भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएं

भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएं

सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न संविधान - भारत का संविधान लोकप्रिय प्रभुसत्ता पर आधारित संविधान है अर्थात यह भारतीय जनता द्वारा निर्मित है। इस संविधान द्वारा अन्तिम शक्ति भारतीय जनता को प्रदान की गई है। संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि ‘‘हम भारत के लोग इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित व आत्मार्पित करते है’’ अर्थात भारतीय जनता ही इस की निर्माता है, जनता ने स्वयं की इच्छा से इसे अंगीकार, अधिनियमित व आत्मर्पित किया है। इसे किसी अन्य सत्ता द्वारा थोपा नहीं गया है।

सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य - 
  • संविधान की प्रस्तावना में उल्लेख किया गया है कि भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य है।
  • सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न - सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न का अर्थ यह है कि आन्तरिक या बाहरी दृष्टि से भारत पर किसी विरोधी सत्ता का अधिकार नहीं है। भारत अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपनी इच्छानुसार आचरण कर सकता है और वह किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय समझौते या संधि को मानने के लिए बाध्य नहीं है। भारत के संविधान में किसी भी स्थान पर ब्रिटिश सत्ता का उल्लेख नहीं किया गया है।
  • लोकतन्त्रात्मक राज्य - भारत एक लोकतन्त्रात्मक राज्य है अर्थात् भारत में राजसत्ता जनता में निहित है। जनता को अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने का अधिकार होगा, जो जनता के स्वामी न होकर सेवक होेंगे।
  • भारत एक गणराज्य है - ब्रिटेन जैसे विश्व के कुछ ऐसे लोकतन्त्रात्मक राज्य हैं, जहां राज्य का प्रधान वंशानुगत राजा होता है। लेकिन भारत एक लोकतन्त्रात्मक राज्य होने के साथ-साथ एक गणराज्य है। भारतीय राज्य का गणतन्त्रात्मक स्वरूप इससे स्पष्ट हो जाता है कि भारत राज्य का सर्वोच्च अधिकारी वंशक्रमानुगत राजा न होकर भारतीय जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति है।

विश्व का सबसे बड़ा निर्मित व लिखित संविधान - 

  • भारतीय संविधान में कुल अनुच्छेद 395, भाग 22, अनुसूचियां 12, 
  • भारतीय संविधान का निर्माण संविधान निर्मात्री सभा के द्वारा किया गया।
  • संविधान निर्माण में लगा कुल समय - 2 वर्ष 11 माह 18 दिन
  • संविधान सभा के कुल अधिवेश - 11
  • नोट - 
  • डाॅ. आइवर जेनिग्ज - भारतीय संविधान विश्व का सर्वाधिक व्यापक संविधान है।
  • हरिविष्णु कामथ - हमें इस बात का गर्व है कि हमारा संविधान विश्व का सबसे विशाल संविधान है।
  • श्रीनिवासन - भारतीय संविधान केवल एक संविधान नहीं है वरन् देश की संवैधानिक और प्रशासनिक पद्धति के महत्वपूर्ण पहलूओं से सम्बन्धित एक विस्तृत सहिता भी है।

संसदीय शासन प्रणाली - 

  • संविधान निर्माताओं ने केन्द्र और राज्यों में संसदात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया है। 
  • डाॅ. अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था, ‘‘संसदात्मक शासन प्रणाली में शासन के उत्तरदायित्व का मूल्यांकन एवं निश्चित समय के बाद तो होता ही है, इसके साथ ही दिन-प्रतिदिन भी होता रहता है।’’
  • संसदीय शासन प्रणाली की विशेषताएं - 
  • कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है।
  • वास्तविक शक्तियों का प्रयोग मंत्रीपरिषद के द्वारा किया जाता है।
  • संसद में विश्वास खो देने पर मंत्रीमण्डल को त्याग-पत्र देना पड़ता है।
  • संसदीय व्यवस्था को केन्द्र के साथ-साथ राज्यों में भी अपनाया गया है। इसलिए राज्यों में राज्यपाल राज्य का संविधानिक प्रमुख होता है तथा राज्य की वास्तविक कार्यपालिका राज्य की मंत्रीपरिषद होती है।

कठोर व लचीलेपन का सम्मिश्रण

  • भारत के संविधान में संशोधन की प्रक्रिया में कठोरता व लचीलेपन के सम्मिश्रण को अपनाया गया है।
  • संविधान संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख अनुच्छेद 368 में।
  • संविधान में कठोरता का प्रावधान संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से तथा लचीलेपन को ब्रिटेन के संविधान से लिया गया है।


