स्वतंत्रता आंदोलन के समय घटित संस्थाएं

वालटर कर्त राजपूताना हितकारिणी सभा:-
  • 1888 मे,  ए. जी. जी. कर्नल वाल्टर द्वारा अजमेर में सामाजिक सुधार हेतु इसे बनाया गया।
  • इस सभा ने बहु विवाह, मृत्यु भोज, टीके व रीत पर प्रतिबंध लगाया।

राजस्थान हरिजन सेवा संघ:-

  • 1932 में घनश्याम दास बिड़ला की अध्यक्षता में अखिल भारतीय हरिजन सेवा संघ की स्थापना हुई।
  • बिड़ला ने अजमेर में हरविलास शारदा को हरिजन सेवा संघ की राजपूताना शाखा का अध्यक्ष मनोनित किया।

राजस्थान सेवा संघ:-

  • इसकी स्थापना 1919 में विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में वर्धा महाराष्ट्र में हुई।
  • 1920 में इसका मुख्यालय अजमेर बनाया गया।
  • बिजौलिया व बेगू किसान आंदोलन राजस्थान सेवा संघ के निर्देशन में चला एवं तरूण समाचार पत्र के माध्यम से इसने जनता की समस्याओं को उठाया।

राजपूताना मध्य भारत संघ:-

  • 1919 में कांग्रेस के दिल्ली अधिवेशन के समय जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में इसकी स्थापना की गई।
  • इसका मुख्यालय अजमेर रखा गया।

राजपूताना देशी राज्य परिषद:-

  • स्थापना 1928 में विजय सिंह पथिक,  रामनारायण चैधरी,  केसरी सिंह बारहठ,  दामोदर लाल राठी द्वारा की गई।
  • इसका प्रथम अधिवेशन अजमेर में हुआ था।

मारवाड़ सेवा संघ:-

  • 1920 में इसकी स्थापना चाँदमल सुराना ने जोधपुर में की। बाद में 1924 में मारवाड़ संघ को मारवाड़ हितकारीणी सभा में विलय कर दिया गया।

मारवाड़ हितकारीणी सभा:-

  • 1918 में इसकी स्थापना चाँदमल सुराना ने जोधपुर में की।
  • 1929 मे इसके द्वारा मारवाड़ की अवस्था और पोपाबाई का राज तो पुस्तकें प्रकाशित हुई।

मारवाड़ लोक परिषद:-

  • 1938 में इसकी स्थापना जयनारायण व्यास ने की।
  • इसका मुख्य उद्देश्य महाराजा की छत्रछाया में उत्तरदायी शासन स्थापित करना था।

मारवाड़ युथ लीग:-

  • 1931 में इसकी स्थापना जयनारायण व्यास द्वारा की गई।

महिला मंडल, उदयपुर:-

  • 1935 में इसकी स्थापना दयाशंकर श्रोञिय ने की।

प्रताप सभा ( उदयपुर):-
  •  1915 में सज्जन सिंह की अध्यक्षता में उदयपुर में इसका गठन हुआ।
  • इसके द्वारा राजपूतों में प्रचलित त्याग प्था व विवाह पर खर्च पर रोक लगायी गई।

ऊपरमाल पंच बोर्ड:-
  • 1917 में विजय सिंह पथिक द्वारा स्थापित इसके अध्यक्ष श्री मन्ना पटेल थे।
  • सम्प सभा - 1883 में गोविन्द गिरी द्वारा स्थापित।

अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद:-
  • 1927 में इसकी स्थापना देशी रियासतों में उत्तरदायी शासन लाने हेतु हुई।
  • इसका प्रथम अधिवेशन दिसम्बर 1927 को बम्बई में दिवान बहादुर रामचंद्र राव की अध्यक्षता में हुआ।
  • इसका मुख्यालय बम्बई मे था।

वर्धमान विद्यालय:-
  • अर्जन लाल सेठी द्वारा जयपुर में 1907 में स्थापित,  जहाँ क्रांतिकारीयों को राष्ट्रीय भावना हेतु शिक्षित किया जाता था

