संविधान संशोधन अनु0 368, Constitution Amendment Article 368

संविधान संशोधन अनु0 368:-

  • भारतीय संविधान के भाग 20 व अनु0 368 में कहा गया है कि आवश्यकता पडने पर संविधान में कुछ नया जोडा जा सकता है। या पुराना हटाया जा सकता है। या परिवर्तन किया जा सकता है।
  • पहला संशोधन (1951) - इसके माध्यम से स्वतंत्रता, समानता एवं संपत्ति से सम्बन्धित मौलिक अधिकारों को लागू किए जाने सम्बन्धी कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया गया। साथ ही, इस संषोधन द्वारा संविधान में नौवीं अनुसूची को जोडा गया, जिसमें उल्लिखित कानूनों को सर्वोच्च न्यायलय के न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्तियों के अंतर्ग परीक्षा नही की जा सकती है।
  • दूसरा संशोधन (1952) - इसकेे अंतर्गत 1951 की जनगणना के आधार पर लोकसभा में प्रतिनिधित्व को पुनव्र्यवस्थित किया गया।
  • चौथा संशोधन (1955) - इसके अंतर्गत व्यक्तिगत संपŸिा को लोकहित में राज्य द्वारा हस्तगत किए जाने की स्थ्तिि में , न्यायलय इसकी क्षतिपूर्ति के संबंध में परीक्षा नहीं कर सकती।
  • 7वाँ संशोधन (1956) - इस संषोधन द्वारा भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया, जिसमें पहले के तीन श्रेणियों (अ, ब , स) में राज्यों केे वर्गीकरण को समाप्त करते हुए राज्यों एवं केन्द्र एवं राज्य के विधान मण्डलों में सीटों को पुनव्र्यवस्थित किया गया।
  • 9 वाँ संशोधन (1960) - इसकेे द्वारा संविधान की प्रथम अनुसूची में परिवर्तन करके भारत और पाकिस्तान के बीच 1958 की संधि की शर्ताें के अनुसार बेरूबारी, खुलना आदि क्षेत्र पाकिस्तान कोे प्रदान कर दिये गये।
  • 10वाँ संशोधन (1961) - इसके अंतर्गत पुर्तगाली उपनिवेष के अंतः क्षेत्रों दादर एवं नगर हवेली को भारत मेंे शामिल कर उन्हें केन्द्र शासित प्रदेष का दर्जा दिया गया।
  • 12वाँ संशोधन (1962) - इसके अतंर्गत संविधान की प्रथम अनुसूची में संषोधन कर गोवा, दमन एवं दीव को भारत में केन्द्रषासित प्रदेष के रूप में शामिल किया गया। 
  • 13वाँ संशोधन (1962) - इसके अंतर्गत नगालैंड के सम्बन्ध में विषेष प्रावधान अपनाकर उसे एक पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
  • 14वाँ संशोधन (1963) - इसके द्वारा केन्द्रषासित प्रदेष पुदुचेरी को भारत में शामिल किया गया। साथ ही, इसके द्वारा हिमाचल प्रदेष, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, दमण एवं दीव एवं पुदुचेरी केन्द्रषासित प्रदेषों में विधानपालिका एवं मंत्रिपरिषद् की स्थापना की गई।
  • 15वाँ संशोधन (1963) - उच्च न्यायलय के न्यायाधीषों की सेवामुक्ति की आयु 60 से बढाकर 62 वर्ष कर दी गई तथा अवकाष प्राप्त न्यायाधीषों की उच्च न्यायलय में नियुक्ति से सम्बन्धित प्रावधान बनाए गए।
  • 16वाँ संशोधन (1963) - इसके द्वारा देष की सम्प्रभुता एवं अखंडता के हित में मूल अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध लगाने के प्रावधान रखे गये। साथ ही तीसरी अनुसूची में भी परिवर्तन कर शपथ ग्रहण के अंतर्गत ‘‘मैं भारत की स्वतंत्रता एवं अखण्डता को बनाए रखूँगा।’’ जोडा गया।
  • 18वाँ संशोधन (1966) - पंजाब का भाषायी आधार पर पुनगर्ठन करते हुए पंजाबी भाषी क्षेत्र को पंजाब एवं हिन्दी भाषी क्षेत्र को हरियाणा के रूप में गठित किया गया। पर्वतीय क्षेत्र हिमाचल प्रदेष को दे दिए गए तथा चंडीगढ को केन्द्रषासित प्रदेष बनाया गया।
  • 21वाँ संशोधन (1967) - सिन्धी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में 15वीं भाषा के रूप में शामिल किया गया।
  • 24वाँ संशोधन (1971) - संसद की इस शक्ति को स्पष्ट किया गया कि वह संविधान के किसी भी भाग को, जिसमें भाग तीन के अंतर्गत आने वाले मूल अधिकार भी हैं, संषोधित कर सकती है।
  • 27वाँ संशोधन (1971) - पूर्वोŸार के मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेष को केन्द्रषासित प्रदेषों के रूप में स्थापित किया गया।
  • 29वाँ संशोधन (1972) - केरल भू-सुधार अधिनियम, 1969 तथा केरल भू-सुधार अधिनियम, 1971 को संविधान की नौवीं अनुसूची में रख दिया गया।
  • 31वाँ संशोधन (1973) - लोकसभा के सदस्यों की संख्या बढाकर 525 से 545 कर दी गई तथा केन्द्रषासित प्रदेषों का प्रतिनिधित्व 25 से घटाकर 20 कर दिया गया।
  • 36वाँ संशोधन (1975) - सिक्किम को भारत का 22वाँ पूर्ण राज्य बनाया गया।
  • 37वाँ संशोधन (1975) - आपात स्थिति की घोषणा और राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं केन्द्रषासित प्रदेषों के प्रषासनिक प्रधानों द्वारा अध्यादेष जारी किए जाने को अविवादित बनाते हुए न्यायिक पुनर्विचार से उन्हें मुक्त रखा गया।
  • 39वाँ संशोधन (1975) - राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं लोकसभाध्यक्ष के निर्वाचन सम्बन्धी विवादों को न्यायिक परीक्षण से मुक्त कर दिया गया।
  • 41वाँ संशोधन (1976) - राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवा मुक्ति की आयु सीमा 60 से बढाकर 62 कर दी गई, पर संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवा- निवृŸिा की अधिकतम आयु 65 वर्ष रहने दी गई।
42वाँ संशोधन(1976) - 
  • इस संविधान संषोधन को ‘मिनी संविधान’ भी कहा जाता है। इसके द्वारा संविधान में व्यापक परिवर्तन लाए गए, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित है -
  • संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं ‘अखण्डता’ आदि शब्द जोड़े गए।
  • सभी नीति-निर्देषक सिद्वान्तों की मूल अधिकारों पर सर्वोच्चता सुनिष्चित की गई।
  • संविधान में 10 मौलिक कव्यों को अनुच्छेद 51 (क), (भाग 4 क) के अंतर्गत जोड़ा गया।
  • इसके द्वारा संविधान को न्यायिक परीक्षण से मुक्त किया गया।
  • लोकसभा एवं विधानसभाओं की अवधि को 5 से 6 वर्ष कर दिया गया।
  • इसके द्वारा यह निर्धारित किया गया कि किसी केन्द्रीय कानून की वैधता पर सर्वोच्च न्यायालय एवं राज्य के कानून की वैधता का उच्च न्यायालय ही परीक्षण करेगा। साथ ही, यह भी निर्धारित किया गया कि किसी संवैधानिक वैधता के प्रष्न पर 5 से अधिक न्यायाधीषों की बेंच द्वारा दो-तिहाई बहुमत से निर्णय दिया जाना चाहिए और यदि न्यायाधीषों की संख्या 5 तक हो तो निर्णय सर्वसम्मति से होना चाहिए।
  • इसके द्वारा वन सम्पदा, षिक्षा, जनसंख्या-नियंत्रण आदि विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची के अंतर्गत कर दिया गया।
  • इसके अंतर्गत निर्धारित किया गया कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् एवं उसके प्रमुख प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार कार्य करेगा।

