GUHIL VANSH, RAAVAL VANSH, GAHALOT VANS
गुहिल वंश /रावल वंश/ गहलोत वंश :-
गुहिल वंश /रावल वंश/ गहलोत वंश :-
गुहादित्य :- (566 ई.)
- राणा हमीर( 1326 )
- राणा लाखा (1382 -1421 )
- राणा मोकल
- राणा कुंभा (1433- 1468)
- रायमल राणा सांगा (1509- 1527)
- कर्मावती (1534 )
- मीराबाई (1498)
- विक्रमादित्य उदयसिंह (1537 )
- महाराणा प्रताप (1572- 1597)
- अमरसिंह प्रथम (1597- 1620)
- करण सिंह (1620- 1628 )
- जगत सिंह प्रथम (1648 -1652 )
- राज सिंह (1652- 1680)
- जयसिंह (1680- 1698 )
- अमर सिंह द्वितीय (1698- 1710 )
- संग्राम सिंह द्वितीय (1710 -1734)
- जगत सिंह द्वितीय (1734- 1768)
- राणा भीमसिंह (1807 -1818)
मेवाड़ वंश/ रावल वंश/ गहलोत वंश :-
- उदयपुर, राजसमंद ,चित्तौड़गढ़ एवं प्रतापगढ़ तथा इनके आसपास का क्षेत्र मेवाड़ कहलाता था |
- इस क्षेत्र पर पहले मेवल जाति का अधिकार होने के कारण इसका नाम मेदपाट पड़ा |
- मेवाड़ को मेदपाट /प्रागवाट (शिवि जनपद) के नाम से जाना जाता था |
- शिवि जनपद की राजधानी मध्यमीका थी इसे वर्तमान में नगरी कहते हैं नगरी चित्तौड़गढ़ में स्थित है |
- मेवाड़ राजवंश को हिंदुआ सूरज कहा जाता है |
- मेवाड़ राजवंश ने राजस्थान में सर्वाधिक समय तक शासन किया |
- राजस्थान की सबसे प्राचीन रियासत मेवाड़ थी मेवाड़ में गुहिल वंश के सिसोदिया वंश ने राज किया था |
गुहिल वंश/ रावल वंश /गहलोत वंश :-
- मुंहनोत नैंसी ने 24 शाखाओं का उल्लेख किया है |
- कर्नल टॉड ने भी अपने गुरु ज्ञान चंद के मांडल के उपसार के संग्रहालय के आधार पर गुहीलो की 24 शाखाओं को माना है |
- मेवाड़ के गुहिल गुर्जर प्रतिहार के सामंत थे |
- यह मेवाड़ के गुहिल वंश का संस्थापक था |
- गुहा दित्य ने 566 ई.
में गुहिल वंश की नींव रखी थी |