सर्व सेवा संघ:-
  • सिद्धराज ढ़ढ्ढ़ा द्वारा स्थापित।
  • बांगढ़ सेवा संघ:-
  • 1935 में गौरीशंकर उपाध्याय व भोगीलाल पाण्डया द्वारा डूँगरपुर में स्थापित।
  • यह आदिवासीयों की शिक्षा प्रसार व समाज सुधार के लिए बना था।
  • वीर भारत समाज:- विजय सिंह पथिक

खाण्डलाई आश्रम:-
  • 1934 में सागवाड़ा के पास श्री माणिक्यलाल वर्मा के द्वारा गठित।
  • हरिजन सेवा समिति:-
  • 1935 में डूँगरपुर में भोगिलाला पाण्डया द्वारा स्थापित।

अमर सेवा समिति ( चिड़वा - खेतड़ी) :-
  • 1922 में मास्टर प्यारेलाल गुप्ता ( चिड़वा का गांधी) द्वारा स्थापित।

आजाद मोर्चा ( जयपुर):-
  • 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय जयपुर प्रजामण्डल के अध्यक्ष हीरालाल शास्त्री व जयपुर राज्य के प्रधानमंत्री सर इस्माइल के बीच जेंटलमेन्ट समझौता हुआ। जिसनें प्रजामण्डल ने आंदोलन स्थगित किया। बाबा हरिशचन्द्र ने 1942 में इसके विरोध में आजाद मोर्चे का गठन किया।

नरेन्द्र मण्डल:-

  • 1919 में मान्टेग्यू चेम्सफोर्ड अधिनियम में देशी रियासतों के नरेशों की एक परिषद बनाने का सुझाव दिया गया और इसके अनुसार 8 फरवरी 1921 को नरेन्द्र मण्डल की स्थापना की गई।
  •  The Chamber of Princes (Delhi 1921) के नाम से फरवरी 1921 में ब्रिटिश क्राउन के अधीन भारतीय देशी रियासतों का एक संघ बनाया गया। जो सलाहकारी एवं परामर्श देने वाली संस्था थी।
  • अलवर नरेश जयसिंह ने नरेन्द्र मण्डल नाम दिया क्योंकि वे हिन्दी के बहुत हिमायती थे।
  • इस मण्डल की स्थापना 8 फरवरी 1921 को दिल्ली में की गई।
  • इसका अध्यक्ष वायसराय लॉर्ड रीडिंग था। तथा बीकानेर महाराजा गंगासिंह को इसका प्रथम चांसलर नियुक्त किया गया। इसके अलावा वायस चांसलर और 7 अन्य सदस्यों की एक समिति बनाई गई।
  • यह मण्डल देशी राज्यों की समस्याओं को सरकार को अवगत कराता था।

प्रमुख महत्वपूर्ण युद्ध

1. तराईन का प्रथम युद्ध (1191):- अजमेर व दिल्ली के चैहान सम्राट पृथवीराज चैहान एवं मोहम्मद गौरी के मध्य हुआ, जिसनें पृथवीराज की विजय हुई।
2. तराईन का द्वितीय युद्ध (1192 ):-  पृथवीराज व गौरी के मध्य, जिसमें गौरी की विजय हुई।
3. रणथम्भौर का युद्ध (1301 ):- रणथम्भौर शासक राणा हम्मीर देव चैहान व दिल्ली का सुल्तान अलाउदीन खिलजी के मध्य, जिसमें अलाउदीन खिलजी की विजयी हुई।

  •  केसरिया - हम्मीर देव चैहान
  •  जौहर - हम्मीर की पत्नी रंगदेवी व पुत्री पदमला ने जल जौहर किया।
  •  यह शाका राजस्थान का प्रथम साका कहलाता है।