न्यायपालिका स्वतंत्रता

  • कार्यपालिका के आदेश तथा व्यवस्थापिका के कानून आदि सांविधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करते है तो न्यायपालिका (सर्वोच्च न्यायालय) को उन्हें अवैध घोषित करने का अधिकार है।

संसदीय सम्प्रभुता व न्यायिक पुनरावलोकन के सिद्धांतों का समन्वय -

  • ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है संसद के द्वारा बनाए गए कानून को न्यायपालिका में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • अमेरिका में संसद के द्वारा बनाये गये कानून को न्यायपालिका में चुनौती दी जा सकती है। अतः अमेरिका में न्यायपालिका स्वतन्त्र है।
  • भारत के संविधान में इन दोनों व्यवस्थाओं के मध्यमार्ग को अपनाया गया है। 
  • भारत में संसद की सर्वोच्चता को मान्यता प्रदान की गई है। लेकिन संसद को नियंत्रित करने के लिए संविधान की व्याख्या का अधिकार न्यायपालिका (सर्वोच्च न्यायालय) को दिया गया है।

एकीकृत न्यायपालिका

  • भारत में संघात्मक शासन व्यवस्था है परन्तु फिर भी सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए न्याय प्रशासन के लिए शिखर पर सर्वोच्च न्यायालय तथा इसके अधिन राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय तथा जिला स्तर पर अधिनिस्थ न्यायालयों की व्यवयाथा की गई है।

सार्वजनिक वयस्क मताधिकार -

  • संविधान बिना किसी भेदभाव के सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार प्रदान करता है। 
  • वर्तमान में मताधिकार के लिए न्युनतम आयु 18 वर्ष।
  • राजीव गांधी सरकार के समय 61वें संविधान संशोधन 1989 के द्वारा मत डालने की आयु को मूल संविधान में 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया।
  • नोट - भारत में राष्ट्रपति देश की एकता का प्रतिक है।

पंथनिपेक्ष राज्य - 

  • संविधान के अनुच्छेद 25 में धर्म के क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
  • राज्य की दृष्टि से सभी धर्म समान है और राज्य के द्वारा धर्म के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा तथा राज्य का कोई भी अधिकारिक धर्म नहीं है।
  • नोट - धर्म निरपेक्ष राज्य धर्म विरोधी नहीं होता और न हीं वह धर्म के प्रति उदासीन रहता है। वरन उसके द्वारा धार्मिक मामलों में तटस्थता की नीति को अपनाया जाता है।
  • 42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा पंथ निरपेक्ष शब्द को प्रस्तावना में जोड़ा गया मूल संविधान में इसका उल्लेख नहीं था।
एकल नागरिकता - 


  • भारतीय संविधान के द्वारा संघात्मक शासन की स्थापना की गयी है और सामान्यता ऐसा समझाा जाता रहा है कि संघ राज्य के नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त होनी चाहिए-प्रथम, संघ की नागरिकता और द्वितीय, इकाई या राज्य की नागरिता। संयुक्त राज्य अमरीका और अन्य संघ राज्यों में ऐसी ही व्यवस्था है, लेकिन भारतीय संविधान के निर्माताओं का विचार था कि दोहरी नागरिकता भारत की एकता को बनाये रखने में बाधक सिद्ध हो सकती है। अत‘ संविधान-निर्माताओं द्वारा संघ राज्य की स्थापना करते हुए भी दोहरी नागरिकता को नही वरन् एकल नागरिता के आदर्श को ही अपनाया गया है।

अल्पसंख्यक तथा पिछड़े वर्गो के कल्याण की विशेष व्यवस्था - 

  • अनेक बार प्रजातन्त्र की आलोचना करते हुए इसे बहुमत का अत्याचार की संज्ञा दी जाती है। लेकिन भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के धार्मिक, भाषायी और सांस्कृतिक हितों की रक्षा के लिए विशेष व्यवस्था की गयी है। इसके अतिरिक्त, भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के क्षेत्रों के नागरिकों को सेवाओं, विधानसभाओं और अन्य क्षेत्रों में विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है।
  • अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों को संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के अन्तर्गत लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में आरक्षण प्रदान किया गया है। प्रारम्भ में वह व्यवस्था 25 जनवरी 1960 तक के लिए की गई थी, किन्तु संविधान में संशोधन कर इसकी समय सीमा को बढ़ाया जाता रहा और अब 95वें संवैधानिक संशोधन (2009 ई.) के आधार पर इन प्रतिनिधि संस्थाओं के आरक्षण की व्यवस्था की 25 जनवरी 2020 ई. तक के लिए बढ़ा दिया गया है।
  • अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए सेवाओं (सरकारी नौकरियों) में दावों की व्यवस्था अनुच्छेद 335 के अन्तर्गत है और संविधान के अनुसार इन दावों, जिन्हें सामान्यता आरक्षण के नाम से जाना जाता है, के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। गत कुछ वर्षो से ‘‘अन्य पिछड़े वर्गो’’ के लिए सेवाओं में आरक्षण की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी और 1989 से इस प्रसंग में तीव्र विवाद की स्थिति थी। अब केन्द्र सरकार की सेवाओं में 9 सितम्बर 1993 में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया।