44वाँ संषोधन (1978) - 

  • इसके अंतर्गत राष्ट्रीय आपात स्थिति लागू करने के लिए ‘आंतरिक अषांति’ के स्थान पर ‘सैन्य विद्रोह’ का आधार रखा गया एवं आपात स्थिति सम्बन्धी अन्य प्रावधानों में परिवर्तन लाया गया, जिससे उनका दुरुपयोग न हो।
  • इसके द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के भाग से हटा कर विधिक (कानूनी) अधिकारों की श्रेणी में रख दिया गया ।
  • लोकसभा तथा राज्य विधान सभाओं की अवधि 6 वर्ष से घटाकर पुनः 5 वर्ष कर दी गई।
  • उच्चतम न्यायलय को राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी विवाद को हल करने की अधिकारिता प्रदान की गई।

52वाँ संषोधन (1985) - इस संषोधन के द्वारा राजनैतिक दल-बदल कर अंकुष लगाने का लक्ष्य रखा गया।
55वाँ संषोधन (1986) - इसके अंतर्गत अरुणाचल प्रदेष को राज्य बनाया गया।
58वाँ संषोधन (1987) - इसके द्वारा राष्ट्रपति को संविधान का प्रामाणिक हिन्दी संस्करण प्रकाषित करने के लिए अधिकृत किया गया।
61वाँ संषोधन (1989) - इसके द्वारा मतदान के लिए आयु सीमा 21 से घटाकर 18 लाने का प्रस्ताव था।
65वाँ संषोधन (1990) - इसके द्वारा अनुच्छेद 338 में संषोधन करके अनुसूचीत जाति तथा जनजाति आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है।
69वाँ संषोधन (1991) - दिल्ली को राष्ट्रीय क्षेत्र बनाया गया तथा दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद् का उपबंध किया गया।
70वाँ संषोधन (1992) - दिल्ली और पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की विधान सभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के लिए निर्वाचक मंडल में सम्मिलित किया गया।
73वाँ संषोधन (1992-93) - इसके अंतर्गत संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ी गयी। इसमें पंचायती राज सम्बन्धी प्रावधानों को जोडा गया।
84वाँ संषोधन (2001) - इस संषोधन अधिनियम द्वारा लोकसभा तथा विधान सभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2026 तक कोई परिवर्तन न करने का प्रावधान किया गया है।
86वाँ संषोधन (2002) -