4. चित्तौड़ का प्रथम शाका (1303 ):-

  •  मेवाड़ के गुहिल शासक रावल रत्नसिंह व अलाउदीन खिलजी के बीच हुआ, इसमें अलाउदीन खिलजी की विजयी हुई।
  •  मेवाड विजय के बाद अलाउदीन ने चित्तौड़ का प्रशासन अपने पुत्र खिज्र खां को सौंपकर चित्तौड़गढ़ का नाम खिज्राबाद रखा।
  •  केसरिया - रावल रत्न सिंह
  •  जौहर - रानी पद्मिनी ने 1600 रानियों के साथ।
  •  1303 ई. का शाका चित्तौड़ का पहला व राजस्थान का दूसरा शाका कहलाता है।
  • चित्तौड़ के इस शाके का वर्णन अमीर खुसरो की रचना खजाइनल फतुह तारिख- ए-अलाई में मिलता है
  • चैत्र कृष्ण एकादशी को चित्तौड़गढ़ में जौहर मेला लगता है।

5. सिवाणा का युद्ध सिवाणा का प्रथम शाका:-

  •   अलाउदीन खिलजी ने वीर सांतल देव व सोमदेव चैहान को हरा कर सिवाणा दुर्ग (जालौर दुर्ग की कुंजी) पर अधिकार कर लिया।
  •  अलाउदीन खिलजी ने सिवाणा का नाम खैराबाद रखा।

6. जालौर का युद्ध:-

  •   सुल्तान अलाउदीन खिलजी ने सोमदेव चैहान शासक कान्हाड़देव व इसके पुत्र वीरमदेव चैहान को पराजित किया तथा जालौर दुर्ग का नाम जलालाबाद रखा।
  •  रचना- पदमानाभ द्वारा सोनगरा री बात में जालौर के इस शाके का वर्णन मिलता है।
  •  मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने मालवा ( मध्यप्रदेश)  के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम को पराजित किया।
  •  इस युद्ध विजय के बाद राणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया।

7. खातोली का युद्ध (1517-18):-

  •   मेवाड़ के राणा सांगा (संग्राम सिंह) ने दिल्ली सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराया।

8. बांड़ी का युद्ध (1518):-

  •  मेवाड़ महाराणा सांगा व इब्राहिम लोदी के बीच धोलपुर मे हुआ,  इसनें सांगा विजयी हुआ।

9. गागरोन का युद्ध (1519):-

  •  राणा सांगा व मालवा के महमूद खिलजी द्वितीय के बीच हुआ। इसमें सांगा की विजय हुई।
  •  महमूद खिलजी का कमरबंद व ताज छीन लिया गया।

10. पानीपत का प्रथम युद्ध ( 1526):-

  •  21 अप्रैल 1526 को बाबर व इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ। इसमें बाबार की विजय हुई
  •  बाबर के द्वारा इस युद्ध विजय के बाद भारत में मुगल वंश की नींव रखी थी।

11. बयाना का युद्ध (1527):-
  15 फरवरी 1527 को राणा सांगा व बाबर के बीच बयाना का युद्ध ( भरतपुर)  हुआ,  इसमें सांगा विजय हुआ।
12. खानवा का युद्ध (1527):-

  •  17 मार्च 1527 ई. को राणा सांगा व बाबर के बीच खानवा का युद्ध (रूपवास तहसील भरतपुर) गंभीरी नदी के तट पर हुआ। जिसमें बाबर की विजय हुई।
  •  इस युद्ध के बाद भारत में मुगल वंश की वास्तविक नीवं रखी गयी।
  •   भारतीय इतिहास मे यह निर्णयाक युद्ध हुआ।
  •  खानवा युद्ध विजय के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की जेहाद का नारा दिया, तथा मुस्लमानों पर तमगा कर माफ कर दिया।

13. चित्तौड़ का द्वितीय शाका (1534):-

  •   केसरियी - बाघ सिंह (देवलिया,  प्रतापगढ़)
  •   जौहर - कर्मावतीध् कर्णावती
  •  आक्रमणकारी - बहादूरशाह (गुजरात)

14. पाहिबा-साहिबा का युद्ध, फलोदी जोधपुर (1541)

  •   1541 ई. में मारवाड़ के मालदेव व बीकानेर के राव जैतसी के बीच पाहिबा साहिबा का युद्ध फलोदी जोधपुर में हुआ जिसमें राव जैतसी मारा गया वह बीकानेर पर राव मालदेव ने अधिकार कर लिया।

