन पश्चिमी घाट के पूर्वी क्षेत्र में वर्षा नहीं होती। इसलिए इस क्षेत्र को वृष्टि छाया क्षेत्र कहते हैं।
  • सामान्यतः द.प. मानसून अण्डमान निकोबार में सर्वप्रथम 20 मई को पहुंचता है। 
  •  केरल के मालाबार तट व असम पर 1 जून से 5 जून तक पहुंचता है।
  • कलकत्ता व मुम्बई में 10-14 जून तक एवं सुरूर 40 भाग में 1 जुलाई तक मानसून पहुंचता है।
  •  दिल्ली , पंजाब व हरियाणा में 25 से 30 जून तक मानसून पहुंचता है।
  • अरबसागरीय मानसून की शाखा राजस्थान से गुजरती हुई हिमालय पर्वत से टकराती है एवं जम्मू कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय ढालों में वर्षा करवाती है।
  • गारो खासी व जयन्ती पहाडियां ‘कीपनुमा आकृति’ में फैली हुई है। अतः बंगाल की खाड़ी से आने वाली हवाएंे यहां अधिक वर्षा करवाती है।
  • यहां स्थित मासिनराव नामक स्थान विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान है। 1140 सेमी. वार्षिक
  • भारत में कम वर्षा वाला स्थान-जैसलमेर 15 सेमी
  • काल बैशाखी (नाॅरवेस्टर) ग्रीष्म ऋतु में प. बंगाल एवं भारत के पूर्वी राज्यों में आने वाले भीषण तूफान जिनसे कभी-कभी मानसून से पूर्व भी वर्षा होती है। इन तूफानों से होने वाली वर्षा को बसन्त ऋतु की तूफानी वर्षा कहते हैं व इन पवनों को काल बैशाखी कहा जाता है।
  •  आम्र वृष्टि - मालाबार तट के समीपवर्ती क्षेत्रों में मानसून से पूर्व मई में होने वाली वर्षा को आम्र वृष्टि तथा कर्नाटक में फलों की बौछार  (चेरी ब्लास्म) कहते हैं।
  • भारत की औसत वार्षिक वर्षा - 112-118 सेमी. के बीच में
  •  अरब सागरीय शाखा राजस्थान में सबसे पहले प्रवेश करती है। लेकिन इससे वर्षा नहीं हो पाती है। क्योंकि अरावली पर्वत श्रृंखला इसके समान्तर स्थित है।
  •  राजस्थान में अधिकतर वर्षा बंगाल की खाड़ी के मानसून से होती है। यह मानसून राजस्थान में 15 से 30 जून के मध्य प्रवेश करता है।
  •  राजस्थान में वर्षा पूर्व से पश्चिम की ओर क्रमशः कम होती जाती है। राजस्थान की औसत वार्षिक वर्षा 57 सेमी है।
  • राजस्थान में अरावली पर्वत श्रृंखला 50 सेमी की वर्षा रेखा है।
  • भारत के उत्तरी पश्चिमी राज्यों में भूमध्य सागरीय चक्रवातों से वर्षा होती है।
  • राजस्थान में शीतकाल में होने वाली इस वर्षा को ‘मावठ’ कहा जाता है।
  • ‘मावठ’ रबी की फसल के लिए बहुत लाभदायक होती है। इसलिए इसे गोल्डन ड्राॅप्स भी कहते हैं।
  • राजस्थान में वर्षा अनिश्चित, अनियमित एवं अपर्याप्त होती है। जो अकाल व सूखे का मुख्य कारण है।
  • राजस्थान मंे वर्षा की सर्वाधिक विषमता इसके पश्चिमी भाग में पाई जाती है।
  • मानसून प्रत्यावर्तन का समय व लौटता मानसून अक्टूबर-नवम्बर
  • भारत में मानसून काल की सर्वाधिक अवधि केरल 6 माह
  • सबसे कम अवधि - पंजाब 2)  माह