  • इस संषोधन अधिनियम द्वारा देष के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःषुल्क षिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने सम्बन्धी प्रावधान किया गया है, इसे अनुच्छेद 21 (क) के अंतर्गत संविधान जोड़ा गया है। 
  • इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 45 तथा अनुच्छेद 51 (क) में संषोधन किए जाने का प्रावधान है।

87वाँ संषोधन (2003) -

  •  परिसीमन में जनसंख्या का आधार 1991 की जनगणना के स्थान पर 2001 कर दी गई है।

91वाँ संषोधन (2003) -

  • दल बदल व्यवस्था में संषोधन, केवल सम्पूर्ण दल के विलय को मान्यता, केन्द्र तथा राज्य में मंत्रिपरिषद् के सदस्य संख्या क्रमषः लोकसभा तथा विधानसभा की सदस्य संख्या का 15 प्रतिषत होगा (जहाँ सदन की सदस्य संख्या 40-40 है, वहाँ अधिकतम 12 होगी।)

92वाँ संषोधन (2003) -

  • संविधान की 8वीं अनुसूची में बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली भाषाओं का समावेष किया गया। (कुल 22 भाषाऐँ)

95वाँ संषोधन (2010) -

  • इस संषोधन द्वारा अनुच्छेद 334 मेें वर्णित लोकसभा व राज्य विधानसभाओं में अनुसूचीत जाति और अनुसूचीत जनजाति के लिए स्थानों के आरक्षण की समय सीमा 60 वर्ष से बढाकर 70 वर्ष कर दिया गया है। साथ ही आंग्ल भारतीयों के नाम निर्देषन के प्रावधान को भी 10 वर्ष बढा दिया गया है। अब यह प्रावधान वर्ष 2020 तक लागू रहेगा।

97वाँ संषोधन (2012) -

  • इस संविधान संषोधन के द्वारा संविधान के भाग-3 (मूल अधिकार) के अनुच्छेद 19(1)(ग) में ‘सहकारी समितियाँ’ शब्द जोड़ा गया है।
  • संविधान के भाग-4 (राज्य के नीति निदेषक तत्व) में अनुच्छेद 43ख जोडा़ गयाहै। नये अनुच्छेद के अनुसार सहकारी समितियों के गठन, नियंत्रण व प्रबंधन को विकसित करने का प्रयास करना राज्य का कर्Ÿाव्य होगा।
  • इस प्रकार 97वें संविधान संषोधन अधिनियम द्वारा सहकारी समितियों को संवैधानिक मान्यता प्रदान कर उनके गठन को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया गया है।

99वाँ संषोधन (2014) -

  • इस संविधान संषोधन अधिनियम द्वारा उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीषों की नियुक्ति की काॅलेजियम प्रणाली के स्थान पर ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का प्रावधान किया गया है। 
  • 1993 में उच्च न्यायलय ने उच्च अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिये काॅलेजियम प्रणाली शुरू किया थी। इसमें देष के 5 शीर्ष जज शामिल होते हैं।
  • नोट - सर्वोच्च न्यायलय की पाँच सदस्यीय पीठ ने उच्च न्यायपालिका में न्यायधीषों की नियुक्ति के दो दषकों पुराने काॅलेजियम प्रणाली के स्थान लेने वाले ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ को 16 अक्टूबर, 2015 को असवैंधानिक घोषित कर दिया।
  • न्यायधीष जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वोच्च न्यायलय और 24 अन्य उच्च न्यायलयों में न्यायधीषों की नियुक्ति की 22 वर्ष पुराने काॅलेजियम सिस्टम को ही मान्य बताया। इससे संविधान का अनुच्छेद 124ए (1) असंवैधानिक हो गया है।

100वाँ संषोधन (2015) - भारत व बांग्लादेष के बीच भूखंडों की अदला-बदली का भूमि सीमा समझौता का प्रावधान किया गया। भूमि समझौते के अमल में आने से अवैध रूप से बांग्लादेषियों के भारत में घुसने और बसने का मामला हल हो सकेगा। भारत की 111 बस्तियाँ बांग्लादेष को मिलेगी जबकि बांग्लादेष 51 बस्तियाँ भारत को सौंपेगा।