15. गिरी सुमेल जैतारण का युद्ध ,पाली (1544):-

  •  दिल्ली के अफगान शासक शेरशाह सूरी (फरीद) ने इस युद्ध में मारवाड़ के राठौड़ शासक  मालदेव को हराया
  •  युद्ध जीतकर शेरशाह  ने कहा की -1. .मुठ्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो बैठता।
  •   काश जैता व कूपा जैसे वीर मेरे पास होते तो एक छत्र हिन्दुस्तान पर शासक होता।
  •  शेरशाह ने इस युद्ध को जीतकर के जोधपुर दुर्ग का प्रबंध ख्वास खां को बनाया।
  •  इस युद्ध में स्वामिभक्त सैनिक जैता व कूपा मारे गये।
  •   बीकानेर के राव जैतसी क् पुत्र कल्याणमल ने इस युद्ध में शेरशाह की सहायता की थी। अतः इस युद्ध में सूरी क् बाद कल्याणमल को बीकानेर राज्य वापस दे दिया गया।

16. चित्तौड़ का तृतीय  शाका (1567- 68):-
 शासक -उदयसिंह  आक्रमणकारी - अकबर  केसरिया - जयमल राठौड़,  कल्ला राठौड़ , पत्ताध् फत्ता सिसोदिया।  जौहर - पत्ताध् फत्ता की रानी फूल कंवर जयमल व फत्ता की छतरियाँ चित्तौड़गढ़ दुर्ग के दूसरे  द्वार भैरव पोल के बाहर बनी है।
  जयमल व फत्ता की वीरता से प्रभावित होकर अकबर ने आगरा दुर्ग के बाहर इनकी मूर्तियाँ बनवाई।
17. हल्दी घाटी का युद्ध (1576):-

  •   18 जून 1576 को ( गोपीनाथ शर्मा के अनुसार 21जून 1576 को) अकबर रे सेनापति मिर्जाराजा मानसिंह व मेवाड़ के महाराणा प्रताप के मध्य हुआ।
  •  यह स्थान गोगुन्दा व खम्नौर की पहाड़ियों के बीच बनास नदी के किनारे राजसमंद में पड़ता है।
  •   इस युद्ध को रक्त तलाई के नाम से भी जाना जाता है।
  •   हल्दी घाटी का युद्ध अनिर्णायक था।
  •  कर्नल टॉड ने हल्दीघाटी को मेवाड़ की थर्मोपॉली कहा है तथा इस युद्ध को अबूल फजल ने खमनौर का युद्ध व बदायूनी ने गोगुन्दा का युद्ध कहा है।

18. कुंभलगढ़ का युद्ध (1578):-

  •  शाहबाज खाँ के नेतृत्व में मुगल सेना  एवं महाराणा प्रताप की सेना के मध्य हुआ,  जिसमें मुगल सेना ने कुंभलगढ़ पर अधिकार कर लिया। इसके बाद महाराणा प्रताप ने चावंड को अपनी राजधानी बनाया।

19. दिवेर का युद्ध (1582):-

  •  1585 में महाराणा प्रताप व मुगल सेना के बीच हुआ,  जिसमें महाराणा प्रताप विजयी हुआ।
  •  महाराणा प्रताप ने 1582 ई. में मुगलों का विरोध शुरू किया। इसे दिवेर का युद्ध कहते हैं। क्योंकि यह लम्हे समय तक चलता रहा।
  •  अतः कर्नल टॉड ने इसे मेवाड़ का मेराथन कहा
  •  दिवेर के युद्ध को महाराणा प्रताप की विजय की श्री गणेश कहा जाता है।

20. सिवाणा का दूसरा शाका (1587):-

  •  केसरिया - कल्ला राठौड़ (मालदेव का पौत्र)
  •  आक्रमणकारी - मोटा राजा उदयसिंह (मालदेव का पुत्र)