नोट - अनुच्छेद 343 संघ की राजभाषा - सविधान में देवनागरी लिपि में हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया है। प्रारम्भ के अंग्रेजी को 15 वर्षो के लिए प्रयोग में लाने की आज्ञा दी गई थी परन्तु 1965 में संसद द्वारा सहभाष विधेयक पारित कर अनिश्चित काल के लिए हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी सहभाषा के रूप में जारी रखने की अनुमति प्रदान की गई। 

केन्द्रोन्मुख संविधान

  • यह भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण विषेशता है। कि संघात्मक होते भी उसमें केन्द्रीयकरण की प्रबल प्रवृति है। आपातकालीन परिस्थितियों में संविधान पूर्णतः एकात्मक स्वरूप धारण कर लेता है। 
  • विश्व में संविधान के प्रकार -दो
  • परिसंघात्मक सविधान - शक्तियों का केन्द्र व राज्यों में विभाजन तथा दोनों सरकारे अपने-अपने क्षेत्रों स्वतन्त्र रूप से कार्य करती है।
  • एकात्मक सविधान - इसके अन्तर्गत सम्पूर्ण शक्तियां एक ही सरकार निहित होती है।

भारतीय संविधान में एकात्म्क व संघात्मक तत्वों का मिश्रण

  • सविधान निर्माता ऐसे संघ का निर्माण करना चाहते थे जिसमें केन्द्र भारत की एकता बनाए रखे और राज्यों को भी स्वायतता प्राप्त हो जाये इसलिए भारतीय संविधान में संघात्मक व एकात्मक तत्वों मिश्रण है।
  • प्रो. हिृयर के अनुसार भारतीय संविधान अर्द्ध संघीय संविधान है।
  • जेन्ग्सि के अनुसार - भारतीय संविधान एक ऐसा संघ है जिसमें केन्द्रीयकरण की सशक्त प्रवृति है।
  • भारतीय संविधान के संघात्मक लक्षण
  • कठोर और लिखित संविधान 
  • भारत में दौहरी सरकारे
  • सर्वोच्च संविधान द्वारा शक्तियों का उल्लेख
  • द्विसदनीय व्यवस्थापिका
  • संविधान के संरक्षक के रूप में।
  • संघिय उपबंधों के संशोधन में आधे राज्यों के विधानमण्डल में पारित करना।
  • स्वतंत्र न्यायपालिका
  • संविधान में एकात्मक लक्षण -
  • समवर्ती सूचि में केन्द्र सरकार के निर्णय को प्रमुखता देना।
  • अति महत्वपूर्ण विषयों को संघ सूचि में शामिल करना।
  • राज्यों के नाम सीमा और क्षेत्र में परिवर्तन करने की शंक्ति संघिय संसद में निहित है। 
  • इकहरी नागरिकता
  • अनुच्छेद 248 - केन्द्र के पास अवशिष्ट शक्तियां
  • अनुच्छेद 249 द्वारा राज्यसभा राज्य सूचि के किसी विषय को 2/3 बहुमत से संघ सूचि का विषय बना सकती है। (समय 1 वर्ष)
  • आपातकाल द्वारा संघीय ढांचे के स्थगन की व्यवस्था।
  • अनुच्छेद 257 केन्द्र द्वारा राज्यों को निर्देश देने की शक्ति 
  • केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति करना।
  • नीति आयोग द्वारा सम्पूर्ण देश के लिए योजना बनाना।
  • अनुच्छेद 312 के द्वारा राज्यसभा अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन व समाप्त करना।
  • सी.ए.जी. द्वारा राज्यों के लेखों का परिक्षण करना।
  • राज्यपाल की नियुक्त केन्द्र द्वारा 
  • आपातकाल पूर्णतया एकात्मक स्वरूप
  • राज्यों में राष्ट्रपति शासन
  • एकीक्रत न्यायपालिका
  • जम्मू कश्मीर को छोड़कर अन्य राज्यों का अपना कोई संविधान नहीं।
  • उच्च न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति में केन्द्र की भुमिका