मानसून उत्पत्ति के सिद्धान्त
1. चिरसमत कालीन सिद्धान्त- ,

  •  (1). तापीय सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के विकास में ब्रिटिश भूगोलवेता बेकर एवं स्टेम्प ने योगदान दिया है। इस विचारधारा के अनुसार मानसून की उत्पति एकमात्र पृथ्वी के असमान संगठन (स्थल तथा जल का विन्यास) तथा उनके गर्म एवं ठण्डा होने के विरोधी स्वभाव के कारण ही होती है।
  •  (2). विषुवतीय पछुआ हवा का सिद्धान्त:- यह सिद्धान्त ब्रिटिश भूगोलवेता फ्लोन द्वारा प्रतिपादित किया गया है।
  •  इस सिद्धान्त के अनुसार सूर्य के ताप के प्रभाव से उत्तर के मैदान में अत्यन्त ही निम्न दाब का निर्माण होता है। इस प्रकार हिन्द महासागर एवं उत्तर के मैदान के बीच तीव्र दाब प्रवणता का विकास होता है। फलस्वरूप अन्तः उष्ण अभिसरण (प्ज्ब्) अपने सामान्य स्थान से विस्थापित होकर उत्तरी मैदान तक चला जाता है। इसके फलस्वरूप भारतीय उपमहाद्वीप पर उत्तरी-पूर्वी वाणिज्य हवाओं का चलना बंद हो जाता है। अरबसागर में आई.टी.सी. (अन्तः उष्ण अभिसरण) अपने सामान्य स्थान पर ही रहता है।
2..आधुनिक सिद्धान्त (Recent Theory):-
  •  1. जेट स्ट्रीम सिद्धान्त:- एम.टी. यीन के अनुसार मानसून की उत्पति पर ऊपरी वायुमण्डल की दशाओं का प्रभाव पड़ता है। वस्तुतः मानसून की उत्पति के लिए सतह के निकट निम्न दाब के आवा ऊपरी वायुमण्डल में भी निम्न वायु दाब का होना आवश्यक है।
  •  खोज:- इन वायु सरिताओं का पता द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमरीकी बम वर्षक विमान चालकों को लगा था जब अमरीकी विमान बी-29 अमरीका से जापान की ओर ऊंचाई पर उड़ान भरते थे तो उन्हें प्रचण्ड वेग वाली वायु धाराओं का सामना करना पड़ा। इससे उनके विमानों की गति धीमी पड़ जाती थी, लेकिन जब वे विमान वापिस अमरीका लौटते थे, तब उनकी प्रारम्भिक गति से वृद्धि हो जाती थी तब वैज्ञानिकों ने वायुमण्डल की इन ऊपरी परतों का अध्ययन प्रारम्भ किया इस योज का परिणाम ही यह तीव्र वेग युक्त वायु धाराएं थी जिन्हें जेट स्ट्रीम या जेट प्रवाह का नाम दिया गया है।
  •  2. अल नीनो सिद्धान्त:- इस सिद्धान्त के विकास मंे गिल्बर्ट वाकर ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
  •  इस सिद्धान्त में यह माना गया है कि समुद्री सतह के तापमान का प्रभाव वायु दाब एवं हवाओं पर पड़़ता है।
  •  गिल्बर्ट वाकर ने यह बताया है कि हिन्द महासागर एवं प्रशान्त महासागर के ऊपर वायु दाब में प्रतिरूप पाया जाता है जब प्रशान्त महासागर के ऊपर वायुदाब उच्च होता है तो हिन्द महासागर के ऊपर वायुदाब निम्न होता है एवं स्थिति भारतीय मानसून के अनुकूल होती है। इस प्रक्रिया को दक्षिणी दोलन के नाम से जाना जाता है। दक्षिणी दोलन का काल 2-5 माह तक का होता है। (वाकर चक्र)