21. मतीरे की राड़ (1644):-

  •  यह युद्ध मतीरे लेने के मामले पर अमरसिंह राठौड़ ( नागौर का शासक) व बीकानेर के शासक कर्ण सिंह के बीच हुआ,  इसमें अमरसिंह विजयी रहे।
  •  अमर सिंह राठौड़ की 16 खम्भौ की छतरी नागौर में बनी हुई है।
  •   अमरसिंह रो ख्यात नामक नाट्क इसी अमरसिंह की वीरता पर बनाये गये हैं।

22. धर्मत का युद्ध (1658):-

  •  औरंगजेब ने उत्तराधिकार युद्ध में शाही सेना व दाराशिकोह को हराया।
  •  शाही सेना को नेतृत्व जोधपुर शासक महाराज जसंवत सिंह कर रहे थे।

23. दौराई का युद्ध (1659):-

  •  अजमेर के निकट दौराई स्थान पर उत्तराधिकार युद्ध औरंगजेब ने दाराशिकोह को पुनः हराया।

 24. पिलसुद का युद्ध (1715):-

  •   यह युद्ध 10 मई 1715 को जयपुर नरेश व मराठों की सेना के बीच हुआ। इस युद्ध में सवाई जयसिंह ने मराठों की सेना को पराजित कर उन्हें नर्मदा के दक्षिण में खदेड़ा।

25. मंदसौर का युद्ध (1733):-

  •   फरवरी 1733 को जयपुर के सवाई जयसिंह एवं मराठों के मध्य यह युद्ध हुआ। जिसमें जयसिंह परजित हुआ।
  •   यह युद्ध हारने के बाद जयसिंह को हर्जाना व मालवा के कुछ परगने देनें पड़े।

26. राजमहल (टोंक ) का युद्ध (1747):-

  •  मार्च 1747 ई. को जयपुर नरेश ईश्वरीसिंह ने अपने भाई माधोंसिंह प्रथम,  मराठा एवं कोटा-बूंदी की संयुक्त सेना को हराया।

27. भटवाड़ा का युद्ध (नवम्बर 1761):-

  •  कोटा के राजा शत्रुशाल एवं जयपुर नरेश सवाई माधोसिंह के मध्य रणथम्भौर के वर्चस्व को लेकर युद्ध हुआ जिसमें कोटा की सेना जीत हुई।

28. तुगा का युद्ध (1787):-

  •  जुलाई 1787 को जयपुर नरेश सवाई प्रतापसिंह एवं जोधपुर नरेश विजयसिंह की संयुक्त सेना ने मराठा महाद जी सिंधिया को हराया।
  • सवाई प्रतापसिंह के समय सर्वाधिक मराठे राजस्थान आए तथा महाराष्ट्र की तमाशा लोकनाट्य शैली राजस्थान आई।

29. गिंगोली का युद्ध (मार्च 1807):-

  • जयपुर नरेश जगतसिंह द्वितीय एवं जोधपुर के शासक मानसिंह राठौड़ के बीच मेवाड़ की राजकुमारी कृष्णा कुमारी से विवाह को लेकर हुए विवाद के कारण यह युद्ध हुआ।
  • इस युद्ध में जोधपुर के राजा मानसिंह की हार हुई।

30. बिथौर का युद्ध (सितम्बर 1857):-

  • आउवा के ठाकुर कुशालसिंह चम्पावत के नेतृत्व में क्रांतिकारीयों( जोधपुर लीजियन के विद्रोही सैनिकों) की सेना ने कैप्टन हीथकोट के नेतृत्व में आई अंग्रेजी व जोधपुर राज्य की संयुक्त सेना को हराया।

31. आउवा का युद्ध  (सितम्बर 1857):-

  • आउवा के कुशालसिंह के नेतृत्व वाली क्रांतिकारी सेना ने अंग्रेजी सेना व जोधपुर की सेना को हराया। ए. जी. जी. लॉरेन्स को भागना पड़ा तथा पॉलिटिकल एजेन्ट मोक मेन्सन की हत्या कर क्रांतिकारीयोंने उसका सिर किले पर लटका दिया।